सपने जमीन पर

 दूरदर्शिता

 

अब तक आपने पढ़ा: उभरते हुए नेता, मंडल जी के गाँव में दो विद्यार्थी गरीबी के कारण के बारे में शोध कार्य करने पहँचे थे। मंडल जी के सहयोग से वे सरकारी स्कूल एवं शिक्षक से रूबरू हुए। अब गाँव से लौटते वक्त:-

दूरदर्शिता

दिन लगभग बीत चुका था। जाड़े के दिनों में तो 5 बजते ही शाम होने लगती है। फिलहाल दोनों मित्रों को चाय की तलब महसूस हो रही थी। एक छोटे से ढ़ाबेनुमा जगह पर राजेश और सत्यार्थी ने चाय आर्डर कर दी। सामने एक लड़का जींस का पैंट और हाफ स्वेटर पहने हुए चाय भी पी रहा था और बिस्कुट के डब्बे से बिस्कुट निकालकर कुत्ते के बच्चों को खिला भी रहा था। कुत्ते के बच्चों के साथ साथ उनकी मां भी एहसान से पूँछ हिला रही थी। राजेश मुस्कुराया, बोला, “बहुत नेक काम कर रहे हैं।” लड़के ने मुस्कुराते हुए कहा, “जिंदगी में बड़ी-बड़ी खुशियां कभी कभार मिलती है, पर इस तरीके से छोटी-छोटी खुशियों को तो हम रोज ही हासिल कर सकते हैं। देखिए बच्चे और उसकी मां कितना खुश हो रहे हैं, और इनकी खुशी से मैं खुश हो रहा हूं।” सत्यार्थी ने पूछा, “क्या करते हैं आप?” लड़के के चेहरे पर थोड़ी सी उदासी का भाव आया और चला गया। सायास मुस्कुराते हुए कहा, “आजकल तो रिक्शा चलाते हैं।” राजेश ने पूछा, “पर तुम पढ़े लिखे लगते हो। क्या नाम है तुम्हारा?” लड़के ने दोनों को गौर से देखा जैसे थोड़ा असहज महसूस कर रहा हो। फिर जवाब दिया, “सत्य प्रकाश।” सत्यार्थी के दिमाग में भी कुछ चल रहा था, “पूरा नाम क्या है?” जवाब मिला, “सत्य प्रकाश मिश्रा।” राजेश ने थोड़ी सी आत्मीयता जताने की कोशिश की है, “मेरा नाम भी राजेश मिश्रा है। रिक्शा क्यों चलाना पड़ा?

……मेरा मतलब, क्या पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी?” लड़के ने थोड़े दुख और बेबसी से कहा, “बीएससी कर चुका था। जेनरल कैटेगरी में होने की वजह से नौकरियां मिल ही नहीं रही थी। कुछ वेकेंसियां तो ऐसी थी कि जनरल कैटेगरी वालों के लिए कोई जगह ही नहीं थी। सो मैं बेरोजगार ही रह गया। इसी बीच बाबू जी का देहांत हो गया और रिक्शा पकड़ना पड़ा।” राजेश ने अफ़सोस जताते हुए कहा, “दुख की बात है। एक बात पूछूँ …. क्या कभी ऐसा भी हुआ कि अपने किसी ऐसे सहपाठी को बैठा कर रिक्शा चलाना पड़ा हो जो पढ़ाई में तुमसे फिसड्डी भी था पर अब आरक्षण की बदौलत नौकरी पा कर बड़ा आदमी बन चुका हो?” लड़के ने कहा, “यही बात आपने एक साल पहले पूछी होती तो मैंने कहा होता, “क्यों साहब जले पर नमक छिड़क रहे हो”, पर अब हालात से समझौता कर लिया है। कभी नीची जाति में पैदा होना शाप की तरह था और अब ऊंची जाति में पैदा होना शाप है। और क्या कहें।” सत्यार्थी ने चाय की चुस्कियां लेते हुए इत्मीनान से कहा, “यही तो सामाजिक न्याय है।” राजेश ने सारी चाय एक साथ हलक के नीचे उतारते हुए थोड़ा आवेश के साथ कहा, “यह सामाजिक न्याय है या फिर ये बेचारा इस तथाकथित सामाजिक न्याय का शिकार है?”

लड़के ने गौर से सत्यार्थी को देखते हुए कहा, “साहब एक बात कहूं। पैसे वाले की हैसियत उसकी जात से ऊंची होती है। जो सामाजिक न्याय सच में करना हो तो उनके बच्चों का आरक्षण रोक कर दिखाओ,जो जात का फायदा उठाकर अफसर बन चुके हैं ताकि आरक्षण की रोशनी उस जाति के गरीब तक पहुंच सके। साहब यह कोई सामाजिक न्याय नहीं है बस जाति का वोट कार्ड है। रिक्शावाला होकर भी ज्यादा बोल गया हो तो माफ कर दीजिएगा।” राजेश, “दुख हुआ तुम्हारे हालात जानकर। क्या वह रिक्शा तुम्हारा है?” रिक्शावाला,”हां साहब, कहीं छोड़ दूं।” राजेश, “हां तिलकामांझी चौक के पास होटल शीशमहल चलना है। रिक्शावाला,”₹40 लगेंगे।” राजेश, “ठीक है तो चलें।” फिर रिक्शा पर दोनों बैठ गये।

थोड़ा आगे चलने के बाद चढ़ाई आ गई। रिक्शावाला उतरकर पैदल रिक्शा खींचने लगा। फिर दोनों मित्र रिक्शा से उतरकर रिक्शा को एक हाथ से धक्का देते हुए रिक्शा वाले के साथ साथ चलने लगे और रिक्शा वाले से बात भी कर रहे थे। राजेश,”हाथ से चलाने में तो बहुत ताकत लगती होगी।” रिक्शावाला, “हां साहब और समय भी। अब टेंपो लेने की सोच रहे हैं, हर महीने पैसा भी जमा कर रहे हैं।” राजेश, “बैंक से लोन ले सकते हो।” रिक्शावाला, “भगवान ने चाहा तो अगले साल लोन से ले लेंगे। इस साल के अंत तक कुल लोन का 25% जमा कर लूंगा। फिर ई रिक्शा के लिए लोन ले लूंगा। फिर ज्यादा कमाई भी होगी और समय भी बचेगा।”

तब तक चढ़ाई समाप्त हो चुकी थी। दोनों मित्र वापस रिक्शा में बैठ चुके थे। अब सड़क के किनारे झुग्गी झोपड़ी की कतारें शुरू हो चुकी थी। एक-दो जगह ताड़ीखाना भी नजर आया। शराब के दुकान के भी कुछ बोर्ड दिखे पर उसके ऊपर से अलकतरा के द्वारा क्रॉस का निशान बना हुआ था जो शराबबंदी की याद दिला रहा था। सत्यार्थी ने पूछा, “कुछ पीते भी हो दारू या ताड़ी?” रिक्शावाला, “नहीं साहब” फिर एक हाथ से कान पकड़ते हुए बोला, “ना, बिल्कुल नहीं, मुफ्त में पीने का मौका मिले तो भी नहीं। मुझे तो यह आज तक समझ में नहीं आया कि कोई अपने पैसे से जहर खरीद कर अपने ही शरीर के अंदर कैसे डाल सकता है।” राजेश, “तुम तो बिल्कुल आदर्श व्यक्ति हो।

आज की तारीख में तुम रिक्शा जरूर चला रहे हो पर मेरा दिल कहता है कि एक दिन तुम बुलंदियों को जरूर छुओगे।” रिक्शावाला, “धन्यवाद भैया, पर फिलहाल 5-10 मिनट के लिए माफी चाहूंगा। सातवीं क्लास तक मेरे साथ पढ़ चुका मेरा एक मित्र शराब और ताड़ी की लत की वजह से बीमार पड़ा है। लीवर खराब हो गई है। पेट में पानी भर आया है। उसकी पत्नी मुझे राखी बांधती है। तो मेरा भी फर्ज बनता है। चावल गेहूं की दिक्कत तो नहीं पर साग भाजी की जिम्मेदारी मैंने ले ली है। बस सब्जी उसके घर रखकर वापस आता हूं।” राजेश और सत्यार्थी वही टहलने लगे।

इस बीच एक घर के पास शोरगुल बढ़ता जा रहा था। कौतूहल बस दोनों उधर गए। एक औरत दरवाजा के पास खड़ी होकर अपने पति को अंदर आने से रोक रही थी। गुस्से से उसका चेहरा तमतमाया हुआ था। दोनों बच्चे मां के पीछे सहमे खड़े थे। औरत चिल्ला रही थी, “बहुत हुआ। अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती। शराब पीकर मुझे पीटना, बच्चे को पीटना, पैसे लेकर दोस्तों को बुलाकर मुझे उनके हवाले कर देना। अब और बर्दाश्त नहीं होगा। जैसे तुम्हारा दोस्त को पीट कर भगाया था आज तुम्हारी बारी है। घर में नशे की हालत में घुसे तो पीट पीट कर कचूमर निकाल दूंगी। जाओ किसी भी नाली में गिर परो, मुझे कोई मतलब नहीं। नशा उतर जाएगा, तभी घर में घुसने की हिम्मत करना।”

पूरी रणचंडी बन चुकी इस महिला के हिम्मत को देखकर पास पड़ोस के मर्द लोग भी खिसक रहे थे। इसपर भी शराबी पति का नशा नहीं उतरा था। लड़खड़ाती आवाज में वह बोला, “शाली मुझे घर से निकालती है। मैं दूसरी शादी करके सौतन को तुम्हारे सर पर जो बिठा न दिया तो मैं भी अपनी मां का औलाद नहीं।” औरत गुस्से में बिफरते हुए बोली, “जा शादी करके अपने माँ के पास ही रहियो। घर का किराया भी मैं ही भरती हूं। घर भी मैं ही चलाती हूं। बस तुम से मुक्ति मिल जाए तो मैं भगवान को लड्डू चढ़ाऊँगी।” 3-4 औरतें वहां जमा हो गई थी। एक ने कहा, “बहन बिल्कुल सही कह रही हो। मात्र यही एक तरीका हो सकता है इन लोगों के नशे को उतारने का। मेरा भी मालिक यदि पीकर आया तो मैं भी उसकी यही हाल करूंगी।”

एक पड़ोसी ने उसके पति को संभालते हुए कहा, “आज तुमको अपने घर में रख लेता हूं। जो अगली बार पी कर आया तो मेरा दरवाजा भी बंद ही मिलेगा, कह दे रहा हूं। यह दारू बाजी बंद करो।” अब तक रिक्शावाला वापस आ चुका था। दोनों मित्रों को यहां देखकर बोला, “यह तो यहां का रोज का तमाशा है। पति पीकर आता है। फिर पत्नी के साथ झगड़ा होता है।” राजेश ने रिक्शा पर बैठते हुए कहा,’यह पत्नी भी वैसे ही दूरदर्शी है जैसे कि तुम। देखना यह अपने पति को सुधार कर रहेगी और तुम भी अपनी तकदीर से गरीबी का दाग मिटा कर रहोगे।” थोड़ी देर में होटल शीश महल आ चुका था। सत्यार्थी ने रिक्शा वाले को पैसा देते हुए कहा, “आरक्षण की वजह से तुम्हारे कैरियर को जो नुकसान हुआ उसका मुझे भी अफसोस है। पर अपनी मेहनत से तुम अपनी मंजिल पर एक दिन जरूर पहुंचोगे, मुझे पूरा भरोसा है।” राजेश ने मुस्कुराकर सत्यार्थी को देखा, “अरे वाह इतना जल्दी, विचार परिवर्तन या फिर फिर हृदय परिवर्तन?” सत्यार्थी बोला, “रात में बात करते हैं न

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डॉक्टर प्रभाकर भूषण मिश्रा

जन्म स्थान : जमालपुर (मुंगेर), बिहार, शिक्षा: एमबीबीएस, एमडी (मेडिसिन) रुचियां: पेंटिंग एवं लेखन
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