सपने जमीन पर

ऑल राउंडर मास्टर जी

 

अब तक आपने पढ़ा गरीबी के कारणों पर शोध के लिए आए हुए विद्यार्थियों को लेकर मंडल जी ने उन्हें स्कूल के प्रधानाध्यापक से मिलवाया जो अपनी मजबूरी का रोना रो रहे थे कि पढ़ाई के अलावे अन्य इतने सारे अन्य सरकारी काम हैं कि पढ़ाने का समय ही नई मिल पाता। शिक्षकों की गुणवत्ता दिखाने के लिए अब मंडल जी उन्हें अब स्कूल के एक शिक्षक से मिलवाने के लिए ले जा रहे हैं।

     ऑल राउंडर मास्टर जी

दूसरे दिन मंडल जी सबको साथ लिए शर्मा जी मास्टर साहब से मिलने चल पड़ते हैं। विद्यार्थियों को मंडल जी ने बताया, “पंचायत के माध्यम से घूस देकर ग्रेजुएट विद्यार्थियों ने शिक्षामित्र के पद पर बहाली ली थी। मात्र ₹1500 की नौकरी से शुरू हुआ यह सफर 34 हजार तक पहुंच चुका है। कुछ लोगों को जुगाड़ विद्या में महारत हासिल होती है। ग्रेजुएट की डिग्री तो इनके पास है पर इनके नॉलेज का पता बातचीत से आपको लग ही जाएगा।”

शर्मा जी का घर आ चुका था। बाहर निकलते ही दो अजनबीयों को देखकर शर्मा जी ने अपने हाई पावर चश्मे को आंखों पर ठीक से बिठाते हुए पूछा, “ई दुन्नु कउन है?” मंडल जी ने मजाक किया, “पता नहीं, बस आपके बारे में पूछ रहे थे। मैंने कहा स्कूल में मिलवा देते हैं पर ये बोले घर पर ही मिलेंगे, सो घर पर ही ले आये।” शर्मा जी के चेहरे कई भाव आ रहे थे जा रहे थे पर ये जानते ही कि वे लोग जानबूझकर घर पर ही मिलना चाहते थे, उनके चेहरे पर थोड़ा सा आश्वस्ति का भाव आ गया था।

अंदाजा लगाते हुए बोले,  “शिक्षा विभाग से आए हैं क्या?” सत्यार्थी ने कहा, “हां भागलपुर के शिक्षा विभाग से सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर की जानकारी लेने आए हैं।” मास्टर साहब, “आइए आइए अंदर आइए। कौन चीज जानने आए हैं हम ठीक से बुझे नहीं। अरे रमुवा तुम समझा कर बताना रे। “सत्यार्थी कृत्रिम गंभीरता से लगभग डांटते हुए कहा” क्यों रमुआ आपका एसिस्टेंट है क्या? और क्या आप ऊंचा सुनते हैं? हम शिक्षा के स्तर की जानकारी लेने आए हैं जैसे कि आपकी क्वालिफिकेशन क्या है? आप कौन कौन सा विषय पढ़ाते हैं? मास्टर साहब ने चेहरे पर बिछी मुस्कुराहट को जाने नहीं दिया था, “भागलपुर से ना आए हैं आप लोग। वहाँ हमर ननिहाल है। पर ऐसन न भाषा आप लोग बोलते हैं जैसे कि सीधे विदेश से आए हैं। कव्वाली कव्वाली क्या बोले? बुझे नहीं हम। रमुआ बता न रे।” रामु, “अरे परमात्मा, इ पूछ रहे हैं कि आप कितना पढ़े लिखे हो?”

मास्टर साहब की मुस्कुराहट बदस्तूर जारी थी। चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “तो ई ना पूछो कि हम कहां तक पास किए हैं। बाहर बोर्ड में देखबे किये होंगे “राम कुमार शर्मा, ग्रेजुएट, शिक्षक, आदर्श विद्यालय”। राजेश, “तो आप ग्रेजुएट हैं।” मास्टर साहब तन कर बैठ गए और अभिमान के साथ सर उठाते हुए कहा, “जी बिल्कुल।” राजेश ने गंभीरता के साथ आगे पूछा, “तो कौन कौन सा विषय पढ़ाते हैं?” मास्टर साहब अतिरिक्त आत्मविश्वास से, “अरे इ न पूछिये कि कौन सा विषय नहीं पढ़ाते हैं। उ अंग्रेजी में क्या बोलते हैं …… अलराउंडर, तो बुझ लीजिये हम वही अलराउंडर हैं। अंग्रेजी, हिंदी, गणित सब्भे विषय पढ़ाते हैं।”

राजेश, “तो कुछ आसान सा ट्रांसलेशन पूछ लेता हूँ।” रामू मुस्कुराते हुए बीच में टपक पड़ा, “ट्रांसलेशन मतलब हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद।” मास्टर साहब, “जानते हैं, जानते हैं।” रामू, “मुझे लगा आप फिर कहेंगे बता रे रमुवा, इसलिए मैंने पहले ही बता दिया एडवांस में।” राजेश, “इसका अंग्रेजी में ट्रांसलेशन करिये” बदलता है आसमां रंग कैसे कैसे। “मास्टर साहब अपने चेहरे की मुस्कुराहट को बनाए रखना चाह रहे थे पर लग रहा था कि मुस्कुराहट अब गायब ही होने को है,” तो क्वेश्चनवा पूछेबे करियेगा, छोड़िएगा नहीं। राजेश शांति से, “बेहद आसान सवाल पूछ रहे हैं और आप ग्रेजुएट हैं, आपको जबाब देना ही चाहिए।” मास्टर साहब की मुखाकृति से मुस्कुराहट लुप्त हो चुकी थी और चिंता की लकीरें साफ-साफ झलक रही थी। टी टेबल के नीचे से कागज कलम निकालकर कहा, “फिर से एक बार बोलिए तो।” राजेश, “बदलता है आसमां रंग कैसे कैसे।”

ॉमास्टर साहब ने कुछ देर तक कागज पर लिखने के पश्चात कहा, “बदलता है आसमां रंग कैसे-कैसे, का ट्रांसलेशन हुआ “चेंज कलर स्काई हाउ हाउ” रामू अपनी हंसी रोक नहीं पाया और ताली बजा बजाकर हँसने लगा, ”वाह वाह वाह वाह।” राजेश हंसी को दबाते हुए कहा अच्छा तो एक और ट्रांसलेशन बनाइए, ”मुंबई की सड़कों पर गोलियां चल रही थी।” मास्टर साहब ने फिर कागज पर कुछ कुछ लिखने के बाद कहा,  मुंबई की सड़कों पर गोलियां चल रही थी का ट्रांसलेशन “टेबलेट वाकिंग ऑन रोड ऑफ मुंबई।”

राजेश मुस्कुराते हुए, तो एक और ट्रांसलेशन हो जाए “मैंने उन लोगों को सिखाया।” इसका जवाब आया, “आई लर्न देम” राजेश, “मैंने उसे रुला दिया” इसका क्या होगा? थोड़े माथापच्ची के बाद मास्टर साहब, “रोने का अंग्रेजी क्या होता है रे रमुआ, थोड़ाभूल रहे हैं, पेट में है मुंह में नहीं आ रहा।” रामू मुस्कुराते हुए, “रोना का अंग्रेजी होगा वीप।” मास्टर साहब के चेहरे पर मुस्कुराहट फिर लौट आई है, इसका अंग्रेजी होगा “आई वीप हीम।” सत्यार्थी ने गंभीरता के साथ बोला, ”लगता तो नहीं कि आप ग्रेजुएट हैं।” मास्टर साहब समझ चुके थे कि उनकी पोल खुल चुकी है। पर चेहरे की मुस्कुराहट और चौरी हो चुकी थी।

किचन के अंदर गए और कुछ मिठाइयों को सजा कर सबके सामने रखा और बोले मिठाई का मजा लीजिए, “ऐसा स्वाद आपको बार-बार मिलेगा नहीं, स्पेशल मिठाई है।” फिर थोड़ी देर झेंप के भाव को मुस्कुराहट से दबाते हुए कहा, “आप ठीके बुझे, हम्मर ग्रेजुएट का डिग्री जुगाड़ का है पर इंटर हम सच्चे में पास किए हैं उ भी एक्के बार में।” रामू ने मजाक करते हुए कहा, “वाह मास्टर साहब, एक्के बार में इंटर निकाल लिये।” मास्टर साहब, “यही नहीं, नवा, दसवां भी एक्के बार में निकाले थे।” रामु, “तो आठवीं क्लास में लटक गए थे क्या?” मास्टर साहब ने हंसते हुए कहा, ”बाबू उ जमाना आजकल का जमाना नहीं था कि कुर्सी टेबल सभै पास। एक बार में पास करना बरका बात हुआ करता था, तो आठवीं में लटक गए थे।

सत्यार्थी गंभीरता के साथ, “तो आप फर्जी डिग्री लेकर मास्टर बने हुए हैं।” मास्टर साहब की मुस्कुराहट और चोरी हो गई, “जब आप मंडल जी को बोले कि हम घरे जा कर मिलेंगे तबहिये हम बुझ गए कि मामला कुछ ले देकर सलटा लिया जाएगा, तो बोलिए कितना देना पड़ेगा आपको?” राजेश और सत्यार्थी दोनों खिलखिला कर हंस पड़े, “अरे हम लोग शिक्षा इंस्पेक्टर थोड़े ही हैं, हम तो भागलपुर यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी हैं।” मास्टर साहब के चेहरे पर आश्वस्ति का भाव आ चुका था और अब वह खुलकर हंसे, “हे भगवान, आप लोग भी न, हद कर दिए, उ त हम थे कि झेल गए, और कोई होता तो हार्ट फेल कर जाता।” सत्यार्थी हँसते हुए मास्टर साहब हम्मर लिए भी कोई नौकरी का जुगाड़ लगवा सकते हैं?” मास्टर साहब का आत्मविश्वास वापस लौट चुका था। बोले, ”मंडल जी के साथ आए हैं तो बूझिए आप अपने ही आदमी हुए तो अपने आदमी न अप्पन के काम आएगा और मुखिया जी तो बूझिए अपनही आदमी है, पर वहां अंग्रेजी में गिटपिट करने से काम नहीं चलेगा। वहां थोड़ा बटुआ ढीला करना पड़ेगा बाकी हम संभाल लेंगे

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डॉक्टर प्रभाकर भूषण मिश्रा

जन्म स्थान : जमालपुर (मुंगेर), बिहार, शिक्षा: एमबीबीएस, एमडी (मेडिसिन) रुचियां: पेंटिंग एवं लेखन
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