सपने जमीन पर

इंदिरा आवास योजना 

 

अब तक आपने पढ़ा : मंडल जी के पास रहकर शोध कर रहे दोनों विद्यार्थी सरकारी शिक्षण संस्थान की मजबूरियों, शिक्षा मित्र से सरकारी शिक्षक बने शिक्षक की विद्वता और मुखिया के “परोपकारी” तेवर से रूबरू हो चुके हैं आज उनका तीसरा दिन है। अब आगे 

 

      इंदिरा आवास योजना 

 

आज गाँव भ्रमण का तीसरा दिन था। कल का वाकया अभी तक जेहन में घूम रहा था। “सरकार जो केंद्र में है और ये सरकार जो सर के ऊपर है, दोनों में कितना फर्क है। केंद्र सरकार के द्वारा बनी हुई नीतियां जनता का कई तरीके से मदद करना चाहती है। पर स्थानीय सरकार में रक्षक की जगह यदि भक्षक मौजूद हो तो कोई क्या करें! हर जगह की स्थानीय सरकार एक जैसी तो नहीं हो सकती, हो सकता है इस गाँव का मुखिया अपवाद हो।” इन्हीं विचारों में राजेश खोया हुआ था कि मंडल जी ने टोका, “राजेश जी चाय ठंडी हो रही है।” सत्यार्थी अपनी चाय खत्म कर चुका था, बोला, “राजेश भी ना कुछ ज्यादा ही सोचता है।” राजेश बोला, “मैं कल का सोच रहा था। यहाँ के मुखिया का चरित्र देख चुका हूँ पर इसकी शिकायत ऊपर की जा सकती है। जरूरी तो नहीं कि वहाँ पर भी भ्रष्टाचार का ही बोलबाला हो।” इसी बीच दूर कहीं धुंआ और आग की लपटें दिखाई पड़ने लगी और चीखने चिल्लाने की आवाज भी आनी शुरू हो गई। मंडल जी फुर्ती से दलान से बाहर निकलकर सड़क के किनारे पहुंचे। सड़क के उस पार कुछ झोपड़ियां थी जहाँ पिछड़ी जाति के लोग रह रहे थे। उसी में से एक झोपड़ी में आग लग गई थी।

जलते हुए झोपड़ी के सामने में एक व्यक्ति फटी फटी आंखों से अपने जलते मकान को देख रहा था। ऊपर बदन में कोई कपड़ा नहीं था, कमर में धोती को लंगोट की तरह पहने हुए था। बगल में पत्नी रो रही थी और उसे रोता हुआ देखकर बच्चों ने भी रोना शुरू कर दिया था। उस व्यक्ति के आंखों के आंसू सूख चुके थे। राजेश ने सत्यार्थी से कहा, “पिछड़ी जाति के गरीब लोगों के लिए इंदिरा आवास योजना है, जिससे पक्का मकान बन सकता है। पर इस योजना का लाभ उठाने के लिए आवेदन तो जागरूक व्यक्ति ही देगा। यदि इसने वक्त पर आवेदन दिया होता तो यहाँ झोपड़ी की जगह पक्का मकान होता। फिर यह दुर्घटना ना होती।” मंडल जी ने भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, “आप लोग सही कह रहे हैं जो इस योजना का लाभ मिल गया होता तो यह दुर्घटना न होती।”फिर उस बेचारे से पूछा, “ क्यों रे रमना, इंदिरा आवास के लिए आवेदन दिया था?” अब तक फटी फटी आंखों से जलते मकान को देख रहा रमना गुस्सा और बेबसी के साथ बोला, “मंडल जी, आप क्या हमको गधा समझते हैं, मैट्रिक हम भी पास हैं। इंदिरा आवास योजना के लिए आवेदन कब का दे चुके हैं, पर ब्लॉक का कोई भी अधिकारी घूस लिए बगैर कोई काम आगे बढ़ाता है? जो सब घुस दिया, उसका मकान बन गया है। पर हम घूस कहाँ से दें, हमरा हाल तो आप बुझबे करते हैं।”

मंडल जी ने रमना के कंधे पर हाथ रखते हुए सांत्वना के साथ कहा, “अब क्या करोगे! भगवान का शुक्र मनाओ की जान माल का नुकसान नहीं हुआ, फिलहाल पुस्तकालय भवन में तुम लोग के रहने का व्यवस्था करवा देते हैं। फिर मिलकर झोपड़ी बनवा देंगे। पड़ोस में हैं तो इतना तो हमारा भी फर्ज बनता है।” मंडल जी दोनों विद्यार्थियों के साथ वापस अपने घर आ गया। राजेश ने मंडल जी को कहा, “मंडल जी मेरी इच्छा है कि ब्लॉक का एक चक्कर लगाया जाए। पता तो करें कि वहाँ पर भ्रष्टाचार का क्या माहौल है। मंडल जी, “क्या आवास योजना का भ्रष्टाचार पता करेंगे।” राजेश, “हाँ, बिल्कुल।” मंडल जी, “तो आप रामखेलावन जी से मिल लीजिएगा। दलाली का काम करते हैं।” राजेश, “पर वह मिलेगा कहाँ?” मंडल जी, “दलाल का भी एक दलाल है। वहाँ पर पान का जो पहला गुमटी ब्लॉक कैंपस के गेट पर है वही उसका अड्डा है। और दूसरा अड्डा है चाय की दुकान, जो पान दुकान के पास ही है।पान वाला को या चाय वले इन दोनों में से किसी को भी कहने से वह उनको बुलवा देगा।” राजेश, “ठीक है तो अभी ही निकल जाते हैं। ऑफिस टाइम भी है। सब से मुलाकात हो जाएगी।” मंडल जी हंसते हुए, “पर आप लोग जरा देहाती अंदाज में ही बात करिएगा,नहीं तो यदि उसे शक हो जाएगा तो खुलकर बतिया नहीं पाएगा।” 

ब्लॉक का बाउंड्री वॉल कई जगहों से टूटा हुआ था। बाउंड्री वॉल के सामने सड़क के दूसरी तरफ दुकानें लगी हुई थी। मेन गेट के बगल में पान का दुकान था “बनारसी पान भंडार”। राजेश और सत्यार्थी ने अंडर शर्टिंग की जगह ढीला ढाला कमीज पेंट के ऊपर पहना हुआ था। बाल भी थोड़े तेल डालकर सवारे गये थे। सत्यार्थी ने मुंह में पान भी दबा रखी थी। राजेश ने पान वाले से गुटखा मांगते हुए कहा, “भैया जी, एक रजनीगंधा और तुलसी दीजिएगा।” पान वाले ने समान देते हुए पूछा, “पहली बार देख रहे हैं। कौन गाँव से हो भैया, ब्लॉक में क्या काम है?” सत्यार्थी, “इंदिरा आवास योजना वाला मामला था। रामखेलावन जी से मिलना था।” पानवाला शरारत से मुस्कुराता हुआ बोला, “रामखेलावन भैया बड़का चतुर खिलाड़ी है। इ काम ओकरे बस का है और कोई दूसरा के चक्कर में नहीं परियेगा, नहीं तो पैसो बुर जाएगा और कामो नहीं होगा।” राजेश, “ठीक बोले भाई साहब। सीधा आदमी इ काम थोड़े ना कर पाएगा। जरा बुलवा दीजिए ना।” पान वाले ने मोबाइल से फोन पर बात की और कहा, “खिलावन भैया दो ठो क्लाइंट आया है। हमरे दुकान पर है।” फिर राजेश से कहा, “यहीं पर तुरंते आ रहे हैं।” थोड़ी देर में चार पांच व्यक्तियों से घिरा हुआ एक व्यक्ति कैंपस के गेट से होकर पान की दुकान की तरफ आया। सफेद शर्ट,काला पैंट। लगातार पान खाते रहने की वजह से आगे के सारे दांत पीले और नारंगी रंग के दिख रहे थे।

आंखों में काइयाँपन था और चेहरे पर आत्मविश्वास से लरबेज एक ऐसी मुस्कान, जैसे कि दुनिया के हर इंसान को वह बेवकूफ बना सकता है। पानवाला राजेश से, “लीजिए, रामखेलावन भैया आ गये।” रामखेलावन ने आते के साथ पान की फरमाइश कर दी थी। सत्यार्थी और राजेश ने हाथ जोड़ते हुए नमस्कार किया। राजेश ने कहा, “भैया हम लोग भैना गाँव से आए हैं।” पान वाले से, “भैया जी, खिलावन भैया का पान अच्छे से लगाईएगा। उसका पैसा हम ही दे रह हैं।” खिलवान जी ने घूर कर दोनों विद्यार्थियों को देखा। याददाश्त पर जोर डालते हुए कहा, “तुम्हरे गाँव में कल आग लगी थी क्या?” राजेश, “हाँ हाँ, ठीक पकडे। इसीलिए तो हम बहुत टेंशन में आ गए हैं। कि जल्दी से हम इंदिरा आवास योजना का फायदा उठाकर पक्का मकान बनवा लें।” खिलावन मुँह में पान रखते हुए, “ हाँ तो बताइए कौन काम ?”राजेश, “इंदिरा आवास लेना है।”खिलावन, “अपने नाम से जमीन है?” राजेश, “नहीं बाबूजी के नाम से है, पर बाबू जी अब नहीं रहे, बहन की शादी हो गई है और हम बेटे में अकेले हैं।” खिलावन, “तो तुमरे नाम पर जमीन का दाखिल खारिज भी कराना पड़ेगा। इंदिरा आवास योजना का भी काम करवाना होगा। बीपीएल कार्ड है ना?और SC, ST हो या ?” राजेश, “बीपीएल कार्ड भी है और पिछड़ी जाति का प्रमाण पत्र भी है।” खिलावन, “रेट का पता है ना? रुपैया सैंक्शन होने से पहले ही मुखिया जी समेत ब्लॉक के प्यून से लेकर ऑफिसर तक को पैसा देना पड़ता है तो 20000 काम होने से पहले 10,000 काम होने के बाद, तुम्हारे खाते में पैसा भेजने से पहले देना पड़ेगा तब कहीं जाकर तुम्हरे एकाउंट में 1 लाख 30 हजार रुपया पहुंचेगा।” इस बात का पता राजेश को पहले से ही था,पर जानना ये था कि भ्रष्टाचार की जड़ें कहाँ तक पहुंच सकती है। राजेश बोला, “हम तैयार हैं, पर हमारे दोस्त का काम थोड़ा टेढ़ा है, इनका भी बेड़ा पार लगा दीजिए।”

खिलावन जी ने पान की पीक फेंकते हुए कहा, “क्या इनका जमीनों नहीं है?” सत्यार्थी ने कहा, “नहीं जमीन तो है पर कर्जा लेकर मकान के छत का जब ढलाई करवा लिए तब बुद्धि खुला कि सरकार इसके लिए पैसा दैये रही है तो क्यों न हम भी बहती गंगा में डुबकी लगा लें, वैसे हम एससी कैटेगरी में तो आते हैं पर बीपीएल कार्ड नहीं है।” खिलावन, “पापा कोई नॉकरी ओकरी में तो नहीं हैं?” सत्यार्थी, “नहीं कोई नॉकरी नहीं है।” खिलावन, “तो पहले तो तुम्हरा बीपीएल कार्ड बनवाना पड़ेगा। अब पक्का मकान पहले से है तो पूरा काम गैरकानूनी हो जाएगा तो रेट पूरा 50% लगेगा 25% एडवांस में और 50% काम होने के बाद पर पैसा ट्रांसफर से पहले और बीपीएल का कार्ड बनाने का पैसा अलग से लगेगा।” थोड़ा आगे बढ़ते ही सड़क के बीचो बीच ठीक सामने रास्ता रोकने वाले अंदाज में लगभग 6 फीट का लंबा चौड़ा आदमी सामने खड़ा हो गया, “प्रणाम, खेलावन भैया।” खेलावन जी एकदम कटकर बगल से तेजी से निकल गया। पीछे खड़े उस आदमी ने तेजी से रामखेलावन जी का कंधा पकड़ लिया, “अरे इतना गुस्साए हुए हैं कि परनाम पाती का जबाबो नहीं दे रहे हैं।”खिलावन जी, “हम नहीं जानते तुम कौन हो?” आदमी ने गुस्से से कहा, “अच्छा घूस लेते वक्त बोला कि काम पक्का हो जाएगा और अब चिन्हियो नहीं रहे हो?” सामने भीड़ जमा होने लगी थी।

2 सिपाही भी वहीं पर चाय पी रहे थे। एक सिपाही खेलावन के जान पहचान का था। उसे ही देखते ही खिलावन ने आवाज दी, “राम भैया!” दोनों सिपाही जल्दी से इन दोनों के पास आ गये। खिलावन, “सुनिए इ क्या बोल रहा है।“ वह दोनों सिपाहियों को देख कर चुप हो गया। सिपाही खिलावन से, “क्या कोई दिक्कत ?”खिलावन ने खीझ के साथ कहा, “इ जनाब हम पर इल्जाम लगा रहे हैं कि हम इनसे घूस लिए हैं और हम इन को चिंहते भी नहीं हैं।”सिपाही, “हाँ जी घूस दिये थे उसको?” आदमी गुस्से से, “घूस कोई मज़बूरिये में न देता है,हमको शौक चढ़ा है क्या घूस देने का। पर न तो ई हम्मर काम किया न हम्मर पैसा वापिस कर रहा है।”सिपाही, “तुमको पता है न की घूस देना जुर्म है! घूस देने के जुर्म में तुम को गिरफ्तार कर रहे हैं।” दोनों सिपाही उस आदमी लेकर को लेकर आगे चले गए। यह नजारा देखकर राजेश और सत्यार्थी बोले, “भैया हमर पैसा तो नहीं ना पचाइएगा।” रामखेलावन, “अरे नहीं भाई बेईमानी का धंधा भी हम पूरा ईमानदारी से करते हैं। इ तो पेंच वाला मामला था। जो आदमी इसके साथ दलाल बनकर आया था वही इसका पैसा खा गया और इ बुझ रहा है कि हम पचा गए। मामला एकदम्मे दूसरा था, निश्चिंत रहिए आपलोग का पैसा नहीं डूबेगा काहे की आप डायरेक्ट हमारे पास आए हो। अच्छा भैया चले हम।

    राजेश और सत्यार्थी वहीं पास के ढाबे में बैठकर चाय पीने लगे। थोड़ी देर में वह आदमी भी वहीं आकर चाय पीने लगा जिसे सिपाही पकड़कर ले गया था। दोनों ने उसे आश्चर्य से देखा। पूछा, “क्या भाई सिपाही जी पकड़ कर ले गए थे ना, छोड़ दिया क्या? आदमी ने व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ कहा, “साला, कैसे कैसे कानून के रखवाले हैं! घूस देने के जुर्म में पकड़ा गया था और घुस देकर छूट गया।” फिर उसने गुस्से से कहा, “कानून का रखवाला बने फिरते हैं घूस लेते वक्त कानून कहाँ गायब हो जाता है! ई दोनों जो घूस लिया इसको कौन पकड़ेगा?”

बंडी कुर्ता पहने हुए, एक नेतानुमा व्यक्ति ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “भैया घूस तो उ मोबिल है जो हमारे हर तंत्र का चक्का घुमाता है। चाहे सामाजिक हो, राजनीतिक हो, या संवैधानिक हो। इ जज सब घुस नहीं लेते क्या! और भगवान जी को जो लड्डू का भोग लगाते हैं वह भी तो एक किस्म का घुसे है। तो भाई घूस का मोबिल डालो, चक्का फुर फुर घूमेगा। जो मोबिल खत्म, तो जाम पकड़ लेगा। अरे हम तो इ बोलते हैं कि जब सब घूस लैये रहा है तो उसको संवैधानिक करार कर दो। 25% सरकार को भी दो, साला सरकारी खजाना भी भरेगा। जो इस तरीका से सबसे ज्यादा सरकारी खजाना भरता हो उसके उसे “घूस ए आजम” के सम्मान से सम्मानित भी कर दो।” इस बात पर सारे लोग हंसने लगे। उबलते हुए चाय उफ़न कर, चूल्हे के तपते हुए लाल कोयले पर जा गिरा। और आस पास में भाप और धुआं भर गया। चाय वाले ने झुंझलाते हुए कहा, “आप लोग इतना न घुस का बखान किये कि हमरा चूल्हा बुझ गया।” “अरे भगवान का नाम लीजिए” दुकान से निकलते हुए पंडित जी ने कहा, “हरि ओम हरि ओम, घनघोर कलयुग है, भगवान के भोग को भी घूस बोल रहे हैं घनघोर कलजुग है, घनघोर कलजुग” 

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डॉक्टर प्रभाकर भूषण मिश्रा

जन्म स्थान : जमालपुर (मुंगेर), बिहार, शिक्षा: एमबीबीएस, एमडी (मेडिसिन) रुचियां: पेंटिंग एवं लेखन
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