लेख

परती परिकथा : पात्रों की बहुलता के बीच” एक जैविक आंचलिक उपन्यास”

 

 डॉ. अनुज प्रभात

  ग्राम्य जीवन और ग्राम्य में प्रयुक्त आंचलिक शब्दों को साहित्य रचना में यदि विश्व पटल पर कहीं से परखा गया तो अमर कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु के प्रथम उपन्यास ‘मैला आंचल’ को।  मैलाआंचल रेणु की ऐसी कृति है जिसने विश्व साहित्य को आंचलिक शब्दों से रु-ब-रू कराया। वैसे पूर्व में  प्रेमचंद का ‘गोदान’ और नागार्जुन का ‘ बलचनमा ‘ को भी आंचलिक उपन्यास कहा गया। किंतु ‘ मैला आँचल ‘ के आने के बाद आंचलिकता की परिभाषा बदल गई। रेणु ने गांव घर तथा समाज में प्रति व्यक्ति के द्वारा बोले गए शब्दों को सुरताल व ध्वनि के रूप में रखा। इसी के आधार पर समीक्षक के रूप में संयत और कठोर माने जाने वाले आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने मैला आँचल की समीक्षा करते हुए लिखा “मैंने हिंदी के 10 सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों की सूची प्रकाशित करवाई थी उसमें किसी को भी छांट कर स्थान दे सकता हूं। सचमुच हिंदी कथा साहित्य में कहीं यदि गत्यवरोध था तो मैला आंचल के प्रकाशन से वह दूर हो गया।

      नलिन जी के ये शब्द किसी मैला आंचल के लिए नहीं था बल्कि उपन्यास में प्रयुक्त उस भाषा और उन शब्दों के लिए था जो एक गांव को पीछड़े गांव का प्रतीक मानकर इस उपन्यास का कथा क्षेत्र बनाया गया है। इसलिए रेणु ने स्वयं लिखा -” इसमें फूल भी है, शूल भी, धूल भी,  गुलाल भी,कीचड़ भी है, चंदन भी, सुंदरता भी है, कुरूपता भी – मैं किसी से भी दामन बचाकर निकल नहीं पाया।

       रेणु की रचनाओं मे आंचलिकता का अवतरण 1954 में ‘मैला आंचल’ के प्रकाशन के साथ हुआ और लोगों ने आंचलिक साहित्य को पहचाना। उपरांत 1957 में एक और उपन्यास ‘परती परिकथा’ का प्रकाशन हुआ जिसे हम दूसरा आंचलिक उपन्यास कहते हैं।

     आज यहां हम ‘परती परिकथा ‘ की चर्चा करना चाहेंगे जिसका कथा क्षेत्र भी एक गांव ही है। पूर्णिया का इलाका ‘परानपुर’ जिसके सैकड़ों एकड़ धूसर, वीरान, बंध्या, बंजर धरती है। इस धरती का चित्रांकन रेणु जी ने उसकी पीड़ा की तरह किया है। ऐसी पीड़ा जो मां की पीड़ा होती है।

       ‘ परती परिकथा’ की कहानी आंचलिक होते हुए भी मैला आंचल से एकदम अलग है। मैला आंचल’ की कहानी ब्रिटिश उपनिवेशवाद से भारत की आजादी के तुरंत बाद की है तो परती परिकथा की जमीदारी उन्मूलन के तुरंत बाद की। इसमें रेणु ने जमीदारी प्रथा के अंत के साथ जब बंदोबस्ती व्यवस्था का आरंभ हुआ तो कैसे उग आये भ्रष्टाचार, घुस आदी का चित्रण किया है साथ ही भूदान नेताओं की स्वार्थपरता, राजनीतिक पार्टियों की धांधली एवं स्वतंत्र भारत की प्रगति और दुर्गति के बीच किसानों का भाग्य, उसका सुख दुख, उसकी समस्या का मार्मिक चित्रण है।

      इस उपन्यास में जमींदार शिवेन्द्र नाथ मिश्र सामंतवादी विचारधारा का पोषक है लेकिन उसका पुत्र जितेंद्र उर्फ जीत्तन जिसमें नायकत्व है वह, बदलते समय को पहचान कर नए परिवेश में समाज को लाना चाहता है। उसका मन परती भूमि की पीड़ा के प्रति है। वह सोचता है यदि भूमि परती रहेगी तो औद्योगिक समृद्धि व्यर्थ जाएगी। इसलिए इस धूसर वीरान परती भूमि का सदुपयोग होना चाहिए। इस हेतु जितेंद्र परानपुर इलाका के कालकूट को पीकर अमृत भरने की कोशिश में लग जाता है

       संदर्भ परती परिकथा यह 546 पृष्ठों का एक वृहद उपन्यास है। इसमें कुल पात्रों की संख्या 90 से भी अधिक है। यदि हम पुरुष पात्रों की गणना करें तो लगभग 65 हैं। शेष सभी स्त्री पात्र हैं। यह चर्चा इसलिए जरूरी है कि, किसी भी लेखक को इतने पात्रों को लेकर चलना और सभी पात्रों के साथ न्याय करना संभव नहीं हो पाता। किंतु रेणु ने इस उपन्यास में ऐसा कर दिखाया है। उन्होंने पात्रों के हाव -भाव, कद – काठी, रंग -रूप आदि के साथ-साथ व्यवहार विशेष को भी लेकर ही पात्रों को जीवंत किया है। अब जमींदार शिवेन्द्र नाथ मिश्र को ही ले लें,  तो उसका चित्रण करते हुए रेणु ने लिखा है – “शिवेंद्र माखन जैसे मन वाला है। रक्त चंपा की तरह शरीर का रंग, लाल होठ, छोटी-छोटी किंतु संवारी हुई मूछें, गाढ़ी लाल रंग की धोती, केसरिया रेशमी मिर्जई ढाकाई झीनी चदरी, जिसके कोर- छोर पर सुनहरी तारों की कारीगरी। उंगलियों में रत्न जड़ित अंगूठियां। “

        पात्र जलधारी लाल,  जितेंद्र के स्टेट का काम संभालने वाला मुंशी है पर उसे लोग सर्व शोधन लालदास भी कहते हैं।  इसके कद -काठी का वर्णन में रेणु ने लिखा है -” साठ साल से ज्यादा उम्र। लहीम -खहीम देह, खलील रंग नाटा कद और खिचड़ी दाढ़ी -मूछें वाली भेद भरी मुस्कुराहटें,  खेलती रहती है। दोनों कानों पर सफेद बालों के गुच्छे, गर्दन पर दाद के बड़े-बड़े चकतेऔर तांबूल रंजीत काले दांत। “

        इस उपन्यास में जितेंद्र का प्रबल विरोधी पात्र के रूप में लूत्तो है। उसके विरोधी होने का कारण जितेंद्र के पिता शिवेन्द्र हैं। लूत्तो के पिता लरेन शिवेन्द्र नाथ के साथ भारी विश्वासघात करता है। इसके लिए उसे दंड दिया जाता है। लूत्तो को बुरा लगता है। वह अपने पिता के अपमान का बदला जितेन्द्र से लेना चाहता है। इसलिए वह राजनीति में आता है और कांग्रेस में शामिल हो जाता है।

       इस उपन्यास में राजनीति करने वाले पात्रों में एक पात्र और भी है। वै हैं मकबूल साहब। मकबूल नाम होने से लोगों को भ्रम होता है कि वे खान साहब हैं पर वे पितांबर झा हैं, निलांबर झा का बेटा। वे कॉमरेड है। वे अपनी दाढ़ी खुद से ही कैंची और रेज़र से तरासते हैं। वह भी लेलिन के फोटो को सामने रखकर और उससे मिला कर। रेणु लिखते हैं -“उनकी ‘क’को कॅ, ‘ख’ को खॅ,  ‘ ग’ को गॉ कहने की आदत है।” वह गरुड़ध्वज झा के पास दिन-रात भाव- विकल चक्कर लगाते रहता है कि लड्डू झड़े तो बुंदिया झड़े। और पात्र गरुड़ध्वज झा गांव का नारद है – आधुनिक नारद। उसके पास सभी खबरें होती है और सबों के यहां उसका आना-जाना होता है।

     परती परिकथा में रेणु जितने पुरुष पात्रों को लेकर चले हैं कोई भी कमतर नहीं है। सुरपति राय, लोक साहित्य प्रेमी है, वह सात घाटों का पानी पी चुका है। कर्बला संझा, तथा गीतवास घाट के आस-पास के गांव में वह पिछले 6 महीने से घूम रहा है होता है, वह।

   इन सबों के अतिरिक्त भिम्मल मामा की अपनी एक पहचान है। प्रेम कुमार दीवाना ‘कलात्मक प्रेम’ का प्रतीक है। ब्रेरी और उसके पति महिपाल सिंह, वीरभद्र, राम निहारा सिंह, समसुद्दीन भवेश आदि पात्र भी हैं, जिन्हें उपन्यास के उन पात्रों में रखा जा सकता है जो ग्राम जीवन से अलग नहीं है। ये भी घने जंगल में उन बूटियों की तरह है इससे जंगल, जंगल कहलाता है अर्थात उपन्यास।

        परती परिकथा में नारी पात्रों की बात करें तो ताजमनी, इरावती, मलारी, गीता मिश्र, सामवती पीसी आदि उन्मुख और उभरे हए पात्र हैं। ताजमनी इस उपन्यास में एक विश्वासपात्र नारी है उसका बचपन हवेली में जितेंद्र की मां के साथ गुजरता है। इसलिए जितेंद्र की मां मरते वक्त ‘ मां तारा ‘ की मूर्ति के नीचे छिपे खजाने का भेद केवल ताजमनी को बताती है। अपने पुत्र जितेन्द्र को भी नहीं। और ताजमनी जितेंद्र की मां के इस विश्वास को टूटने नहीं देती है।

     उपन्यास की पात्र सामवती पीसी जाति से अस्पृश्य है। पर सवर्ण टोली की स्त्रियां, उसे बराबरी का दर्जा देती हैं। वह घर-घर घूमने वाली रेणु के शब्दों में – घर-घूमनी नारी है। वह ऐसी है जिससे बात करने के लिए सारा गांव तरसता है। उसकी विशेषता यह है कि, जो बात कहती है साफ-सफ कहती है। वह कहती है -“अगर किसी को बुरा लगे तो उसकी बला से”

     सामवती पीसी की एक विशेषता का चित्रण करते हुए रेणु ने उसे साहसी नारी की तरह दिखाया है। जब राजनेताओं द्वारा दिग्भ्रमित करने पर हजारों लोग कोसी परियोजना को नष्ट करने आते हैं तो वहां सामने खड़ी इरावती होती है। ऐसे समय में उसकी रक्षा के लिए सामवती पीसी अकेले मुसल लेकर खड़ी हो जाती है और कहती है- “माथा थूर देंगे, इधर कोई आया तो।”

      इरावती इस उपन्यास की नायिका जैसी है। इसलिए कथा जितेंद्र और इरावती के ईर्द-गिर्द भी घूमती है। वह हमेशा जितेंद्र के साथ खड़ी रहती है। वह जितेंद्र के लिए कहती है – “जितेन्द्र धरती पुत्त- पुत्तर है।”

         अलावे गीता मिश्र, मलारी ब्रेरी आदि जो भी पात्र हैं रेणु ने सबों का ध्यान रखा। किसी के साथ अन्याय नहीं होने दिया। देखा जाए तो उपन्यास लेखन में इस तरह से छोटे-छोटे पात्रों में भी जैविकता देना, बहुत ही कठिन कार्य है। यह दुर्गम पथ पर चलने जैसा है।

   वस्तुतः रेणु ने ‘परती परिकथा’ की रचना सामंतवादी प्रथा समाप्ति के उपरांत बंदोबस्ती प्रथा के आरंभ होने के काल में धूसर, वीरान,  परती भूमि को कैसे उर्वरा बनाया जाए, कैसे उसका विकास हो? ये बातें पात्रों के माध्यम से उपस्थापित कर आंचलिक पृष्ठभूमि पर जैविक बनाया है। अस्तु मेरी दृष्टि में यह पात्रों की बहुलता के बीच “एक जैविक आंचलिक उपन्यास है”

लेखक –    डॉ. अनुज प्रभात

जन्म – 1 अप्रैल 1954

विधा- कविता, कहानी, गज़ल, आलेख, समीक्षा

         यात्रा वृतांत, संस्मरण आदि.

प्रकाशित – 1.आधे-अधूरे स्वप्न (कविता संग्रह)

       2.बूढ़ी आंखों का दर्द (कहानी संग्रह)

     3.नीलपाखी (कहानी संग्रह)

  1. किसी गाँव में कितनी बार… कब तक? (कविता संग्रह)

अनुवाद मराठी में – नीलपाखी (कहानी संग्रह)

 बूढ़ी आंखों का दर्द (कहानी संग्रह)

लघुकथा  ” तीसरी पीढ़ी ” पर लघु फिल्म बन चुकी है.

2022 में- ‘ समय का चक्र ‘ (लघुकथा-कथा संग्रह) का मराठी भाषा में अनुवाद प्रकाशित हुआ है.

वाट्सएप न. 9470023249

मोवाईल न. 7979966155

Email- dranujprabhat@gmail.com

.

samved

साहित्य, विचार और संस्कृति की पत्रिका संवेद (ISSN 2231 3885)
5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest

Back to top button
1
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x