लेख
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भारतेंदु के नाटक 1857 की मशाल हैं
आज 9 सितम्बर को भारतेंदु की 174वीं जयंती के अवसर पर विशेष वैसे तो जब 1857 की क्रांति का…
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परती परिकथा : पात्रों की बहुलता के बीच” एक जैविक आंचलिक उपन्यास”
डॉ. अनुज प्रभात ग्राम्य जीवन और ग्राम्य में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों को साहित्य रचना में यदि विश्व पटल…
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सर्वं प्रिये ‘चारुहीनं’ वसंते: उर्फ़ वसंत खो गया है…!!
सम्पादक मित्रों से बात करने के कई बार बड़े जोखम होते हैं। अब देखिए – उस दिन हाल-अहवाल के…
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लेखक की ज्यामिति
लेखक की अपनी दुनिया होती है और उसी में वह तरह-तरह की कार्रवाई या पैंतरेंबाजी करता है। ज्यादातर लेखक…
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सूफी साहित्य में स्त्री छवि
स्त्री को लेकर मध्यकालीन भक्ति साहित्य में भारी द्वंद्व रहा है। भक्त कवियों ने स्त्री के सतीत्व की महिमा…
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दलित स्त्रीवाद की पृष्ठभूमि
आधुनिक काल में सर्वाधिक चर्चित विषय है स्त्री विमर्श। पितृसत्तात्मक मानसिकता के विरुद्ध स्त्रियों का एकजुट होना और उस…
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जेपी आन्दोलन के ‘विद्रोही का अनशन’
भ्रष्टाचार हमारे लिए न तो कोई नया शब्द है और न ही कोई नयी चीज। यह देश नामक शरीर…
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साहित्यिक प्रेरणा से निर्मित होता महात्मा
साहित्य को समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। प्राय: यह देखा जाता है कि किसी व्यक्ति या समाज…
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खुश्बू से भरी उस रात का जादू : एक आदिम रात्रि की महक
भारतीय साहित्य जगत का….. बल्कि कहें, वैश्विक ग्राम का जगमगाता, विश्वसनीय नाम है – फणीश्वरनाथ रेणु। रेणु जी किसी…
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प्रेमचन्द और केदारनाथ सिंह
मृत्युंजय पाण्डेय ‘प्रेमचन्द और केदारनाथ सिंह’ यह शीर्षक थोड़ा असहज लग सकता है। कहाँ कथा सम्राट प्रेमचन्द और…
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