जनसंवाद भाग 3 (शेष अंश)
अब तक आपने पढ़ा: वामपंथ के घातक प्रभाव को मंडल जी ने रूबरू देखा और महसूस किया। समस्या तो काफी विकराल थी पर अब इसका हल क्या हो? इस अंक में आप पढ़ेंगे मंडल जी ने किस प्रकार से इस समस्या का समाधान ढूंढा।
जनसंवाद भाग 3 (शेष अंश)
पता चला शाम के वक्त नेताजी मुखिया के घर आए और पचास हजार रुपये की लेबी वसूली और बदले में ये आश्वासन दिया कि छह महीने तक हमारा कोई भी कामरेड आपको परेशान नहीं करेगा, लेकिन बस छह महीने तक, आगे की रकम वे तैयार रखें। यह भी पता चला कि नेताजी के इशारों पर आसपास के इलाकों में डकैतियाँ हो रही थीं, हत्याएं हो रही थीं और इसके साथ ही नेता जी का कद ऊंचा हो रहा था। ये भी पता चला कि गाहे-बगाहे इस मोहल्ले के लोग डकैती, चोरी आदि में रंगे हाथों पकड़े गए और जेल भी गए पर एक बार इन्होंने पुलिस की गाड़ी को रोक कर उन पर फायरिंग कर अपने लोगों को छुड़ा भी लिया था। यानी इन लोगों ने पूरी सामाजिक व्यवस्था को ध्वस्त कर रखा था।
इधर हाल में डॉ राजीव मिश्रा लिखित “विषैला वामपंथ” पढ़ा था। उसकी हकीकत अपने नंगे रूप में दिख रही थी। अब यह सचमुच में चैलेंज की तरह ही था कि उनके दिमाग में जो नफरत का बिष घोला गया है उससे इस पूरे जनसमुदाय को कैसे मुक्त किया जाय। कैसे इस भारी जनसमुदाय के अंदर पुराने तौर तरीके और रस्मो रिवाज वापिस लाया जाए। शिरोमणि जी बता रहे थे कि “पिछले 4 सालों में काफी बदलाव आया है। पहले हर पर्व त्योहार के अवसर पर या घर में होने वाली ब्याह शादी के अवसर पर दलित टोले के व्यक्तियों को अपने अपने मालिक के यहाँ से यथासंभव सहायता मिल जाती थी। पर अब माहौल बदल चुका है। पंजाब में जाकर, दिल्ली में जाकर यह झाड़ू भी लगा लेंगे पर यहाँ यह तन कर रहते हैं। मालिक नौकर के बीच जो सम्मान और सहायता का अन्योन्याश्रित संबंध था अब पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। कल तक जो ‘जी मालिक, जी मालिक, कहा करते थे उनके ही बच्चे अब संपन्न घरों पर धावा बोलने में हिचकते नहीं थे। आतंक का माहौल बनने लगा था। ” मंडल जी ने कुछ सोचते हुए कहा कि हम वापस उस रिश्ते को फिर से बहाल कर सकते हैं पर इससे पहले अगरे टोला में जाकर सब से मिलकर सलाह मशविरा कर ली जाए। शाम में फिर से शिरोमणि जी के घर बैठक हुई। मुखिया जी समेत कई लोग आए। एक कार्यक्रम तय किया गया। दलित टोले के जन समुदाय के हृदय परिवर्तन के दुष्कर कार्य को दो चरणों में पूरा किया जाना था। पहला चरण था मंदिर में दीप यज्ञ और उसके पश्चात प्रीतिभोज के लिए सबको आमंत्रित किया जाए और दूसरा चरण था कि प्रवचन के माध्यम से पुराने दिनों को फिर से वापस लाने की कोशिश की जाए। दलित टोला के अंदर जाकर लोगों को आमंत्रित करने के मंडल जी के आइडिया पर जन सहमति नहीं बन पा रही थी पर अंततः मिश्रा जी इसके लिए तैयार हो गए। दलित टोला के कई लोगों को उन्होंने मदद की थी, उन्हें उम्मीद थी कि वे लोग इस एहसान को भूले नहीं होंगे।
प्रीतिभोज के लिए, हर टोला में हर घर से मुट्ठी भर चावल, दाल, तीन आलू और हो उपलब्धता के हिसाब से थोड़ी सी हरी सब्जी लेना तय किया गया। इसे इकट्ठा करने का काम अगरे टोले के बच्चों को मिला था साथ में। साथ में मिश्रा जी मौजूद थे। रिक्शा और ढ़ोल के माध्यम से जन समुदाय के बीच यह घोषणा की जा रही थी-, “मंदिर में शानदार दीप यज्ञ का आयोजन किया गया है। दीप यज्ञ के पश्चात प्रीति भोज होगा आप सबों से निवेदन है कि इसमें भाग लेकर आप भी पूण्य के भागी बनें। निमंत्रण के तौर पर हम आप लोगों को पीला अक्षत देने आए हैं इसे स्वीकार कर अपनी सहभागिता सुनिश्चित करें पर यदि आप किसी वजह से आने में असमर्थ हैं तो अक्षत स्वीकार नहीं करें। यह अक्षत नहीं बल्कि ईश्वर का निमंत्रण है स्वीकार हो तभी अक्षत कबुलें। पूजा के बाद साथ-साथ जो प्रति भोज होगा उसमे दलित टोला, ब्राह्मण टोला, मुसहर टोला, यूँ कहे कि हर टोले के लोग साथ-साथ भोजन करेंगे। न जात पात का कोई भेदहोगा न अमीर और गरीब का। भोज के लिए हर घर से एक मुट्ठी चावल, एक मुट्ठी दाल, तीन आलू और हो सके तो थोड़ी सी हरी सब्जी लेना तय हुआ है। हमारे बच्चे आपके द्वार आये हैं, उन्हें ये प्रीति भोज के लिए देकर उनका उत्साहवर्धन करें। “ यह एलान खुद मिश्रा जी के द्वारा किया जा रहा था। दलित टोले में जब बच्चे लोग मिश्रा जी के साथ निमंत्रण देने के लिए पहुंचे तो शुरू में तो लोगों को यकीन ही नहीं हुआ फिर जो बूढ़े बुजुर्ग थे उनकी आंखें भर आई। किसी की बेटी की शादी में मिश्रा जी ने मदद की थी, तो किसी के बेटे की पढ़ाई का खर्च उठाया था। यूं ही लोग उन्हें सम्मान नहीं देते थे, उन्होंने इसके लिए काफी कुछ त्याग भी किया था। पुरानी यादें ताजा हो रही थी। जबरदस्ती के नफरत का जो चश्मा वामपंथियों ने लगा दिया था वह चश्मा उतरने लगा था। जब बूढ़े बुजुर्ग मिश्रा जी के अभियान में उनके साथ हो लिए तो धीरे-धीरे कई किशोर वय के लड़के भी उसमें शामिल हुए। कुछ लड़के जो अपने को कामरेड समझते थे वह साथ नहीं हुए पर ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा नहीं थी। शाम में मंदिर में दीप यज्ञ हुआ, आरती हुई, धार्मिक प्रवचन के पश्चात मिश्रा जी ने माइक थामी, “आज आप लोगों को यहाँ देख कर मेरा दिल भर आया है। आप लोगों के सहयोग के बगैर हम अधूरे थे। चाहे मामला खेत खलिहान का हो या परिवार चलाने का। हर जगह आपके सहयोग की आवश्यकता होती है। याद है जब खेत में फसल लहलहाते थे तो मेरे साथ साथ आपलोग भी खुश होते थे। हम रिस्क उठाते थे, लागत लगाते थे पर आपके सहयोग आपकी मेहनत के बगैर हम अपने खेतों में लहलहाती हुई फसलों को जी भर कर नहीं देख सकते थे। फिर जब अनाज पैदा होता था तो आप लोगों को अपनी मर्जी से खुसी खुसी तय दर से ज्यादा अनाज भी देते थे। मंदिर परिसर से रमवा उठकर बोला-, “इतना ही नहीं, मेरी बहन की शादी में भी आप काफी मदद किए थे।” बारी बारी से कुछ और कृतज्ञ लोगों ने अपनी कृतज्ञता प्रकट की। सुनाई मिश्रा जी ने कहा, ”कुछ नेताओं ने आपके कंधों का इस्तेमाल कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी की है। पर आपको क्या मिला। आपके टोले से चार लड़के अभी जेल में है। और कई लड़कों के दिलों में नफरत पल रही है। पढ़ाई लिखाई छोड़ कर वे गलत कामों में लगे हैं। कभी फिर वह भी जेल जा सकते हैं। हम चाहते हैं कि फिर से वह पुराने दिन वापस आएं। आज हम लोगों के साथ जो आप लोग बात कर रहे हैं और दिलों के बीच जो दूरियां थी वो मिट रही, इसका श्रेय मंडल जी को जाता है। यह हमारे गाँव के अतिथि हैं। इन्होंने आप के नेता का भाषण सुना और तभी से आने वाले बुरे दिनों के खतरों को भापकर हम सारे लोगों से इन्होंने बात की और आप लोगों को प्रीतिभोज पर बुलाया। मंडल जी तो वैसे किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं इनकी पार्टी का नाम है बीएपीएल अर्थात ऐसी पार्टी जो गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए प्रतिबद्ध है। तो अब मैं चाहूंगा कि मंडल जी भी आप को संबोधित करें।” अब माइक मंडल जी के हाथ में थी। मंडल जी ने कहा, “सामाजिक व्यवस्था को चलाने के लिए हर सदस्यों की आवश्यकता होती है, चाहे वह लुहार हो, कुम्हार हो, भंगी हो, बढ़ई हो या फिर ब्राह्मण हो। जैसे काम करने के लिए हाथ में पांचों अंगुलियों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार से हर जाति के लोगों के बदौलत सामाजिक व्यवस्था चलती है। सबका अपना अपना रोल है। पर यदि यह व्यवस्था टूट जाए और कुछ लोग अपने को सताया हुआ समझे और किसी को सताने वाला तो आप देखें कि वह कौन है जो आपके मध्य नफरत के बीज बो रहा है, और क्यों बो रहा है? किसी को शोषित और किसी को शोषक बता कर वह अपना कौन सा स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं? क्या वे सचमुच आपकी गरीबी दूर करना चाहते हैं? इन वामपंथियों के इतिहास को देख लीजिए, इन्होंने आजतक किसी की गरीबी दूर नहीं की है, बस गरीबों को गुमराह किया है। यह साम्यवाद की बात करते हैं। समाज में सबको बराबर का हक हो, बराबर की संपत्ति हो ऐसे दिवास्वप्न की बात करते हैं पर क्या यह व्यवहारिक है? क्या कभी यह संभव हो भी सकता है? एक ही परिवार के अंदर दो किस्म के बच्चे मिल सकते हैं। एक तो वह है जो अपनी साइकिल बेच कर भी तारी पी जाता है और दूसरा वह है जो मेहनत मजदूरी करके अपने भविष्य के लिए पैसे इकट्ठा करता जाता है और पहले तो आजीविका के लिए रिक्शा खरीदता है फिर कुछ पैसे बचाकर और कुछ लोन लेकर टेंपो खरीदता है, फिर व्यापार करता है और आगे बढ़ता ही चला जाता है। तो क्या यह दोनों बच्चों की संपत्ति एक जैसी हो सकती है? जबकि दोनों एक ही मां बाप के बेटे हैं। हाँ जो भाई सम्पति अर्जित कर चुका है वह यदि अपने भाई को पैसे से सहयोग कर दे तो वह समाज में एक आदर्श उपस्थित करेगा फिर भी यह साम्यवाद स्थापित नहीं कर सकता क्योंकि यदि उसका भाई पहले की तरह ही होगा तो वह इस पैसे को भी तारी पीने में, जुआ खेलने में या अन्य बुरी आदतों में खर्च कर सकता है। साम्यवाद का सपना उन्हें बेशक अच्छा लग सकता है जो निकम्मे हैं, नकारे हैं और जीवन के संघर्ष को, जीवन के चैलेंज को स्वीकार नहीं करना चाहते। साम्यवाद अपने आप में एक अच्छी अवधारणा हो सकती है पर तभी जब इसे कोई अमीर अपना ले, उसे गरीबों पर दया आ जाए और वह अपने धन को लोगों के उत्थान में खर्च करने लगे। पर यदि यह साम्यवाद गरीबों को अस्त्र के तौर पर दे दी जाय तो यह न केवल गरीबों के लिए आत्मघाती होगा बल्कि यह समाज में खून खराबा और तनाव की ऐसी स्थिति पैदा करेगा कि साम्यवाद तो दूर, लोग शान्ति और अमन चैन के लिए तरस जाएंगे चाहे वह अमीर हो या गरीब।
अब जरा देखिए कि गरीब और भोले भाले लोगों को किस प्रकार बरगलाया जाता है। ज्यादातर समाज में अमीर आदमी मुट्ठी भर होते हैं और उन्हें छोड़कर बाकी सब गरीब। तो फिर ये सारे गरीबों को शोषित बताकर उनकी भावनाओं को भड़का कर अपनी एक फौज खड़ी कर देते हैं दूसरे शब्दों में कहे तो भोले भाले गरीबो को नफरत की घुट्टी पिलाकर ये उनको लुटेरों में तब्दील कर देते हैं और खुद उसके सरगना बन जाते हैं, अब इनके पास एक बड़ा मैन पावर होता है जिसके बदौलत ये अमीरों से लेवी बसूलते हैं, सत्ता में न होते हुए भी सत्ता को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। नफरत के इस संगठन को जबर्दस्ती वसूले गए पैसों से मजबूत किया जाता है, हथियार खरीदे जाते हैं। पर इनके बहकावे में आकर आपके गाँव समाज के बच्चे जो कर रहे हैं कभी उसको खुद पर लेकर देखिए।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। मान लिया कि आप गाँव में अपने कुछ साथियों से कर्ज लेकर गाँव की मंडी से कम कीमत में फल और सब्जी की खरीद करते हैं। फिर ट्रॉली बुक करके सुबह-सुबह 4:00 बजे ही शहर चले जाते हैं। फिर वहाँ के आढ़त में किराए की दुकान पर इसे रखकर दिनभर बेचते हैं और शाम में कुछ पैसे कमाकर वापस गाँव आते हैं। आपने साल भर इस तरह से सुबह 4:00 बजे से लेकर रात 10:00 बजे तक लगातार पसीना बहाया हो, मेहनत की हो और एक दिन शाम लौटते वक्त आपके ही बचपन के साथी लोग वामपंथियों के बहकावे में आकर आप की साल भर की कमाई को क्षण भर में लूट लें तो आपको कैसा लगेगा? और याद रखें इन्हें आप की गरीबी को दूर करने से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं। बल्कि ये तो यही चाहेंगे कि आप गरीब ही बने रहें। जब तक आप गरीब हैं आपको यह शोषित बता कर शोषितों की फौज बनाते रहेंगे। इन्हें तो अमीरों से नफरत है। वैसे हर व्यक्ति से नफरत है जो उद्योगपति हैं भले ही उन्होंने अपने जिंदगी का सफर घनघोर गरीबी से क्यों न शुरू किया हो। इन्हें तो बस इस बात से मतलब है गरीबों के दिल में अमीरों के प्रति नफरत भरा हो क्योंकि ये नफरत की ही खेती करते हैं और नफरत भरे दिलों पर ही ये राज कर सकते हैं।। पर अपने दिल पर हाथ रख कर पूछिए। कौन ऐसा गरीब है जो गरीबी से छुटकारा नहीं पाना चाहता।
आज की तारीख में कोई पार्टी सचमुच में गरीबी दूर करना चाहता है तो वह मेरी पार्टी है “बीएपीएल” जिस का सूत्र है “आ ल रो भी” ………………। ” लोग मंत्रमुग्ध होकर मंडल जी को सुने जा रहे थे। सबको लग रहा था कि गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के इस पार्टी की योजना में दम है जो पूरी ईमानदारी से गरीबों को बेहतर जिंदगी देना चाहती है। भाषण के समापन में मंडल जी ने कहा कि “ आपलोगों में से किन किन को यकीन है कि हमारे पार्टी के पास आपके गरीबी को दूर करने की बेहतर योजना है, एक ऐसी योजना जिसमे हिंसा और हथियार की कोई जरूरत नहीं, जो समाज को तोड़ती नहीं बल्कि जोड़ती है…। ”लगभग सारे लोगों ने हाथ उठाया। फिर मंडल जी ने कहा-, “फिर तो आपको अपने कामरेड नेता की छुट्टी करनी होगी। ये काम कैसे करियेगा…..? ”लोग मुस्कुराते हुए एक दूसरे का चेहरा देखने लग गए। मंडल जी थोड़ा रुककर बोले-, “इस बार जब वह नेताजी आए तो आप उनसे कुछ सवाल अवश्य पूछें। उन्होंने कहा कि जंगल, जमीन, पानी और आसमान पर सबका हक है तो उनके पास जो बीघा का बीघा जमीन है उसे वे कब भूमिहीन लोगों के बीच में बाँटेंगे?
फिर वे ये कहते हैं कि बड़े बड़े घरों में छोटे-छोटे घरों की बहू बेटियां चौका बर्तन करती हैं और वे तबतक राज करेंगे जब तक कि बड़े घरों की बहू बेटियां आपके घरों में काम न करने लग जाय। तो उनको कहिये कि वे अपने घर में काम करने वाली जो दाई है वह बेचारी भी तो छोटे घर से आती है तो उसे वे बगैर काम कराए ससम्मान वेतन देते रहें। हालाँकि उन्होंने जिस मंजिल की बात की है उसके हिसाब से तो उनकी श्रीमती जी को पश्चात्ताप स्वरूप अपने काम वाली के घर जाकर काम करना चाहिए जिससे कि उनके साम्यवाद के सपने को जमीन मिल सके।।
आपको जो कुछ भी कहा जाता है उसे बस इसलिए नहीं सुने कि ऐसा सुनने में आपके दिल को अच्छा लगता है। आप यह भी देखें कि जो कहा जा रहा है वह कितना सच है और कितना व्यवहारिक है। अब अंत में मैं यह कहना चाहूंगा कि यदि कोई चाहता है कि वह बी ए पी एल पार्टी का सदस्य बने तो मात्र ₹10 में वह उसकी सदस्यता ले सकता है। यदि हमारी पार्टी सत्ता में आई तो जिन इलाकों में हमारे सबसे ज्यादा सदस्य होंगे उन इलाकों में हम सबसे पहले लघु उद्योग और रोजगार परक शिक्षा लागू करेंगे। ताकि आप की गरीबी का वास्तविक हल निकल सके। साम्यवाद के सपने को सपना समझ कर नींद से जागें, वामपंथ के फरेब को दूर से ही नमस्कार करें और बीएपीएल पार्टी को सपोर्ट करें।” मिश्रा जी ने माइक थामते हुए कहा -, “मंडल जी के बीएपीएल पार्टी की सदस्यता किन को किन को चाहिए? यदि आपके पास अभी तुरंत पैसे नहीं है तो हम आपकी तरफ से दे देंगे। लघु उद्योग और रोजगार रोजगार परक शिक्षा हमारे इलाके के लिए बेहद आवश्यक है। यदि यह हमारे इलाके में आ गई तो बेरोजगारी का हल निकल जाएगा और जिन युवाओं ने हथियार थाम ली है वह भी समाज के मुख्य रास्ते पर चल सकेंगे। मैं आज ही में बीएपीएल पार्टी का सदस्य बन रहा हूं। फिर रसीद पर सदस्य बनने वालों के नाम पता मोबाइल नंबर लिखे गए। फिर स्थानीय अध्यक्ष के रूप में मिश्रा जी के नाम को चयनित किया गया। तत्पश्चात मंडल जी ने घोषणा की-, “दीप यज्ञ के प्रसाद के रूप में प्रीतिभोज की खिचड़ी को आप आदर पूर्वक ग्रहण करें। यह केवल प्रसाद नहीं बल्कि आज रात्रि का भोजन भी है और यहाँ से आपसी भाईचारे और प्रेम की नई शुरुआत होगी। कल सवेरे इस मंदिर के प्रांगण से चाय नाश्ता के बाद पूरे गाँव में सफाई अभियान प्रारंभ होगा जिसमें हर टोले के लेकर लोग बराबर के हिस्सेदार होंगे और कंधे से कंधा मिलाकर अलग अलग टीम बना बना सारे लोग साथ साथ अलग-अलग क्षेत्रों की सफाई करेंगे। जिस टीम ने जितना ही अच्छा प्रदर्शन किया होगा उन्हें उसी के मुताबिक शाम के वक्त कुछ पारितोषिक भी वितरित किया जाएगा।
यह अभियान इतना सफल रहा कि इस इलाके मैं जब नेताजी फिर से आए तो वहाँ से खिसक जाने में ही अपनी भलाई समझी। सारे लोगों के सामने खुद रमुआ ने उनसे वैसे वैसे सवाल पूछे कि उनसे कोई जवाब देते ही नहीं बना, फिर वे मार्क्स और लेनिन की बात करने लगे पर गाँव वालों ने समझा दिया कि यह हम लोग का गाँव है रूस नहीं। रूस में में भी तो आप फेल हो गए और यहाँ आप नफरत फैला रहे हैं। फिर जो नेता जी इस गाँव से गए तो दोबारा लौटकर नहीं आए।