अभिव्यक्ति के रंग
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‘अभिव्यक्ति’ गीता मंजरी मिश्र (सतपथी) जी का नवीन कविता संग्रह है। सतपथी जी का लेखकीय जीवन बहुत लम्बा रहा है। उनका जन्म वर्ष 1956 में हुआ और बचपन से ही उनकी कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगी थीं। वे कहानियाँ भी लिखती हैं और कविताएँ भी। ‘अभिव्यक्ति’ की कविताएँ कवयित्री के जीवन के सामान्य से दिखने वाले भावों की विशेष अभिव्यक्ति हैं। ये कविताएँ उनके जीवन के अनुभवों को एक विशेष शिल्प में प्रस्तुत करती हैं। कविता की जो समझ कवि और पाठक में होती है उसमें कविता का शिल्प भी शामिल होता है। शिल्प वह रूप विशेष है जिसमें भावों को प्रकट किया गया है। सतपथी जी की कविताओं में कविता का वह विशेष शिल्प दिखाई देता है। इन कविताओं में लयबद्धता है। यह लय तुकांत के माध्यम से आती है। इस संग्रह की बहुत सी कविताओं में वह तुकांतता दिखाई देती है। तिमिर आवरण के अन्दर / ढका स्वप्न कुरेद कर / विकल शोर से बेहतर / छोड़ देना दुःस्वप्न मानकर। कविता की अपनी एक आतंरिक लय भी होती। हिंदी कविता जब छंद के बन्धनों को तोड़कर छंद-मुक्त हुई तो उसकी आतंरिक लय पर ध्यान दिया गया। कविता की आतंरिक लय छंद की अनुपस्थिति में भी कविता को बांधें रखती है। इस संग्रह की कविताओं में आतंरिक लय भी मौजूद है और तुकांत के बनने वाली बाहरी अर्थात शैल्पिक लय भी। लेकिन कई स्थानों पर लयभंग भी महसूस होता है।
हिंदी की पारंपरिक कविता में अलंकारों का बहुत महत्व रहा है। इधर आधुनिक कविता में अलंकारों की ओर कवियों का आग्रह क्रमशः कम होता गया है। सतपथी जी का आग्रह लेकिन अलंकारों की ओर है। इस संग्रह की कविताओं में अलंकारों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इन कविताओं में अलंकार रवानगी लाते भी दिखाई देते हैं। व्यक्तित्व, अस्तित्व, अर्थ, अलंकार / समय दे गया सबकुछ आकर / अब बीत गया भिनसार / आंगन पर करता हर-हर आ गया पतझर। अलंकारों के इस तरह के आग्रह और प्रयोग से यह भी समझा जा सकता है कि कवयित्री की कविता की दीक्षा का आधार मध्यकालीन और आधुनिक काल के आरंभ की कविताएँ हैं। उनकी कविता की समझ वहीं से निर्मित होती प्रतीत होती है।
एक मनुष्य अपने परिवेश को किस प्रकार प्रेम करता है, यह भी सतपथी जी की कविताओं में देखा जा सकता है। उनकी कविताओं में मानवीय संबंधों की घनिष्ठता के दर्शन होते हैं। समाज और मनुष्य के बीच की आत्मीयता भी उनकी कविताओं में स्पष्टतः देखी जा सकती है। कवयित्री को प्रेम अपने परिवेश के हर प्राणी से है। प्रकृति से भी कवियित्री को असीम प्रेम है इसलिए प्रकृति को आधार बनाकर बहुत सी कविताएँ उन्होंने लिखी हैं, जिनको इस कविता संग्रह ‘अभिव्यक्ति’ में संजोया गया है। आषाढ़ के बादलों का यह दृश्य अत्यंत सुन्दर बन पड़ा है। अनकौंधी बिजलियाँ गिराकर / अरुण रश्मि कुछ पल क़ैदकर / क्योंकर करते कोलाहल ? / क्षणिक तुम्हारा सबल बल / आषाढ़ के काले बादल। प्रकृति के भी भिन्न-भिन्न रूप और रंग सतपथी जी की कविताओं में दृष्टिगत होते हैं। इनमें मनुष्य और प्रकृति का प्रेम भी देखा जा सकता है। लेकिन समय के साथ प्रकृति और मनुष्य दोनों में परिवर्तन होता गया है। यह परिवर्तन सकारात्मक भी है और नकारात्मक भी। कविता ‘अब यहाँ नदी नहीं बहती’ परिवर्तन की ही कथा कहती है। यह परिवर्तन जब सुख नहीं देता तो इससे कवयित्री पीड़ा पाती हैं और अपने अतीत तो याद करती हैं।
धार्मिक ऋचाओं के वे महत्वपूर्ण पात्र जिनके प्रति जन केवल आस्था की दृष्टि से देखता है उन्हें सतपथी जी की कविताएँ मनुष्य रूप में ले आती हैं। वे उनसे उनके कर्मों का हिसाब मांगती हैं। उन्हें उनकी त्रुटियाँ बतलाती हैं। इस तरह वे ईश्वर तक को मनुष्यता के धरातल पर ले आती हैं। उन सम्माननीय पात्रों द्वारा किए गए व्यवहार को लेकर भी उनकी कविता प्रश्न करती है। ‘कहो गांधारी’ एक ऐसी ही कविता है। इस संग्रह में शामिल उनकी कविता ‘मैं विश्वपुत्र’ सम्पूर्ण संसार को एक धागे में पिरोते हुए, विश्व को अपनी मातृभूमि घोषित करती हैं। वे दुनिया के सभी द्वंद्वों, विरोधों और पदानुक्रमों को तोड़ते हुए सभी को एक समान भूमि पर लाने की बात करती हैं। वे धर्म को आधार बनाकर किए जाने वाले भेदभाव का भी विरोध करती हैं। इस तरह वे एक ऐसी दुनिया की रचना का स्वप्न देखती हैं जहाँ सभी समान हों और किसी भी प्रकार की सीमाएँ जहाँ मनुष्य को बाँट न सके।
सतपथी जी की कविताओं में प्रेम का एक बृहत् रूप दृष्टिगत होता है जिसमें पूरा विश्व शामिल है। यह वसु का कुटुंब है जहाँ हर जीव एक-दूसरे से जुड़ा है। इन कविताओं में प्रेम, पीड़ा, परदुखकातरता, करुणा आदि सभी शामिल हैं। सतपथी जी अपनी कविताओं में किसी भी तरह के दायरे नहीं निर्मित करतीं। किसी विचार, धारा अथवा विचारधारा की रेखाएँ उनकी भावुकता को सीमित नहीं कर पातीं, इसलिए ‘अभिव्यक्ति’ की कविताओं में किसी भी प्रकार के विचार अथवा विचारधारा का आग्रह नहीं मिलता। इस तरह से उनकी ये कविताएँ किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह का निषेध भी करती हैं। इन कविताओं के माध्यम से कवयित्री की अपनी प्रकृति के बारे में भी पता चलता है कि वे स्वयं भी स्वतंत्रता को पसंद करती हैं।
‘अभिव्यक्ति’ संग्रह की कविताएँ सहज मानवीय अनुभूतियों की अभिव्यक्ति हैं। इसमें संग्रहित कविताओं के भाव और शिल्प दोनों में भी सहजता देखी जा सकती है। इस संग्रह की कविताओं को मनुष्य की आतंरिक हलचलों के सहज प्रकटीकरण से साक्षात्कार के लिए पढ़ा जा सकता है। कवि की कल्पनाओं की असीमता को देखने के लिए भी इन कविताओं को पढ़ा जा सकता है। कविता और साहित्य मनुष्य के हृदय पक्ष का विस्तार करता है। वह मनुष्य को अपनी विरासत एवं वर्तमान दोनों से जोड़ता है। समाज और सामूहिकता के महत्व को भी साहित्य स्थापित करता है। अच्छा साहित्य वही माना जा सकता है जो मानवीय मूल्यों की स्थापना करे और जीवन में उद्दात्त गुणों को समाहित करने पर बल दे। सतपथी जी के संग्रह ‘अभिव्यक्ति’ की कविताएँ मानवीय मूल्यों और उद्दात्त गुणों को स्थापित करती हैं। गीता मंजरी मिश्र (सतपथी) जी का यह कविता-संग्रह मान सरोवर पब्लिकेशन से प्रकाशित हुआ है।