Monday, November 17 2025
दरवाजे खोलती कहानियाँ
‘मंच’ का ‘कंजूस’ और उससे उठते कुछ रंग-विमर्श
प्रो. दयाराम पांडेय: साँवरिया ज्ञानी गुरु से इकली लाश तक…!
‘इंशाअल्लाह’ : भारतीय मुस्लिम-जीवन का कच्चा चिट्ठा
मानुषी विभीषिका के विरुद्ध
दंतकथा की जिजीविषा : मनुष्यता की हार
संजीव चंदन की कहानी “तुम्हीं से जनमूं तो पनाह मिले”
परिवेश को रचने की प्रक्रिया में मनुष्यता के मर्म की पहचान
अज्ञेय जी का बड़प्पन
संघर्ष और समन्वय की कहानियाँ
विलुप्त हो रही पहाड़िया जनजाति पर केंद्रित लघु उपन्यास “ठूंठ पर कोकिल की कूक” का अंश
‘रंग यात्रियों के राहे गुजर’: संस्मरण में कथात्मकता
साम्प्रदायिक सोच के प्रतिरोध की कहानियाँ
मुझे मेरा ‘जीवनी-लेखक’ मिल गया’ – सुरेंद्र वर्मा
बच्चों के साथ ‘बतरस’ ने मनाया ‘बाल दिवस’
एक बार फिर ‘राशोमन’ मंच पर – ‘मटियाबुर्ज़’ नाम से…
मध्यवर्गीय चिन्ताओं के बाहर भी
रचनाकार की आलोचकीय अभिव्यक्ति
क्लासिक नाटक की क्लास प्रस्तुति – चारुदत्तम्
महामहिम और अपनी लंगोटिया यारी को याद करते हुए
इस इतिहास को अभी थोड़ा और आलोचनात्मक होना है
भारतेंदु के नाटक 1857 की मशाल हैं
हर बशर को लाज़िम है सब्र करना चाहिए
‘पर्यावरण : संकट के बावजूद’ पर ‘बतरस’ में सार्थक चर्चा
अभिव्यक्ति के रंग
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अनवर शमीम
अनवर शमीम
फणीश्वर नाथ रेणु
samved
September 23, 2020
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काक चरित
किसी कहानी को पढ़ना और चुप रह जाना या मन ही मन अच्छी या बुरी कहानी का टैग लगा…
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