संस्मरण
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आदि-अंत से अनंत… होते गुरु – टी.एन.राय
हमारे गुरुवर असल में तो थे – डाक्टर त्रिभुवन नाथ राय लेकिन जीवन-व्यवहार में बस टी.एन.राय ही रहे। और…
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हमारे ‘श्रीधर भइया’ उर्फ़ सबके ‘बच्चा’
श्रीधर भैया अपने घर की अपनी पीढ़ी में सबसे बड़ी संतान थे, सो पूरे घर ने प्यार में उन्हें…
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खानदान भर के चाचा : प्रभाकर त्रिपाठी
30 अप्रैल, 2019 को अपराह्न घर से पोती चुनचुन का फोन सबसे पहले आया – ‘बाबा, चाचा नहीं रहे…’।…
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रघुबर पहँ जाब…अब ना अवध में रहबै…
सबसे ऊपर लिखी पंक्ति ‘तुम्हें पता है, मेरी माँ है’ एम.ए. में भाषाविज्ञान पढ़ाने वाले मेरे गुरु डॉ. बंसीधर…
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52 सालों बाद दादीमाँ के मायके में एक दिन…
दादीमाँ का मायका-याने मेरे पिता-काका…आदि का ननिहाल और मेरा अजियाउर। दादी को आजी भी कहा जाता है-दक्षिण भारत में…
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घाघ की कविताई बजरिए स्वराज आश्रम…
लोक कवि घाघ से प्रथम परिचय – दर्जा पाँच में घाघ की कुछ पंक्तियाँ मिली थीं – ‘छोटी सींग…
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चौथेपन पायउं प्रिय ‘काया’…
(कबहुँ नाहिं व्यापी अस माया) मेरी प्रिय काइया को घर में देखते ही बेटे के सभी मित्र व…
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जेरी के जल्वे
उस शाम घर में घुसते ही बेटे ने बड़ी हसरत भरे खिलन्दड़ेपन के साथ जेब में हाथ डालकर जैसे…
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भोजपुरी कविता के सफरमैना हरिराम द्विवेदी को याद करते हुए…
सत्यदेव त्रिपाठी हनुमंत नायडू की कविता है – ‘रोना तक भूल गया, मन इतना रोया है’। वही हाल मेरे…
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