विलुप्त हो रही पहाड़िया जनजाति पर केंद्रित लघु उपन्यास “ठूंठ पर कोकिल की कूक” का अंश
सुरेन्द्र उर्फ सुरवा, शरीर से ही नहीं बुद्धि से भी मोटा था। समाज में बुद्धि से मोटा उसे माना जाता है, जो सरल और सहज स्वभाव का हो, जो छल-कपट जैसी होशियार से दूर हो। अपनी सहज-सरल, बुद्धि-स्वभाव के कारण घर वालों की नजर में वह परबुद्धिया था और गाँव वालों की नजर में सबका मददगार। उसे ज्योतिष ठाकुर फूटी आंखों नहीं देखना चाहते थे। वे उसे हरदम कोसते रहते, “ ससुर के नाती, खाता-पीता है अपने अपने बाप के ढाबा में और हाथ सुखाता है दूसरे के द्वार पर।”
गाँव-टोले में किसी के घर में कोई काम-काज हो, बाजार से सब्जी लानी हो, गेहूं पिसवाने जैसे छोटे-मोटे काम हो, जग-परोजन में जूठी पत्तल उठानी हो, बीमार को हॉस्पिटल पहुंचना हो,दो मीठे बोल सुनकर, सुरो हाजिर। ‘ना’ शब्द उसकी डिक्शनरी में था ही नहीं। उसके इसी स्वभाव के कारण पिता ज्योतिष ठाकुर उससे चिढ़ते रहते थे, “ ससुर के नाती! काम के न काज के, दुश्मन अनाज के! पढना-लिखना साढ़े बाइस और चले हैं समाजसेवा करने। रोटियां तो घर की तोड़ते हैं और खवासगिरी पूरे मोहल्ले की करते हैं।”
पिता की बातों का सुरेन्द्र कनघट ही नहीं करता था। वह इस कान से सुनता और उस कान से निकाल देता था। सच में सुरेन्द्र को पढ़ाई-लिखाई रास नहीं आती थी, लेकिन घर-घर जाकर शंख फूंकना भी उसे अच्छा नहीं लगता था। वह तो मेहनत-मजदूरी करके जीने की बात करता था। पढ़ाई में कमजोर होने के बावजूद ज्योतिष ठाकुर के शब्दों में कहें तो उसने संयोगवश जी-जी-एम-पी कर लिया, माने कि घींच घाचकर मैट्रिक पास।
नब्बे के दशक में बिहार बोर्ड की परीक्षा में नकल करने-कराने की ऐसी आंधी बह रही थी कि पड़ोसी राज्य के बच्चे भी बिहार से मैट्रिक की डिग्री हासिल कर लेते थे। उस बहती गंगा में सुरेन्द्र ने भी हाथ धो लिया। वह थर्ड डिवीजन से मैट्रिक पास हो गया था।
ज्योतिष ठाकुर उसे ताने देते हुए कहते, “ससुर के नाती के लिए तो करिया अक्षर भैंस बराबर है, लेकिन मैट्रिक पास कर गए हैं। इसका सर्टिफिकेट चांदी के फ्रेम में मढ़ावा कर दीवार पर टांगने के लायक है। यह उसे रोज दिखाएं अगरबत्ती।”
यह तो कहिए कि सुरवा नक्षत्रबली था या उसकी पत्नी बदनसीब थी। उसे पत्नी इतनी अच्छी मिली कि उसने आते ही सबका मन जीत लिया। वह सुंदर तो थी ही, लेकिन ऐसी ही लड़कियों को सुशील, समझदार और खानदानी माना जाता है। उसकी पत्नी ने अच्छे नंबरों से मैट्रिक पास किया था।
सुरेंद्र ने अपनी शादी में नाटू को भी गाँव आने के लिए आमंत्रित किया था। बहुत दिनों के बाद अपने बड़े बेटे से मिलकर मां की आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे, लेकिन पिता ज्योतिष ठाकुर ने उससे सीधे मुंह बात नहीं की। पिता ने उसे कुत्ते की तरह दुरदुराते हुए कहा, “ खबरदार! तुम मेरी आंखों के सामने मत आना। तुमने मेरा ही नहीं, बल्कि पूरे खानदान का नाम मिट्टी में मिला दिया है। तुमने मुझे बिरादरी में मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा है।”
नाटू के होटल में काम करने की बात गाँव में किसी से छिपी नहीं थी। एक बार गाँव के वकील साहब ने उसे साहिबगंज के होटल में टेबल पर पोंछा लगाते हुए अपनी आंखों से देख लिया था। नाटू ने उनसे छिपने की बहुत कोशिश की, लेकिन वकील साहब से उसका सामना हो ही गया था। उन्होंने नाटू की पूरी कहानी सुनकर कहा,” बाकी बात जो है सो ठीक है, लेकिन तुम बाभन का बच्चा होकर होटल में टेबल साफ करते हो! यह बात मुझे पचती नहीं है। ऊपर से तुमने आदिवासी लड़की से शादी कर ली है।”
नाटू की कहानी केवल वकील साहब तक ही नहीं रुकी। यह फुसफुसाहट पूरे गाँव में फैल गई। किसी ने यह बात ज्योतिष ठाकुर के कानों में भी डाल दी। यह सब जान-सुनकर ज्योतिष ठाकुर गाँव में नाटू को बुलाने के एकदम खिलाफ थे, लेकिन सुरेंद्र ने जब उन्हें बुला ही लिया तो वे मन मसोस कर रह गए। उन्होंने नाटू को दो टूक शब्दों में कहा , “इस बार आ गए तो कोई बात नहीं, भविष्य में मुझे मुंह दिखाने के लिए गाँव में नहीं आना। मेरी खातिर तुम मर गए। तुम्हारे जाने के बाद मैं तुम्हें जीते जी पंच काठ दे दूंगा।…और हाँ, खबरदार जो तुमने जग-परोजन में खाने-पीने की किसी चीज को हाथ लगाया! तुम तो म्लेच्छ से भी गए बीते हो गए हो।”
सुरेंद्र जालंधर में फैक्ट्री में मजदूरी करता था। ओवरटाइम लगाकर-मिलाकर उसे प्रति महीने पंद्रह हजार रुपए मिल जाते हैं। उसके तीन बाल-बच्चे हुए, दो बेटा और एक बेटी। उसके बड़े बेटे को तो ज्योतिष ठाकुर ने यह कहकर अपने पास रख लिया था, “घर में एक बच्चा के रहने से दादा-दादी का भी मन लगा रहेगा।”
सुरेन्द्र की एक तो आय कम थी और दूसरे खर्चे में बढ़ोतरी हुई तो सुरेंद्र ने अपनी पत्नी को भी कारखाने में स्टोर कीपर के पद पर काम दिलवा दिया था। अब दोनों प्राणी की आय से घर का खर्चा निकल आता था।
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बिहार से अलग होने के बाद से झारखण्ड में राजनीतिक उथल-पुथल के साथ-साथ आर्थिक विकास की भी संभावना दीखने लगी थी। गोड्डा के पास ललमटिया कोलियरी तो बहुत पहले खुल गई थी। ललमटिया कोलियरी से कहलगाँव थर्मल पावर में कोयला सप्लाई के लिए रेलवे लाइन बिछाई गई। रेलवे लाइन में जिन लोगों की जमीन गई उनकी तो लौटरी लग गई। झारखण्ड की असिंचित भूमि में खास उपज तो होती नहीं है। जिनकी जमीन रेलवे ने ली उन्हें मुआवजे में मोटी रकम मिली। गोड्डा शहर को रेलवे लाइन से जोड़ दिया गया। यह सब कुछ विकास के नाम पर गोड्डा जिले में अडानी समूह के थर्मल पावर प्लांट से बांग्लादेश में बिजली सप्लाई के लिए हाई पावर प्लांट निर्माण के लिए हो रहा था।
24 जुलाई 1991 को भारत सरकार ने झारखण्ड में नई आर्थिक नीति की घोषणा की-लिबरलाजेशन, प्राइवेटाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन। विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था को सस्ते मजदूर, जंगल, पानी और पहाड़ की जरूरत थी। कॉर्पोरेट अडानी अंबानी को छूट देने की बात थी। शायद इसलिए नई औद्योगिक नीति बनाई गई। जो भी कॉर्पोरेट झारखण्ड में निवेश करेगा उसके लिए झारखण्ड के कानून को निरस्त कर दिया जाएगा। मसलन, संथाल परगना काश्तकारी कानून, छोटा नागपुर काश्तकारी कानून, गैर आदिवासियों द्वारा झारखण्ड में जमीन नहीं खरीदने का कानून।
झारखण्ड के जल, जंगल और जमीन पर नियंत्रण करने के लिए यहाँ के कानून को निरस्त करने की योजना लागू की गई। झारखण्ड की खनिज संपदा-लोहा, कोयला,तांबा,सोना, चांदी, हीरा जैसे बहुमूल्य पदार्थ का विपुल के दोहन के लिए झारखण्ड के विभाजन को जरूरी समझ गया।
इधर झारखण्ड वासियों ने बड़े उद्योगों का विरोध करना शुरू कर दिया था। 6 दिसंबर 2008 को आमगाछी पोखरिया पावर प्लांट के विरोध में जन आन्दोलन रैली में गोली चली। आमगाक्षी पोखरिया में प्रस्तावित पावर प्लांट को लेकर कई गाँव के रैयतों ने इसके विरोध में विशाल रैली निकाली। आमगाक्षी से जनआन्दोलन रैली में सैकड़ों की तादाद में लोग काठीकुंड की ओर जा रहे थे। इसी क्रम में बड़तल्ला मोड़ में व चांदनी चौक से कुछ दूरी पर ग्रामीणों व पुलिस के बीच हुई झड़प में कई लोग पुलिस की गोली के शिकार हुए।
दुमका से उत्तर “दामिए-ए-कोह” में फायरिंग की घटना घटित हुई। झारखण्ड के जवानों ने कॉर्पोरेट का प्रतिकार किया। कोलकाता की एक कंपनी को पानी के लिए ठेका दिया गया था, गाँव वालों ने इसका जोरदार विरोध किया।
आदिवासियों से समझौता करने के लिए सरकारी पहल के तहत डीसी मस्तराम मीणा को दायित्व दिया गया। गाँव वाले ने पुलिस की उपस्थिति के बिना उनसे मिलने की शर्त रखी। उन्होंने शर्त मान ली और वे आए। मीटिंग में चर्चा हुई। उन्होंने कहा, “ आखिर आप गाँव वाले कंपनी को काम करने का अधिकार क्यों नहीं देना चाहते हैं?”
तो जो तथ्य सामने उभर कर आया वह बहुत चौंकाने वाला था। लोगों ने बताया, “ हुजूर! पाकुड़ के कोयला खदान पचुवाड़ा में विस्थापितों को एक छदाम मुआवजा नहीं मिला, इसलिए हम लोग जमीन नहीं देंगे।”
मस्तराम मीणा ने कहा, “ संथाल परगना काश्तकारी कानून के कारण कोई भी आपकी जमीन नहीं ले सकता है।”
अखबार में यह बात आई। सच का साथ देने के कारण डीसी का तबादला हो गया।
दूसरे डीसी ने कोयला खदान बनाना शुरू किया। युवकों ने अपनी गिरफ्तारियां दी। उस रैली में 12,000 लोग शामिल थे। गिरफ़्तारी दी जाने लगी। रैली को रोकने के लिए दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज से 3,000 सिपाही बुलाकर तैनात किए गए। पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। संथालों ने तीर-धनुष निकला। तीर चले। एक पुलिसकर्मी घायल हुआ, एक की मौत हुई और दो घायल की रिम्स अस्पताल में मौत हो गई। प्रशिक्षित युवाओं को नामजद बनाया गया। अन्य तीन हजार लोगों को भी नामजद किया गया, ताकि शक के बिना पर किसी को भी गिरफ्तार किया जा सके। इस आन्दोलन का यह लाभ हुआ कि दो कंपनी को छोड़कर बाकी सभी को वापस जाना पड़ा। सौ से अधिक कंपनियों की मंशा पूरी नहीं हो सकी। इस आन्दोलन की ताकत यह थी कि सरकार को कॉर्पोरेट को रोकना पड़ा।
टाटा के सौ साल सिंहभूमि के लोगों को समृद्ध नहीं बना सके। बेरोजगारी के कारण युवा पीढ़ी दर-बदर भटकती रही। औद्योगिक परियोजनाओं के कारण आदिवासी समुदायों को हटाने, पर्यावरणीय चिंताएं और सामाजिक-आर्थिक असमानताएं जैसी चुनौतियां बरकरार रही। कोरोना काल में देश के कोने-कोने से जब झारखण्ड के मजदूर अपने गाँव-घर वापस आए, उनमें से कुछ तो रास्ते में ही मर-खप गए, तब पता चला कि झारखण्ड में विस्थापन की क्या स्थिति है।
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मजमेबाज मदाड़ियों, जुआड़ियों को बाजार में मजमे लगाना खूब आता है। वे अपने फन में इतने माहिर होते हैं कि बियाबान में भी वे अपने जमुड़े के साथ डमरू और बांसुरी बजा कर भीड़ जुटा लेते हैं। लोग कौतूहलवश धीरे-धीरे वहाँ जमघट लगा देते हैं। खेल के दौरान उनके लोग तमाशबीनों की जेबों पर हाथ साफ कर लेते हैं। मजमेबाज को जो इनाम-इकराम मिलता है सो अलग।
अडानी ने भी गोड्डा में पावर प्लांट लगाने के पहले हवा बनानी शुरू कर दी थी। उसके समर्थक जगह-जगह लोगों को कन्विस करने लगे। स्थानीय नेताओं ने यह बीड़ा उठाया।
गोड्डा शहर के पास ही है-मोतिया गाँव। प्लांट को वहीं बनना था। मोतिया के लोग अपनी जमीन देने के लिए सहमत नहीं थे। ज्योतिष ठाकुर के पास खेती की जमीन तो बची नहीं थी, बचा था दस पंद्रह कट्ठा जमीन पर बना झोपड़ीनुमा घर और एक छोटी सी घर बाड़ी। उस जमीन भी कंपनी की आंख लगी थी। विरोधियों के सरगना थे ज्योतिष ठाकुर। ज्योतिष ठाकुर गरीब भले ही थे, लेकिन इलाके में मानिंद लोगों में उनकी गिनती होती थी।
ज्योतिष ठाकुर अपने पुरखों की जमीन को बेचने के लिए कतई तैयार नहीं थे। उनकी देखा-देखी गाँव के कई लोगों ने विद्रोह का बिल्कुल बजा दिया था। अदानी पावर प्लांट के लोगों ने गोड्डा जिला परिषद के अध्यक्ष को करोड़ों घूस देकर उन्हें कन्विंस करने का जिम्मा दिया। गोड्डा जिला परिषद के अध्यक्ष सूरज सिंह ने एक चाल चली। उन्होंने ज्योतिष ठाकुर के बेटे सुरेंद्र को फोन करके गाँव बुलाया और उसे लुभावने सपने दिखाए। सपना की चक्र चौथ में सुरेंद्र की आंखें चंदिया गई और वह उनके घलुवे में जल्दी ही आ गया।
एक दिन दोपहर में पंडिताइन ने ज्योतिष ठाकुर के सामने भोजन की थाली रखते हुए कहा, “ आज जिला परिषद के अध्यक्ष सूरज सिंह आए थे।”
“ क्यों? वे क्या बोल रहे थे?, ज्योतिष ठाकुर चौंके।
पंडिताइन उनके करीब बैठकर बोली, “ मैं नहीं जानती मामला क्या है!…लेकिन वह शाम में फिर आएगा। बोल रहा था काका से कुछ जरूरी बातें करनी हैं।
पत्नी की बातें सुनकर ज्योतिष ठाकुर थोड़े गंभीर हो गए। उन्होंने चुपचाप भोजन किया और बाहर जाकर अपनी झिलंगी खाट पर लेट गए। उन्होंने बहुत कयास लगाया पर वे किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके। सवालों के भवन में डूबते-उतराते न जानें कब उनकी आंखें लग गई। शाम में गाँव के मुखिया, सरपंच, विधायक और कुछ ग्रामीणों के साथ आकर सूरज सिंह ने उन्हें जगाया तो वह हड़बड़ा कर उठ बैठे। उन्होंने अपने बेटे सुरेंद्र को आवाज़ लगाई और फिर खुद ही कुर्सियां निकालने के लिए लपके।
सूरज सिंह ने कहा, “आप निश्चिंत होकर बैठिए काका! हम लोग सब इंतजाम कर लेंगे।”
सूरज के साथ आए युवकों ने दलान में नीम के नीचे चारपाई दरी बिछाकर सबके बैठने का इंतजाम कर दिया। उन युवकों में ज्योतिष ठाकुर का बेटा सुरेंद्र भी शामिल था। आनंद-फानन में चाय-बिस्कुट, पान-सुपाड़ी,खैनी बीड़ी का इंतजाम हो गया।
एक अरसे के बाद ज्योतिष ठाकुर के दलान में इतने लोगों का जुटौन हुआ था। मुडे़र पर बैठी चिरैया, डाल पर बैठा कौवा और गाँव भर के कुत्ते माजरा भांपने के लिए बेताब थे। बच्चे अपना खेलना भूल कर थोड़ी दूर से तक झांक कर रहे थे। पड़ोस की औरतें पंडिताइन के साथ किवाड़ की वोट में कनसुई लेने बैठी थी।
दुआ-सलाम, पांव लागी, क्षेम-कुशल और दुनियादारी की बातें करने के बाद सूरज सिंह ने मुद्दे की बात शुरू की, “ बात यह है पंडित जी, अडानी कंपनी ने अपने गाँव में पावर हाउस लगाने की तैयारी कर ली है।
अडानी को पावर प्लांट के लिए बारह सौ सत्तर एकड़ भूमि की जरूरत है, जिसमें उसे केवल पाँच सौ सड़सठ एकड़ जमीन मिली है। उसमें भी मोतिया गाँव के लोग अपनी जमीन देने से विरोध कर रहे हैं। झारखण्ड की ऊसर भूमि पर उपज ही कितनी होती है? पुरखों बंटवारा होते-होते अब लोगों के जमीन ही कितनी बची है? झारखण्ड वासियों की स्थिति बकरी के पाँच बच्चों की तरह है। जैसे बकरी का दो बच्चा जब मां की थन से दूध पीता है, तो तीन बच्चा भूखे पेट हवा में भूखे पेट उछलता-कूदता रहता है। लोगों के पास इतनी कम जमीन है कि उसमें से अगर एक दो भाई का पेट भर जाए तो यही काफी है, बाकी दो भाई दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं। ऐसी स्थिति में रोजी-रोटी के लिए जरूरत है उद्योग की। यहाँ उद्योग बढ़ेगा तो लोगों को रोजगार मिलेगा, कारोबार बढ़ेगा, आमदनी बढ़ेगी, खुशहाली बढ़ेगी। उन्हें ऊपर से जमीन का मुआवजा मिलेगा, नौकरी मिलेगी सो अलग। गाँव के अनेक किसान जमीन देने के लिए तैयार हैं। इसमें आपकी सहमति भी जरूरी है। बाकी फैसला अब आपके हाथों में है।”
“ मेरी क्या औकात है सूरज! मेरे दस-पंद्रह कट्ठा जमीन से क्या प्लांट लग जाएगा?”, ज्योतिष ठाकुर ने कहा।
“ बूंद-बूंद से तालाब भरता है पंडित जी। आपके सभी पट्टीदार राजी हैं, आपके सभी यजमान राजी हैं। अब आपकी सहमति का इंतजार है। आखिर सुरेंद्र को भी नौकरी चाहिए कि नहीं?, सूरज ने कहा।
ज्योतिष ठाकुर ने कर जोड़ते हुए कहा, “पंचो! घरबास की जमीन तो हमारे पुरखों की डीह है। यह आखिरी निशानी है। हम अपने पुरखों की धरोहर को कैसे बेच सकते हैं?”
सूरज ने ज्योतिष ठाकुर की आंखों में सुरमई सपने बुनते हुए कहा, “एक बात बताऊं पंडित जी, समय के साथ-साथ आदमी को भी बदलना चाहिए। अपने गाँव इलाके के लोगों की दशा तो आप देख ही रहे हैं। यहाँ के लोगों के पास ना तो खेती बची है और ना कोई रोजगार। मैं आपसे ही पूछता हूं आप विद्वान हैं, पुरोहित हैं, लेकिन पूजा पाठ से आपका और आपके परिवार का भरण-पोषण हुआ? यदि इस पेशे से उनका पेट चल जाता तो वे देश छोड़कर परदेस क्यों जाते? आपकी तरह इस गाँव के बाकी पंडितों का भी यही हाल है। उनके बाल बच्चे भी रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे हैं। यदि आप लोग चाहेंगे तो इस गाँव का नक्शा बदल जाएगा। प्रकृति ने यहाँ यहाँ पहाड़, पत्थर, जंगल,नदी सब-कुछ दिए हैं। पावर प्लांट वाले अडानी ग्रुप यहाँ का सौंदर्रयीकरण करेंगे। यहाँ बड़े बड़े मौल बनेंगे, सुख सुविधा के सारे साधन यहाँ उपलब्ध होंगे, गाँव के लड़कों को यहाँ रोजगार मिलेगा। आसा पास सुंदर पार्क बनेगा, देसी-विदेशी फूल लगेंगे। हमारा गाँव पर्यटन स्थल बन जाएगा।”
“ तुम सही बतिया रहे हो बेटा लेकिन सवाल उठता है की इस इलाके में खेती गृहस्थी नहीं होगी, तो यहाँ के किसान क्या करेंगे? वे भूखे मरेंगे।”, ज्योतिष ठाकुर के चेहरे पर चिंता की रेखाएं झलक रही थीं।
मुखिया ने उनकी बातचीत में दखल देते हुए कहा, “ पंडित जी! आप इलाके के विकास की बात सोचिए। आज जो किसान-मजदूर भूखे मर रहे हैं कल उन्हें रोजगार मिलेगा। झारखण्ड की खेती में क्या रखा है? लागत भी लौटकर नहीं आती है। किसान महंगे दाम पर खाद बीज खरीदते हैं और उन्हें औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है। जो किसान बैंक से लोन लेकर खाद बीज खरीदते हैं, वे अपने लोन की भरपाई भी नहीं कर पाते हैं। खबरों में पढ़िए। दक्षिण भारत में क्या हो रहा है। लोन नहीं चुका पाने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं।”
सूरज ने बातचीत का सूत्र अपने हाथों में लेते हुए कहा, “ पंडित जी जब यहाँ प्लांट लगेगा, तो नए-नए स्कूल कॉलेज अस्पताल खुलेंगे। अपना कस्बा बाजार बन जाएगा यहाँ के लोगों को कितने रोजगार मिलेंगे। अपने गाँव इलाके में खुशहाली की लहर दौड़ जाएगी पंडित जी। किसानों को जमीन की आवाज में उचित मुआवजा मिलेगा। मुआवजे की रकम से जो ब्याज आएगा वह जमीन की उपज से ज्यादा होगी। हाथ मैला ना गोड़ मैला। ना सूखे का डर ना बाढ़ का।”
“…और इससे यहाँ के लोगों को क्या मिलेगा बेटा? बिजली की सप्लाई तो बांग्लादेश में होगी। लाभ कंपनी को होगा।”, पंडित जी ने अपनी आंखें मिचचाते हुए कहा।
“ झूठ क्यों बोलूं पंडित जी, हम लोगों को 25% बिजली मिलेगी। हमलोगों को ठेकेदारी मिलेगी। यहाँ कंस्ट्रक्शन का काम शुरू होगा तो लोग कामकाज के लिए दिल्ली और मुंबई नहीं जाएंगे? अब सोचिए यहाँ के ठेकेदारों के अंडर में कितने इंजीनियर, ओवरसियर और मजदूरों को काम मिलेगा।”, सूरज ने कहा।
दलान में बैठे लोग सूरज की बातें सुनकर प्रमुदित हो रहे थे। लोगों के चेहरे पर इस तरह से खुशी छाई हुई थी मानो घने कोहरे में उन्हें धूप के आसार दिखाई दे गए हों या तपती दोपहरी में किसी ने आइसक्रीम खिलाई हो।
ज्योतिष ठाकुर के पट्टीदार और गाँव के कुछ बूढ़े-बुजुर्ग भी वहाँ बैठे हुए थे। उनमें से बुजुर्ग ने कहा, “भाई सुनते हैं घूरे के भी दिन घूरते हैं। अडानी के आने से इतना लाभ तो जरूर हुआ कि रेलवे लाइन बिछाई गई, सड़कें बन गई और उस इलाके की जमीन की कीमत बढ़ गई। कहावत है कि पंचों के मुंह से परमेश्वर बोलते हैं। आप लोग जो प्रस्ताव लेकर आए हैं मुझे इसमें कोई नुक्स दिखाई नहीं देता है।”
ज्योतिष ठाकुर को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उन्होंने केवल यही समझा की मोतिया गाँव का शहरीकरण हो जाएगा तो खूब उन्नति होगी। उन्होंने बेखुदी में अपने जमीन को बेचने की मंजूरी दे दी। मीटिंग समाप्त हो गई थी। लोगों के चले जाने पर ज्योतिष ठाकुर फिर से अपनी झिलंगी खाट पर लेट गए थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उन्होंने अच्छा किया या बुरा?
बाहर अंधेरा छा गया था। बिजली चली गई तो पंडिताइन ने एक ढिबरी जलाकर दालान में रख दी। पंडिताइन ज्योतिष ठाकुर के पायताने बैठकर उनका पैर दबाने लगी। ढिबरी की पीली रोशनी में पंडिताइन का चेहरा दमक रहा था। ज्योतिष ठाकुर ने उन्हें झिड़कते हुए कहा, “चल हट, बरसों बाद आई है लाड़ जताने।”
पंडिताइन बोली, “ बड़ा होनहार लड़का है सूरज। कोदो खाकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं की है उसने। अपना सुरेंद्र भी उसकी हरदम बड़ाई करता रहता है।”
वक्त और बुढ़ापे की मार ने ज्योतिष ठाकुर को धनुष की तरह झुका दिया था, जिस पर केवल आज की प्रत्यंचा चढ़ी थी। उन्होंने आज अपनी आन भी तोड़ दी। अच्छे दिन आने वाले हैं यह सोचकर उनकी आंखों की नींद काफूर हो गई थी। उनके पेट में गुड़गुड़ाहट हो रही थी। गुड़गुड़ाहट नहीं भूचाल। होत विहान, होत प्रात, इसी बेचैनी में उन्होंने रात काटी। भोर पहर में उनकी आंखें लगी ही थी कि चिरई-चुनमुन की आवाज सुनकर उनकी आंखें खुल गई। फरीछ हो गया था। पूर्व के आकाश में सूरज का लाल गोला ऐसा लग रहा था मानो किसी बच्चे की गेंद लुढ़क कर क्षितिज पर आ गई हो। सुबह बहुत सुहानी लग रही थी।
उन्होंने गुहाल में खूंटे से बंधी गाय को बाहर निकाल कर नाद के पास बांध दिया और उसके लिए सानी-पानी लगा दिया। गाय ने नाद में मुंह डालकर सूंघा और वह ज्योतिष ठाकुर का मुंह जोहने लगी। ज्योतिष ठाकुर ने थोड़ी-सी हरियरी और चोकर नाद में छिड़कते हुए कहा, “ रोज-रोज खल्ली-चोकर कहाँ से आएगी लक्ष्मी? तुम्हारे नखरे है कि बढ़ते ही जा रहे हैं। कुछ दिन सबर करो। अपने गाँव में प्लांट लग जाएगा तो कुछ आमदनी बढ़ेगी। तब खूब मजे करना।”
गाय ने अपनी मुंडी हिलाई और नाद में थूथन डुबोकर वह हौले-हौले अपनी पूंछ हिलाने लगी। ज्योतिष ठाकुर ने अपना अंगोछा कंधे पर डाला और खैनी मलते हुए घर से बाहर निकले।
उन्होंने विहंगम दृष्टि से अपनी बस्ती को देखा। अभी पावर प्लांट बनने की योजना ही बन रही थी, लेकिन गाँव में अचानक परिवर्तन दिखने लगा था। जिन लोगों ने पावर प्लांट के लिए अपनी जमीन बेच दी थी, वे लोग मुआवजे की रकम से सड़क के दोनों किनारे पर दुकानें बना रहे थे। फूस-मिट्टी के घरौंदों की जगह पक्के मकान बन रहे थे। कभी यहाँ घनी अमराई और बंसवारी हुआ करती थी। इधर अकेले आने में डर लगता था। यहाँ जानवरों का कंकाल पड़ा रहता। कौवे, कुत्ते, सियार और गिद्ध आपस में छीना-झपटी करते रहते।
गाँव के बाहर शिवाला के चबूतरे पर बैठे उनके मित्र रामधनी मिश्र ने चुटकी ली, “आखिर तुम भी पूंजीपतियों के घलुए में आ ही गए ज्योतिष ठाकुर? तुम्हारी देखा-देखी गाँव के बाकी किसानों ने भी अपनी रजामंदी दे दी।”
ज्योतिष ठाकुर बोले, “ मेरी क्या बिसात है मिसिर जी। गाँव में कुछ लोगों ने अपनी जमीन पहले ही बेच दी है। मैंने भी सोचा कि गाँव में पावर प्लांट लगेगा तो गाँव के लोगों को रोजगार मिलेगा इसमें बुरा क्या है?”
“…. और खेती जाए भाड़ में? क्या पावर प्लांट में लोग अनाज पैदा करेंगे?, मिसिर जी बोले।
“ ….आखिर पावर प्लांट तो आकाश में नहीं लगेगा मिसिर जी! उसकी खातिर जमीन चाहिए कि नहीं?”, ज्योतिष ठाकुर ने कहा।
“ अपने देश में बंजर भूमि की कौन सी कमी है ज्योतिष ठाकुर? यहाँ की तीन फसला जमीन पर कारखाना बनाने के पीछे कौन-सी मंशा और नीयत है, उसे समझो। उनकी नजर गोड्डा शहर को हड़पने पर लगी है। काठीकुंड में जिन लोगों के विरोध के लिए इतना संघर्ष किया गया, आज हमलोग उस पूंजीपतियों की गोदी में जाकर बैठ गए। कलिंग नगर, दादर, धड़साना, गढ़ी हरसारू और नंदीग्राम में पूंजीपतियों की इसी नीति का विरोध हो रहा है। वहाँ किसान अपनी जान दे रहे हैं। समझे कि नहीं?, रामधनी में मिसिर ने कहा।
“ सूरज तो कहता है कि किसानों को जमीन के मुआवजे से मिले रूपयों का ब्याज उस खेत की फसल से भी ज्यादा होगा।”, ज्योतिष ठाकुर ने कहा।
“ सब को चूतिया बना रहा है सूरज। बैंक में रखा हुआ रुपया धीरे-धीरे खर्च हो जाएगा। हाँ! अब यहाँ बड़े बड़े माल बनेंगे, पब्लिक स्कूल खुलेगा, निजी अस्पताल बनेगा, यहाँ ब्यूटी पार्लर और मसाज सेंटर खुलेगा। इस बुढ़ौती में गोरी-गोरी में मेमिन से खूब मालिश करवाना समझे। बस टेंट में रुपए होने चाहिए।”, रामधनी मिसिर जी ने कहा।
“ देश सब जगह औद्योगिककरण हो रहा है। उद्योग बढ़ेगा तो रोजगार के अवसर मिलेंगे। मैंने तो हामी भर दी है मिसिर जी! अब जो होगा देखा जाएगा, ओखल में सर दे दिया तो मूसल से क्या डरना?”, ज्योतिष ठाकुर ने कहा और वहाँ से चलते बने।
दिन, महीने और साल बीते। ऋतु में आई ऋतु में गई। इस दौरान गंगा में ढेर सारा पानी बह गया।
एक समय था जब सूरज की बातें सुनकर ज्योतिष ठाकुर का ही नहीं, बल्कि बटोर में बैठे हुए सभी लोगों का जी जुड़ा गया था। उनके मन की ठूंठ पर नई-नई कोंपल फूटने लगी थी, कोयल कूकने लगी थी। लोगों की आंखों में हसीन सपने बुने जा रहे थे। सर्किल रेट से कम दाम पर उनकी जमीन औने-पौने दाम पर खरीदी जा रही थी।
रामधनी मिश्र को मौका मिल गया था। एक दिन उन्होंने ज्योतिष ठाकुर से कहा, “ यह सब क्या हो रहा है ज्योतिष ठाकुर? कहाँ गया तुम्हारा सूरज और उसके वादों का क्या हुआ? आंखें खोल कर देखो, यहाँ कैसी लूट मची हुई है। पचास लाख कीमत वाली जमीन का पाँच लाख मुआवजा दिया जा रहा है। जबकि सेक्सन 26 के तहत उपज के मुताबिक नहीं, बल्कि मार्केट के मुताबिक जमीन खरीदने की शर्त थी-ट्रांसपेरेंसी, रिकॉग्निशन, फेयर कंसेशन, रिहैबिलिटेशन की बात थी।
जमीन देने वालों को नौकरी देने की बात थी। …कारखाने में नौकरी का वादा चुनावी वादे की तरह केवल झांसा साबित हुआ। स्थानीय मजदूरों से साफ-साफ कह दिया गया कि यहाँ लोकल मजदूरों की कोई जरूरत नहीं है।”
“ धोखा तो हुआ है मिसिर जी! मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।”, ज्योतिष ठाकुर ने कहा।
“ आगे आगे देखो होता है क्या! ट्रायल बेस पर उत्पादन से ही इलाके में हाहाकार मच गया है। फसल की बर्बादी के साथ-साथ पर्यावरण पर खतरा मंडराता नजर आने लगा है। गौर करो आसमान में 900 फीट धुआं 8 मीटर का घेरा बनाते हुए सुरसा की तरह मुंह बाये प्रदूषण फैला रहा है। पावर प्लांट ऐसा राक्षस है, जिसे जिंदा रखने के लिए रोज 18,000 टन कोयला जलानी पडती है और 36 मिलियन टन पानी पिलाया जाता है। यहाँ की जमीन में जल स्तर वैसे भी कम है। गंगा से 36 मिलियन टन पानी जरूरत के हिसाब से मंगवाने की जरूरत पड़ रही है।”, रामधनी मिसिर ने कहा।
ज्योतिष ठाकुर ने कहा, “ मुझे उम्मीद थी कि मुआवजे के पैसे से कहीं और घर बना लेंगे। बेटे को एक अदद नौकरी तो मिल जाएगी। नौकरी तो मिलनी नहीं थी,सो नहीं मिली। नौकरी मिली भी तो एक बड़े मॉल में गार्ड की।”
पावर प्लांट बनने के साथ ही गोड्डा बाजार की तस्वीर और तकदीर बदल गई। छोटी-छोटी दुकानों की जगह बड़े-बड़े होटल, दुकान और माल बन गए। वहाँ के लोग-बाग इस बात पर खुश हैं कि शहर में काफी विकास हो रहा है। वहाँ विकास का क्या हाल है कोई सुरेंद्र से जाकर पूछे और वहाँ के पर्यावरण पर हो रहे प्रभाव को देखें।