सपने जमीन पर

कल आज और कल

(भाग – 2)

 

गतांक में आपने पढ़ा: कभी अपनी जमीन बेचकर गुजारा करने को मजबूर मंडल जी ने अपना राजनैतिक सफर कैसे शुरू किया, अपने उन दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि कुछ विद्यार्थी उनसे शोध के सिलसिले में मिलने गांव आए थे।  खाद्य सुरक्षा के ऊपर बातें हो रही थी। अब गतांक से आगे

कल आज और कल

(भाग – 2)

 

राजेश, ”पर खाद्य सुरक्षा योजना तो अच्छी योजना है। बंगाल के दुर्भिक्ष में कितने लोगों की मौत हो गई। इन योजनाओं से भविष्य में ऐसी नौबत तो नहीं आएगी।”

मंडल जी ने धैर्य पूर्वक समझाया, ”बेशक यह बेहद अच्छी योजना है। पर सालों भर के लिए नहीं, दुर्भिक्ष हो, अकाल हो, कोई विपत्ति आ जाये, महामारी फैल जाय, तो भले ही इस योजना से लोगों की जीवन रक्षा हो सकेगी। पर बगैर किसी वजह के सालों भर इसका लाभ देने से लोग आलसी और निकम्मे हो जाएंगे। एक बात मैं पूछता हूं जो 4 रुपये किलो चावल या गेहूं का लाभ ले रहे हैं क्या बे ₹5 में स्टेशन पर जाकर चाय नहीं पीते हैं। अरे कई लोग तो ऐसे हैं जो ₹200 में दारू की बोतल भी खरीदते हैं। भई ₹5 किलो चावल और गेहूं उन्हें मुहैया कराओ जो भूखे मर रहे हो वरना इस तरह से सब पर इसे लुटाना और कुछ नहीं बस वोट बैंक बनाना है। जितनों को फायदा मिलेगा उतना ही बड़ा वोट बैंक बनेगा।”

सत्यार्थी को मंडल जी का यह तर्क कुछ भा नहीं रहा था, ”सरकार यदि सक्षम है कि वह किसी को मुफ्त में खिला सकती है तो इसमें आपको क्या आपत्ति है?” मंडल जी ने सत्यार्थी को गौर से देखा, मानो वह समझना चाहते हों कि सत्यार्थी यह सवाल भोलेपन से पूछ रहा है या उसे मुफ्त खोरी की योजना सच में अच्छी लगती है। पर स्वगत रूप से संभलते हुए मंडल जी ने उत्तर उछाल दिया था, “मुझे व्यक्तिगत रुप से तो आपत्ति करने का कोई अधिकार भी नहीं है। क्योंकि पिछले साल से तो मैं भी इसी खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ उठा रहा हूं।” अब चौकने की बारी सत्यार्थी और राजेश की थी। और सत्यार्थी तो बोल ही बैठा, “माफ करिएगा मंडल जी।  आप खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ भी उठा रहे हैं और उसी की बुराई भी कर रहे हैं!” राजेश ने बात संभाली, ‘मंडल जी को किस मजबूरी की वजह से ऐसा करना पड़ा वह तो मुझे जानने दो। पूरी बात जाने बगैर कोई राय कायम कर लेना अच्छी बात नहीं।” मंडल जी ने मुस्कुराते हुए स्नेह पूर्ण नजरों से राजेश की तरफ देखा, ”सही कहते हो राजेश। कोई भीख कब मांगता है जो बहुत मजबूर हो जाए। ”ऐसा कहते कहते उनका गला भर आया था, “मैं नहीं चाहता कि मेरी तरह और भी लोग मजबूर हो जाए। इसलिए मैं इस खाद्य सुरक्षा योजना का विरोध कर रहा हूं। अपनी बस बात रख रहा हूं। बाकी आप लोग शोधार्थी हो, शोध करो।” राजेश ने सहानुभूति पूर्वक पूछा, “आखिर हुआ क्या था?” मंडल जी ने रोष पूर्वक कहा, ” सब मजदूरों का पेट यदि भरा रहेगा तो वे मनमाना मजदूरी तो मांगेंगे? पर क्या करें एक बीघा खेत में अकेला खेती तो कर नहीं सकता सो मजबूरी में दुगनी मजदूरी देनी पड़ी, कर्ज भी लेना पड़ा , पर बारिश ठीक से नहीं होने से सारा लागत डूब गया। पर कर्ज चुकाना तो जरूरी था नहीं तो महाजन के आदमी सर पर तांडव करने लगते। तो इस विपत्ति से छुटकारा पाने के लिए दो कट्ठा जमीन बेचा। इस साल फिर से रिस्क लेने की हिम्मत नहीं हुई तो मैं भी उसी खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ उठा रहा हूँ। ” थोड़ी देर के लिए माहौल में खामोशी पसर जाती है। राजेश ने गौर किया जमीन बेचने वाली बात कहते वक्त किस तरह से उनकी आंखें पनीली हो गई थी और आवाज भर्रा गया था।  सत्यार्थी को भी लगा कि वह गलत सोच रहा था। खोमोसी को सत्यार्थी ने तोड़ा, , ”ये तो दुखद स्थिति है। किसानों को अन्नदाता कहा जाता है। यदि वही जमीन बेचकर खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ उठाने लग जाएं और उत्पादन का जोखिम न लें तो देश के भविष्य का क्या होगा?”

राजेश ने इस दुखद प्रसंग को समाप्त करने के उद्देश्य से बिषय परिवर्तन किया “तो मंडल जी आपके बच्चे क्या कर रहे हैं?” बच्चों की बात से मंडल जी के चेहरे पर प्रसन्नता आ जाती है, “एक बेटी है आठवीं कक्षा में और एक बेटा है 12वीं पास किया है, बड़ा होनहार लड़का है, ट्यूशन पढ़ाकर अपने पढ़ाई का खर्च खुद निकाल लेता है।” तब तक एके गौरवर्ण, घुंघराले बालों वाला एक खूबसूरत लड़का दालान में चाय बिस्किट दालमोठ लेकर आ जाता है। टी टेबल पर प्लेट संभालकर रखता है फिर अदब से दोनों को प्रणाम करता है। मंडल जी परिचय करवाते हैं, “यह यह मेरा लड़का रामू है। और रामू, ये हैं राजेश जी और ये सत्यार्थी जी। भागलपुर यूनिवर्सिटी से शोध के लिए आये हैं।” रामु ने मुस्कुराते हुए बेतकल्लुफी से पूछा, “अच्छा गांव में भी कोई शोध मुमकिन है क्या?” राजेश, “हाँ हमारा विषय ही कुछ ऐसा है कि गांव में जाकर ग्रास रूट लेवल पर हमें पता करना है कि गरीबी का मुख्य कारण क्या है?” एक प्लास्टिक चेयर खींचकर रामू भी बैठ गया और वार्तालाप में शामिल हो गया, “आपके रिसर्च का विषय बिल्कुल सही है। क्लास 10th के एनसीईआरटी के इकोनॉमिक्स की पुस्तक में लिखा है कि पूरे देश के डीजीपी का 75% शहरों के उस सेक्टर से आता है जहाँ इस देश के 20% लोग काम कर रहे हैं जबकि 50% लोग कृषि से जुड़े हैं और वह मात्र 17 से 20% जीडीपी ही देश को दे पा रहा है। और साल दर साल कृषि क्षेत्र का योगदान घटता ही जा रहा है। आखिर ऐसा क्यों है ?इन विषयों पर शोध तो होना ही चाहिए।” दोनों विद्यार्थियों के चेहरे पर प्रशंसा का भाव था राजेश ने कहा, ”आपका बेटा तो काफी मेधावी है।” पर रामू के चेहरे पर थोड़ा उदासी का भाव आ गया, ”बस थोड़ा फिजिक्स और मैथ कमजोर है नहीं तो चाचा के लड़के की तरह मेरा भी नीट में सिलेक्शन हो जाता और मेरा भी डॉक्टर बनने का सपना पूरा हो।” फिर थोड़ी लापरवाही से कंधा उचकाते हुए बोला,  “पर सरकारी स्कूल से पढ़ाई कर कौन आजकल डॉक्टर या इंजीनियर बन पाता है! जब मेरे क्लास का टॉपर प्रकाश मिश्रा नहीं कर पाया तो हम लोग कहाँ से कर पाएंगे? सत्यार्थी, “तुम्हारे चाचा का लड़का कहाँ पढ़ता था?” रामू ने कहा, “डीपीएस भागलपुर में। वहाँ के 20 प्रतिशत बच्चों ने नीट एग्जाम क्रैक किया है। पर चाचा के लड़के का आरक्षित कोटे से सेलेक्शन हुआ है जनरल से नहीं। 40 प्रतिसत तो नंबर आया उसको जबकि प्रकाश को 70 प्रतिसत नंबर। फिर भी बेचारा कम्पीट नहीं किया।”

मंडल जी ने थोड़े उदासी के साथ कहा, “मेरे चाचा को पिछले तीन पुस्तों से आरक्षण का लाभ मिल रहा है। अब यह आरक्षण का लाभ उठाना बंद करें तब तो हम लोगों को आरक्षण की सुविधा मिल पाये! मैं तो कहता हूं जाति प्रथा समाप्त करो और आरक्षण को बस गरीब लोगों के लिए रहने दो हम अपने आप लाभान्वित हो जाएंगे और चाचा अपने आप आरक्षण की पंक्ति से बाहर हो जाएंगे। पर यहाँ तो सब वोट का मामला है। “राजेश ने सहमति जताते हुए कहा, ”आप बिल्कुल सही कह रहे हैं पर सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा, ताकि यहाँ के विद्यार्थी भी अच्छा कर सकें। अच्छा रामू, तुमने बताया कि प्रकाश मिश्रा का फिजिक्स का बहुत अच्छा है तो क्या तुम्हारे उस स्कूल में फिजिक्स और मैथ के अच्छे शिक्षक हैं?’ रामू ताली बजाकर हँस पड़ा, “टीचर है ही नहीं। 2 महीने के लिए आए थे ट्रांसफर करा कर भाग गए।” मंडल जी, ”अरे इनके सरकारी स्कूल में शिक्षा का बुरा हाल है। प्राइवेट स्कूल की महंगी फीस की वजह से बच्चे को यहाँ पढ़ाना पड़ता है। चलिए वहाँ का एक चक्कर लगाते हैं फिर आपको समझ में आ जाएगा। सरकारी स्कूल, मिड डे मील, साइकिल पोशाक योजना के लिए तो ठीक है पर पढ़ाई खुद करनी पड़ेगी।” सत्यार्थी, “तो ठीक है, रामू के स्कूल हम लोग चले?” राजेश ने थोड़ी सी असहमति जताई, “पर थोड़ा किसी से जान पहचान तो हो, ऐसे कैसे स्कूल चले जाए!” मंडल जी ने झिझक दूर कते हुए कहा, “अरे वहाँ का प्रिंसिपल महावीर प्रसाद मेरा बचपन का दोस्त है, तो समझो अपना ही स्कूल है। सीधे प्रिंसिपल से मिलेंगे।” मंडल जी रामू से, “बेटा बाड़ी में से एक लम्बा सा खीच्चा कद्दू ले आओ। उसे कद्दू की खीर बहुत पसंद है।

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डॉक्टर प्रभाकर भूषण मिश्रा

जन्म स्थान : जमालपुर (मुंगेर), बिहार, शिक्षा: एमबीबीएस, एमडी (मेडिसिन) रुचियां: पेंटिंग एवं लेखन
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