अनधिकार बनाम अनाधिकार
- बहादुर मिश्र
प्रारम्भ में ही निवेदन कर दूँ कि व्याकरण के निकष पर ‘अनधिकार’ का प्रयोग साधु माना जाता है, जबकि ‘अनाधिकार’ का प्रयोग असाधु। इसका प्रयोग आपने अनेकत्र देखा होगा। भागलपुर- स्थित सेंट्रल जेल के प्रवेश-द्वार पर लिखित प्रशासनिक-सह-वैधानिक चेतावनी ‘अनाधिकार प्रवेश दंडनीय है।’ पर आपकी दृष्टि पड़ी ही होगी। तभी से सोच रहा था कि दोनों की व्याकरणिक विचिकित्सा करते हुए उनके बीच का अन्तर स्पष्ट कर दिया जाए।
फेसबुक के कई पाठकों, मित्रों, शोधार्थियों और अन्य जिज्ञासुओं के लिखित-मौखिक आग्रह/ अनुरोध प्राप्त होते रहे हैं। पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभागाध्यक्ष डॉ. तरुण कुमार का अनुरोध विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने ऐसे शब्दों को अकारादि क्रम में सूचीबद्ध करते हुए विश्लेषित करने का लिखित अनुरोध किया है। मेरा प्रयास कुछ इसी दिशा में चल रहा है।
पहले ‘अनधिकार’ पर विचार किया जाए। अधिकांश लोग इसे ही अशुद्ध मानते हैं, जबकि ‘अनाधिकार’ को शुद्ध। चलिए, दोनों का बारी-बारी से विश्लेषण करते हैं।
न अधिकार = अनधिकार नञ् समास (वास्तव में, तत्पुरुष समास का ही एक भेद) का उदाहरण है। पाणिनि-कृत ‘अष्टाध्यायी’ में एक सूत्र आया है- ‘ न लोपो नञ्’ [अ.-6.3. 7] । यही सूत्र ‘लघुसिद्धांतकौमुदी’ के 950 वें क्रम पर प्रयुक्त है।
इस सूत्र का अर्थ होता है -. उत्तर पद रहते नञ् के ‘न’ कार का लोप हो तो नञ् होता है। पुनः, ‘अष्टाध्यायी’ के उसी अध्याय में कुछ आगे बढ़कर इसका पूरक सूत्र आता है- ‘तस्माद् नुड् अचि’ [अ.-6.3. 74], अर्थात् जिस नञ् के नकार का लोप हो गया हो तो उससे परे अजादि उत्तर पद को ‘नुट्’ आगम होता है। आप देख सकते हैं कि यहाँ ‘अधिकार’ के पूर्व प्रयुक्त ‘न’ का लोप हो गया है और उसके स्थान पर ‘नुट्’ के कारण ‘अ’ का आगम हो गया है। इस तरह, ‘न अधिकार’ ‘अनधिकार’ में परिणत हो गया।
आप पूछ सकते हैं कि ‘न अधिकार’ के ‘न’ और ‘अधिकार’ के आदि वर्ण ‘अ’ को स्वर संधि के सूत्र ‘अकः सवर्णे दीर्घः’ [अ.-6.1. 109 ] (अक् प्रत्याहारस्थ वर्णों के परे समान वर्ण आने पर दीर्घ संधि होती है) के आलोक में परस्पर मिलकर न+अ= ना होना चाहिए था, किन्तु ऐसा हुआ नहीं। क्यों?
इसका स्पष्ट उत्तर होगा कि यदि ‘अ’ के ठीक पश्चात् अ, ई, उ या किसी स्वर वर्ण से प्रारम्भ होने वाला कोई शब्द प्रयुक्त हुआ हो तो ‘अ’ ‘अन्’ में परिणत हो जाता है। इसके ठीक विपरीत यदि ‘अ’ के परे व्यंजन वर्ण से प्रारम्भ होने वाला कोई शब्द आ जाए तो ‘अ’ यथावत् रह जाता है; जैसे-
- अ+कर्मण्य = अकर्मण्य
- अ+चल= अचल
- अ+विश्वास=अविश्वास इत्यादि।
आप देख सकते हैं कि इन उदाहरणों में ‘अ’ के परे क्रमशः ‘क’, ‘च’, ‘व’ जैसे- व्यंजन वर्ण प्रयुक्त हुए हैं। फलस्वरूप,’अ’ में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। दूसरी ओर अधिकार न अधिकार = अनधिकार = अ > अन् > अधिकार के समीकरण पर दृष्टिपात करने से स्पष्ट हो जाता है कि ‘अ’ ‘अन्’ में इसलिए परिणत हो गया; क्योंकि उसके ठीक बाद ‘अ’ नामक स्वर वर्ण से प्रारम्भ होने वाला शब्द अधिकार आ बैठा है। व्याकरण का सामान्य नियम भी यही कहता है कि न् + अ = न। ‘न’ का मान एक (1) होगा तो ‘न्’ का आधा (½) ।
हम जानते हैं कि स्वर की सहायता के बिना वह सदैव अपूर्ण रहता है। इसलिए, न्+अ=न होगा, न कि ना।
अनधिकार की तरह के कई उदाहरण देखे जा सकते हैं –
- अनधिक [न अधिक = न>अ>अन्+अधिक = अनधिक]
- अनंग [न अंग = न>अ>अन्+अंग = अनंग]
- अनन्य [न अन्य = न>अ>अन्+ अन्य = अनन्य]
- अनन्त [न अन्त = न>अ>अन्+अन्त = अनन्त]
- अनीश्वर [न ईश्वर = न>अ>अन्+ ईश्वर = अनीश्वर]
- अनुपकार [न उपकार = न>अ>अन्+उपकार = अनुपकार]
विश्लेषण से स्पष्ट हो गया है कि ‘अनधिकार’ का प्रयोग व्याकरण-सम्मत है, जबकि ‘अनाधिकार’ का निन्द्य। कुछ लोग समझते हैं कि अन+अधिकार= अनाधिकार होता है। उनकी यह समझ सही नहीं है।
लेखक समालोचक, अनुवादक, तथा तिलका माँझी भागलपुर विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अध्यक्ष हैं।
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