रंगमंच

‘रंग यात्रियों के राहे गुजर’: संस्मरण में कथात्मकता

मुंबई की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था, ‘चित्रनगरी संवाद मंच’ के अंतर्गत 1 दिसंबर 2024 रविवार के दिन, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट गोरेगांव के मृणालताई हाल में, सेतु प्रकाशन द्वारा प्रकाशित साहित्य एवं कला समीक्षक प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी की संस्मरणात्मक कृति ‘रंग यात्रियों के राहे गुजर’ पर विस्तार पूर्वक चर्चा हुई।

लेखकीय वक्तव्य के दौरान प्रो. त्रिपाठी ने कहा, किसी योजना के तहत या मनन-चिंतन करके यह पुस्तक नहीं लिखी गई। 20-25 सालों से लगातार नाटक देखता रहा, उन रंकर्मियों से मिलता रहा, उनमें कुछ लोगों से व्यक्तिगत तौर पर घनिष्ठता बढ़ी। चाहे वो हंगल साहब, हबीब तनवीर, सत्यदेव दुबे, डॉ. श्रीराम लागू, बंसी कौल, अरूण पांडेय, दिनेश ठाकुर, विजय कुमार हो। ये लोग रंगमंच से गहरे जुड़े रहे रंगमंच पर और रंगमंच के बाहर भी। जब लगा कि इनके बारे में लिखे बिना न रहा जाएगा, तब संस्मरण लिखना शुरू हुआ। यह कोई भी नहीं कह सकता कि ये लोग सबसे अच्छे रंगकर्मी थे इसीलिए इन पर संस्मरण लिखा गया। यह पुस्तक कितने काम की है, इससे मेरा कुछ लेना देना नहीं है, पर जब मैं इसको पढ़ता हूं, तो उनके काम में खो जाता हूं, सुकून मिलता है और मेरी आंखों से आंसू भी गिर जाते हैं।

मराठी साहित्य के प्रख्यात उपन्यासकार एवं मीडिया लेखक अभिराम भड़कमकर जी ने, लेखक के बारे में बताते हुए कहा, उनकी और त्रिपाठी की मुलाकात सिर्फ एक साल की है लेकिन उनका व्यक्तित्व ऐसा है, लगा ही नहीं कि वो एक साल पहले ही मिले हैं। उनकी विचारधारा समान है, वे दोनों, किसी भी मुद्दे पर एक-दूसरे के साथ खुलकर विचार-विमर्श करते हैं। उन्होंने कहा, ‘रंग यात्रियों के राहे गुजर’ उत्सुकतावश दो दिन में पढ़ ली। इसकी वजह यह थी, जिनके बारे में सत्यदेव ने लिखा है, सिर्फ हबीब तनवीर को छोड़कर, बाकी सभी रंगकर्मियों के साथ उनकी बातचीत हुई थी। पुस्तक पढ़ते हुए, रंगकर्मियों का जो व्यक्तित्व उनके सामने उभरा वो वैसा ही था जैसा सत्यदेव ने बयान किया है। कई जगह उन रंगकर्मियों के नए पहलुओं से भी वो रूबरू हुए। किताब पढ़ते हुए, उन्हें ऐसा लगा कि वो उन लोगों से दोबारा मिल रहे हैं, उनसे बातचीत कर रहे हैं। ऐसे दिग्गज व्यक्तियों के बारे में लिखते हुए, बहुत सी मर्यादाएं आती हैं, उनका महिमामंडन होने लगता है लेकिन इन सारी चीजों को लांघकर उनके अलग-अलग पहलुओं को त्रिपाठी ने उजागर किया गया है।

संस्मरण लिखते हुए, मंचीय जीवन के साथ-साथ उनके नीजी जीवन के पहलुओं को भी बड़े सम्माननीय ढंग से चित्रित किया गया है। यह किताब हमारी सांस्कृतिक ऐतिहासिकता का उदाहरण है। रंगमंच पर पैशनेट से काम करने वालों के लिए त्रिपाठी जी के अंदर भक्ति है, मन में श्रद्धा, प्रेम, मान-सम्मान है। उनके अंदर का समीक्षक, उन रंगकर्मियों को परखकर उनकी मनुष्यता की समीक्षा भी करता है। उन लोगों के अंदर की अच्छाई और बुराई की भी बात करता है, बेबाकी से लिखता है और यह लिखते हुए उनका कहीं अपमान नहीं होता, उनके सम्मान को बरकरार रखते हुए वो अपनी बात रखते हैं। कहा जाता है, थिएटर इंसान को बेहतरीन इंसान बनाता है। यह पुस्तक उन अद्भूत रंगकर्मियों के बारे में है, जिन्होंने हमारी जिंदगी पर प्रभाव डाला था, हमें बच्चों की तरह उंगली पड़कर चलना सिखाया था, आज उनकी वह उंगली छूट चुकी है। यह कहना सही होगा, जहाँ रंगकर्म हैं, वहाँ सत्यदेव त्रिपाठी हैं।

लेखक एवं रंगकर्मी, विजय पंडित जी ने कहा, लेखक के उस कार्य पर चर्चा हो रही हैं, जो कार्य अधिकांश: साहित्य जगत के लोगों के बीच में बहुत ज्यादा ग्राह्य नहीं होता। नाटक ही पहले ग्राह्य नहीं होता, एक प्रकाशक के लिए किसी नाटक की पुस्तक का प्रकाशन करना, उसके लिए फायदेमंद नहीं होता। फिर साहित्यकारों के नाटकों पर शोध तो करा देते हैं, पर नाटक देखना उनको अच्छा नहीं लगता, उनके पास नाटक देखने के लिए वक्त नहीं होता। नाटक पर किताब तो लिख देंगे, लेकिन किसी नाटक से उनका परिचय नहीं होता। त्रिपाठी जी ने, अगर यह पुस्तक न लिखी होती, तो हिंदी रंगमंच का बहुत कुछ पीछे छूट जाता। हिंदी नाटक के पुरोधा, जो अब हमारे बीच नहीं हैं, हम उनसे परिचित न हो पाते। यह पुस्तक रंगमंचीय लोगों के लिए धरोहर के रूप में है। जिन व्यक्तियों के बारे में लिखा गया है, उनकी कई कहानियां इसमें समाहित हैं। यह पुस्तक संस्मरण नहीं कहानियों का समुच्चय है। अगर भाषा-शैली की बात करें, तो उनके लिखने की शैली बहुत अलग है। रंगमंच की बातों में मीर, गालिब, कबीर, महादेवी वर्मा कैसे आते हैं। पाठकों की नब्ज पकड़ना वो अच्छी तरह जानते हैं।

एन.एस.डी से सेवानिवृत्त प्रो. सुरेश भारद्वाज ने कहा, बहुत कम ऐसी पुस्तकें होती है, जिन्हें आप पढ़ने के लिए हाथ में ले और पूरा पढ़ने के उपरांत ही साँस लेते हैं। सत्यदेव की यह पुस्तक, उन्हीं पुस्तकों में शुमार है। नाटक करने वाले बड़े अक्खड़ होते हैं और जितने रंगकर्मियों के विषय में त्रिपाठी ने लिखा है, उनका अक्खड़पन हमें दिखाई देता है। अगर यह किताब सत्यदेव ने न लिखी होती तो इन विभूतियों के बारे में हम जान न पाते। जिन व्यक्तियों के बारे में इन्होंने लिखा है, उनके साथ एक जीवन जिया है, उनके काम को देखा है, उनके काम को परखा है। बड़ी सादगी के साथ भाषा का जंजाल न बुनते हुए सहजता से अपने शब्दों में ढालते हैं। उनके लिखने की शैली बड़ी अद्भुत है, यह उनके दिल के उद्गार है। पुस्तक पढ़ते हुए लगा, इन रंगकर्मियों के जीवन वृत्त, चलचित्र के समान, नज़रों के समक्ष चल रहा है। यह पुस्तक कथा साहित्य के बराबर है।

रंगकर्मी एवं सिने अभिनेता विजय कुमार ने, वक्तव्य के दौरान कहा, ‘रंग यात्रियों के राहे गुजर’ पुस्तक में सभी दिग्गज रंगकर्मियों के जीवन एवं उनके कार्यों के बारे में बड़ी सूक्ष्मता से लिखा गया है। पुस्तक में वर्णित सभी रंगकर्मियों ने अपना समस्त जीवन रंगमंच के लिए होम कर दिया। चाहे वह हबीब तनवीर हो, हंगल साहब हो, सत्यदेव दुबे हो, बंसी कौल इत्यादि हो। मेरे विचार से, यह संस्मरण नहीं है, बल्कि एक ऐसा दस्तावेज है, जो उनके अलावा कोई और नहीं लिख सकता था। पुस्तक की चर्चा के अलावा यह काम भी होना चाहिए कि यह किताब लोगों तक कैसे पहुंचाई जाए, ताकि लोग उन्हें और उनके नाटकों को जाने, समझे और सीखें। किताब में कहीं-कहीं पुनरावृत्ति हुई है, इससे उन्हें बचना चाहिए। त्रिपाठी जी ने, अनेकों नाट्य समीक्षाएं लिखी हैं, परंतु नाटकों की खामियों को इस स्वरूप में इंगित करते हैं कि सामने वाले को बुरा न लगे और उनकी लिखी बात भी उस तक पहुंच जाए।

कार्यक्रम में, अध्यक्ष के रूप में पधारे सुप्रसिद्ध उपन्यासकार व नाटककार सुरेन्द्र वर्मा जी ने कृति की तारीफ अपने अंदाज में करते हुए कहा, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद, अब मैं अपनी आत्मकथा नहीं लिखूंगा। मेरी जीवनी त्रिपाठी ही लिखेंगे। उल्लेखनीय है, सुरेन्द्र वर्मा काफी कम कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। उनकी मौजूदगी ने इस कार्यक्रम को विशेष गरिमा प्रदान की।

परिदृश्य प्रकाशन के प्रकाशक रमन मिश्र ने सभी वक्ताओं एवं श्रोताओं का आभार प्रकट किया।
डॉ. मधुबाला शुक्ल ने कार्यक्रम का संचालन सफलता पूर्वक संपन्न किया।

.

मधुबाला शुक्ल

लेखिका प्राध्यापक व सुपरिचित समीक्षक एवं संस्कृति कर्मी हैं। सम्पर्क- vinitshukla82@gmail.com
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
राज कुमार सिंह- वाराणसी
राज कुमार सिंह- वाराणसी
1 month ago

साहित्य एवं कला समीक्षक प्रो. सत्यदेव त्रिपाठी की संस्मरणात्मक कृति ‘रंग यात्रियों के राहे गुजर’ पर विस्तार पूर्वक चर्चा 1दिसंबर “2024 को हुई और उसकी पूरी रिपोर्ट पढ़कर यह पता चल गया कि रंगकर्मियों को करीब से समझने के लिए एक अद्वितीय कथा साहित्य का सृजन डा सत्यदेव त्रिपाठी जी ने कर दिया है । नि:संदेह यह अलग विधा मे हस्ताक्षर ही नही बल्कि मील का पत्थर है ।

Back to top button
1
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x