कविता
राज्यवर्द्धन की कविताएँ
राज्यवर्द्धन की कविताएँ
पटकथा नयी रामलीला की
हस्तिनापुर में
चल रही थी रामलीला
काठ का राम
सवार था रथ पर
और रावण था पैदल
(इस बार)
राम
विभीषण की मन्त्रणा पर
बरसा रहा था बाण
बार–बार
रावण के अमृत– कुम्भ पर
पटकथा के हिसाब से तो
मर जाना था रावण को
और विजयी होना था
राम को
(1)
लेकिन रावण
तैयार नहीं था मरने को
(इस बार)
कर रहा था अट्टहास
और खिजा रहा था
राम को
(––और दर्शक खूब ले रहे थे मजा)
आधी रात को
हठात् संतरियों ने
पटाक्षेप कर दिया
रामलीला का राजाज्ञा से
और रावण को बिठाकर
पुष्पक विमान में
भेज दिया
सोने की लेका में
राम के उकसाने पर
सोने की लेका को
जलाने की कोशिश की हनुमान ने
(रावण का ऐसा आरोप है)
(2)
सुना है कि रावण भी
राम का तख्ता पलटने की तैयारी में
जुट गया है– जी जान से
और भड़का रहा है
अयोध्या की प्रजा को
राम के विरुद्ध
कि विदेशों में जमा काले धन को
वापस लाया जाय साकेत में
दर्शक चकित हैं
रामलीला की इस नई पटकथा से
(दर्शकों से अनुरोध है कि
वे रामलीला की इस नई पटकथा से
भ्रमित न हों!)
कलाकारों के चित्रों को देखकर–––
रजा, हुसैन, वेन गॉग
मनजीत बाबा
और भी कलाकारों की
कलाकृतियों को देखकर
कभी नहीं लिखी
कोई कविता
जब भी देखा
चित्रकारों की कलाकृतियों को
खो गया रंगों और आकृतियों की
जादुई दुनिया में
कठिन है
उस अनुभूति को सही–सही
बयाँ करना शब्दों में
इसलिए
जब–जब देखा
किसी कलाकार की कलाकृति को
महसूस किया
रंगो के छन्दों को
और नहीं लिखी
कोई कविता–––
राज्यवर्द्धन – जन्म – 30 जून 1960, जमालपुर, (बिहार) । हिन्दी के महत्त्वपूर्ण पत्र–पत्रिकाओं में लेख समीक्षा कविताएँ प्रकाशित । जनसत्ता (कोलकाता) में 1995 से 2010 तक चित्रकला पर स्तम्भ लेखन । ‘स्वर एकादश’ (ग्यारह कवियों की कविताओं) का सम्पादन ।