सत्यदेव त्रिपाठी
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नाटक
एक बार फिर ‘राशोमन’ मंच पर – ‘मटियाबुर्ज़’ नाम से…
फ़िराक़ साहब का शेर है– ‘हज़ार बार ज़माना इधर से गुज़रा है’, नयी-नयी सी है, पर तेरी रहगुज़र फिर…
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रंगमंच
क्लासिक नाटक की क्लास प्रस्तुति – चारुदत्तम्
पिछले दिनों मुम्बई के ‘थिएटरवाला’ नाट्यसमूह ने ‘नटेश्वर’ समूह के सहयोग से मुम्बई के वर्सोवा इलाक़े में स्थित आरामनगर…
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शख्सियत
महामहिम और अपनी लंगोटिया यारी को याद करते हुए
-1- उत्तरप्रदेश के देवरिया शहर में ‘देवरिया ख़ास’ इलाक़े के मूल रहिवासी… हैं तो वस्तुतः अरूणेशमणि त्रिपाठी, पर साहित्य…
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लेख
भारतेंदु के नाटक 1857 की मशाल हैं
आज 9 सितम्बर को भारतेंदु की 174वीं जयंती के अवसर पर विशेष वैसे तो जब 1857 की क्रांति का…
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रंगमंच
‘प्रवीण नाट्योत्सव’: खाँटी व विविधरंगी रंगकर्म की मिसाल
पिछले दिनों पटना के ‘प्रवीण सांस्कृतिक मंच’ द्वारा आयोजित चार दिवसीय नाट्योत्सव देखने का अवसर बना, जो अपनी निर्मिति…
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रंग समीक्षा
कला-संस्कृति की बहुरंगी छटाएँ बिखेरता त्रिदिवसीय आयोजन
चित्रांगन अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म-नाट्योत्सव, रीवा मध्यप्रदेश के उत्तरी भूभाग में बसा शहर रीवा अपनी ऐतिहासिक विरासत एवं सांस्कृतिक समृद्धि के…
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संस्मरण
आदि-अंत से अनंत… होते गुरु – टी.एन.राय
हमारे गुरुवर असल में तो थे – डाक्टर त्रिभुवन नाथ राय लेकिन जीवन-व्यवहार में बस टी.एन.राय ही रहे। और…
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संस्मरण
हमारे ‘श्रीधर भइया’ उर्फ़ सबके ‘बच्चा’
श्रीधर भैया अपने घर की अपनी पीढ़ी में सबसे बड़ी संतान थे, सो पूरे घर ने प्यार में उन्हें…
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नाटक
आतंकी हिंसा की खोल में ‘चुप’ के राज़ और भी हैं…!
अंधेरी उपनगर, मुम्बई के ‘सात बंगला’ इलाक़े में स्थित ‘आराम नगर’ मुहल्ले में रंगमंच के नये-नये केंद्र बन रहे…
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संस्मरण
रघुबर पहँ जाब…अब ना अवध में रहबै…
सबसे ऊपर लिखी पंक्ति ‘तुम्हें पता है, मेरी माँ है’ एम.ए. में भाषाविज्ञान पढ़ाने वाले मेरे गुरु डॉ. बंसीधर…
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