सपने जमीन पर

धारा 51, 52, 54

 

अब तक आपने पढ़ा : कभी अपनी जमीन बेचने को मजबूर मंडल जी अब एक उभरते हुए नेता हैं। पत्रकारों को जवाब देने के क्रम में वे अतीत के पन्नों को पलट रहे हैं। वे शोध कार्य के लिए गांव आए विद्यार्थियों को शिक्षा और सरकारी शिक्षक से रूबरू करवाते हैं। लौटते वक्त एक पागल सा शख्स नजर आता है। सरकार के शिक्षा नीतियों की आलोचना कर रहे इस पागल को सारे लोग सुन रहे हैं, जिसमें एक वकील और दरोगा भी शामिल है। अब आगे :-

   धारा 51, 52, 54

तब तक बगल से मंडल जी और दोनों विद्यार्थी गुजर रहे थे। यह दोनों पीछे पीछे उनकी बातों को सुन रहे थे।

मंडल जी ने इस पागल शख्स के बारे में बताते हुए कहा, “ई बेचारा खाँटी ईमानदार को भ्रष्टाचार के केस में फंसा कर खूब पीटा गया। जेल से छूट तो गया। पर मानसिक संतुलन जाता रहा। पागल हो गया बेचारा। इधर 10-15 दिन से यही बरगद का पेड़ इसका ठिकाना है।” राजेश, “बात तो ये फिलॉस्फर जैसा कर रहा है।” सत्यार्थी, “ठीक ही तो बोल रहा है, फ्री तो सब कर दिया पर ऐसा मिड डे मील का फायदा ही क्या कि शिक्षा का मूल उद्देश्य ही गुम हो जाए।” राजेश, “साइकिल पोशाक का दिया जाना तो अच्छी बात है। घर की परिधि से लड़कियां निकलकर उस स्कूल के प्रांगण तक तो आई। पर मूल उद्देश्य शिक्षा ही लुप्त हो जाए तो मिड डे मील, साइकिल, पोशाक योजना वैसे ही है जैसे कि विद्यार्थी को स्कूल बिल्डिंग का दर्शन तो करा दिया पर उधर क्लास वाले मास्टर साहब को पढ़ाई की जगह दूसरे काम में उलझा दिया या फिर ऐसा मास्टर दे दिया जो किसी काम का नहीं। बस अटेंडेंस बनाओ। घर जाओ। कल फिर आओ। परीक्षा दो। डिग्री लो। पर इस डिग्री का होगा क्या? वह भी खासकर ऐसे सरकारी स्कूलों की डिग्रियां।” सत्यार्थी, “पर हमें क्या! हम तो कोल्हू के बैल हैं। अपने काम से मतलब। इससे ज्यादा तो दिखता ही नहीं। ये पागल भी क्या सटीक बोलता था।” मंडल जी ने सहमति जताई, बात तो सही है। ज्यादातर सरकारी स्कूल का यही हाल है।

राजेश “शिक्षकों का क्या स्तर है हम लोग देखकर आ ही रहे हैं। एक बिचारे महावीर जी हैं जो अकेले पिसे जा रहे हैं और बाकी सब मैनेज किए हुए है।” सत्यार्थी, “मैनेज और जुगाड़ टेक्नोलॉजी का ही तो आजकल बोलबाला है।” मंडल जी, “पास फेल का गणित भी बड़ा निराला है। पढ़ने वाला तो पास करता ही है जो मास्टर साहब के खेत पर काम कर दे वह भी पास और पैसा खर्च कर दिया तो अच्छे नंबर से पास भले वो एक दिन भी स्कूल ना आया हो।” सत्यार्थी, “तो क्या अच्छे अनुशासन पसंद इमानदार शिक्षक एक भी नहीं जो फर्जी विद्यार्थी को फेल कर सके।” मंडल जी अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा, “वह जमाना चला गया जब शिक्षक नहीं पढ़ने पर पीटते भी थे और फेल भी कर देते थे। अब तो जो फेल किया तो बेटा और बाप दोनों मिलकर शिक्षक को ही धो देगा। तो रिस्क कौन ले और कौन विद्यार्थी के पीछे अपना खून जलाए। तो सब पास। लेकिन यह डिग्री भर है। इससे कुछ होना जाना नहीं है। कंपटीशन में दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा। जो बचे रह जाएंगे वे कहलायेंगे शिक्षित बेरोजगार।”

सत्यार्थी, “बड़ा ही भ्रष्टाचार है। बचपन से ही उसकी स्कूल से ट्रेनिंग शुरू हो जाती है।” मंडल जी, भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार है। क्या शिक्षक, क्या विद्यार्थी और क्या अभिभावक। नकली डिग्री लेकर शिक्षक बन जाते हैं, रिश्वत देकर विद्यार्थी परीक्षा पास कर जाता है, और अभिभावक भी कम नहीं साइकिल के लिए दो-दो सरकारी स्कूल में नाम लिखा लेता है एक साइकिल रखते हैं एक बेच देते हैं। सत्यार्थी आश्चर्य से, “और हेड मास्टर को पता चल गया तो?” मंडल जी व्यंग से मुस्कुराए, “उनको पता नहीं चलता ऐसा थोड़ी है। पर ऐसा है कि ज्यादा ईमानदार हुए और चु चपड़ किए तो धो दिए जाएंगे और जो व्यावहारिक हुए तो मिल बैठकर मलाई खाएंगे।” राजेश आपत्ति जताते हुए बोला, “मतलब जो बेईमान है उसे आप व्यवहारिक मानते हैं?” मंडल जी ने मुस्कुरा कर कहा, “विद्यार्थी जी सिद्धांत की दुनिया से बाहर निकलो तब पता चलेगा ईमानदार खाता है लात जूता और बेईमान खाता है घी मलाई। तो बताओ व्यवहारिक कौन हुआ। ऐसा है कि सरकारी धन का लूट है लूट सके तो लूट। अंत काल पछतायेगा जब प्राण जाएगा छूट।”

राजेश “वाह क्या बात कही है आपने लूट सके जो लूट।” मंडल जी, “और क्या, यह तो कुछ भी नहीं, इलेक्शन आने दीजिए फिर देखिएगा, एक से बढ़कर एक लूटने वाला। हर डिपार्टमेंट से वसूली होगा। इलेक्शन है, मजाक बात है! वोटर को पैसा बांटना है। वोट खरीदना है। क्षेत्र के लिए तो कोई काम किया नहीं जो सबका दिल एक साथ जीत सकें। अब तो हर एक वोटर को खरीदना पड़ेगा। और कोई अपने जेब से तो पैसा बाटेंगे नहीं। कोई दानवीर कर्ण का औलाद तो है नहीं। जाति और पैसा यही दो समीकरण चलता है उस वक्त।” राजेश, “और विकास?” मंडल जी, “विकास भी है पर वह हाथी के दिखाने वाली दांत की तरह है। और पैसा खाने वाली दाँत है। विकास सुनाने के लिए पैसा खाने और खिलाने के लिए। अब जब सब पैसा खाने और खिलाने में खर्च हो जाएगा तो विकास कहां से आएगा।” राजेश, “इन लूट के पैसों का गरीबी उन्मूलन के लिए, गरीबों को रोजगार देने के लिए, हर हाथ को काम देने के लिए, क्या कोई बेहतर इस्तेमाल नहीं हो सकता था।” सत्यार्थी, “यही सब तो शोध का विषय है।” 

 पीछे पीछे साथ साथ चल रहे दरोगा, वकालत से आपस में बात कर रहे थे। वकालत, “दरोगा, समझ में आया शिकार सामने है। अभी इन दोनों को देशद्रोह के आरोप में फंसा के ब्लैकमेल कर सकते हैं।” दरोगा सिंह, “हम भी यही सोच रहे थे। देखो शिकार सामने है। फस गया तो कुछ माल ढीला हो जाएगा।” दरोगा सिंह तेजी से चलकर मंडल जी और विद्यार्थियों के सामने आ गया और अपने डंडा से इनलोगों को रुकने का इशारा किया किया, “हम लोग सब सुन रहे थे सरकारी नीतियों का अपमान वह भी सरेआम क्या कहते हो वकालत सिंह दिनदहाड़े यह कर रहे हैं सरकार को बदनाम। इन पर कौन सी धारा लगेगी जो यह याद रखेंगे जिंदगी तमाम।” दरोगा जी जब मजे के मूड में होते थे तो बातचीत तुकबंदी में करते थे। वकालत सिंह भी सामने आ चुका था। बोला, “इस तरह से आप सरकारी नीतियों का अपमान नहीं कर सकते। ये राजद्रोह है, जुर्म है। अभी बताता हूँ कि आप पर कौन कौन सी धाराएं लग सकती हैं।” फिर कंधे पर लटक रहे थैले के अंदर से एक किताब निकाल कर उसे पढ़ने का नाटक करते हुए कहा, “पोशाक साइकिल नीति की आलोचना के लिए धारा 51, खाद्य सुरक्षा योजना के लिए धारा 52, सरकारी स्कूल के अपमान के लिए धारा 57।”

दरोगा ने ठहाका लगाया, “हा हा हा, 3-3 धारा इन तीनों के सिर पर, अब इनका क्या होगा कितने दिन, कितने दिन रहेंगे ये जेल में या फिर ताउम्र सड़ते ही रह जाएंगे जेल में।” वकालत सिंह ने गौर से इनके चेहरे को देखकर जानना चाहा कि इस धमकी का उन पर असर हुआ भी है या नही। पर राजेश के चेहरे पर डर की जगह आक्रोश था। पर सत्यार्थी ने कहा, “कुछ ले देकर यहीं पर मामला सलटा दीजिये, प्लीज।” वकालत सिंह थोड़ा आश्वस्त हुआ कि मछली जाल में फंसने के लिए तैयार है, हमदर्दी दिखाते हुए दरोगा सिंह से बोला, “विद्यार्थी लोग हैं जोश में कुछ बोल गए हैं कुछ ले देकर मामला रफा-दफा करो क्यों डालोगे इनको जेल में” दरोगा सिंह, “बोलो क्या दोगे, कितना दोगे, कानून और व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी हमारे ऊपर, दया कर के इस बार छोड़ देंगे पर अगली बार तुम जाओगे अंदर।” वकालत सिंह बोला, “तुम दोनों चेहरे से मासूम दिखते हो सो दया कर के कुछ ले दे कर मामला यहीं खत्म कर दे रहे हैं। 5 हजार रुपये निकालो।” पर राजेश का गुस्सा फूट पड़ा, “कानून व्यवस्था की इतनी ही फिक्र है तो उनको पकड़ कर जेल में डालो जो सरेआम कहते हैं भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह इंशाल्लाह।

उनको पकड़ो जो भारत माता का सरे आम अपमान करते हैं। उन्हें तो पकड़ नहीं सकते क्योंकि उनकी गर्दन काफी ऊँची है और तुम्हारे हाथ उतने ही छोटे हैं जितने कि तुम्हारा दिल, बस बित्ता भर का।” मंडल जी दरोगा को पहचानते थे और उसके रग रग से वाकिफ थे। मंडल जी को भी गुस्सा आया, “तुम्हें क्या कहूं, दरोगा सिंह या न्यौछावर सिंह, जब देखो शर्म हया बेचकर न्यौछावर मांगते रहते हो।” दरोगा सिंह ने नाटकीय अंदाज़ में गुस्से से चिल्लाते हुए कहा, “सरकारी अफसर का दिनदहाड़े अपमान, वकालत कौन सी धारा लगेगी, किया है इसने मेरा अपमान।” सत्यार्थी ने मुस्कुराते हुए कहा, “नौटंकी बाजी छोड़ो। हम यहां आए हैं शोध के लिए और आपकी सारी बातें मेरे मोबाइल में रिकॉर्ड है आपके अफसोस के लिए कहो तो सुनाऊँ।” दरोगा सिंह और वकालत सिंह दोनों एक साथ सकपकाए। सत्यार्थी ने मुस्कुरा कर कहा वकील साहब, “किसी को ब्लैकमेल करने के लिए कौन सी धारा लगती है, पुस्तक देख कर बताएंगे जरा, आप तो कानून साथ ही लिए घूमते हैं।” सत्यार्थी ने अपना मोबाइल रिकॉर्डिंग जैसे ही सुनाना शुरू किया वैसे ही दारोगा सिंह के चेहरे पर झेंप भरी खिसियानी मुस्कान आ गई और हंसते हुए कहा, “अरे हम तो ऐसे ही बात कर रहे थे। मंडल जी से दूर की रिश्तेदारी है तो रिश्तेदारी में मजाक कर रहे थे।” सत्यार्थी ने कहा, “जो मजाक पूरी हो गई हो तो आप तशरीफ ले जाइए। हम भी कोई सरकार की आलोचना नहीं कर रहे थे। हालात को कैसे और बेहतर बनाया जाए उस पर विचार कर रहे थे।

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डॉक्टर प्रभाकर भूषण मिश्रा

जन्म स्थान : जमालपुर (मुंगेर), बिहार, शिक्षा: एमबीबीएस, एमडी (मेडिसिन) रुचियां: पेंटिंग एवं लेखन
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