सपने जमीन पर

मिड डे मील

 

पिछले अंक में आपने पढ़ा साधारण किसान से सफल नेता बने मंडल जी से पत्रकार के आगे अपने अतीत के पन्नों को पलटना शुरू करते हैं। गरीबी के कारणों पर शोध के लिए आए हुए विद्यार्थियों को आज की सरकारी व्यवस्था से रूबरू कराने के लिए उन्हें लेकर स्कूल चल पड़ते हैं अब आगे।

      मिड डे मील

गांव की कच्ची सड़क समाप्त हो रही थी। मेन रोड आने से पहले ही एक प्राइवेट स्कूल रास्ते में दिख गया। प्राइवेट स्कूल में खासी तादाद में बच्चे लोग मौजूद थे। ज्यादातर ड्रेस में थे। कुछ बच्चों के तो ड्रेस अच्छे से धुले हुए और इस्त्री किये हुए थे। एक कोचिंग सेंटर भी दिखा। अब मेन रोड शुरू हो चुका था। आगे चलने पर आदर्श माध्यमिक विद्यालय का बोर्ड, ग्राम भैना का बोर्ड दिखा। स्कूल के अंदर विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा नहीं थी। इधर मंडल जी अपनी बात भी सुनाए जा रहे, ”इसी स्कूल से हम भी पास किये। फिर शहर जाकर ग्रेजुएशन किया। उस वक्त इस स्कूल की क्या रौनक थी! प्रिंसिपल साहब यदि बरामदे पर निकल जाए तो परिंदा तक चहचहाना छोड़ देते थे। लड़के अपने अपने क्लासों में अपनी जगह जाकर बैठ जाते थे। कोई खाँसने की भी हिम्मत नहीं कर सकता था। और मजाल कि कभी उन्हें छड़ी चलानी पड़ी हो। एक नजर घूरना ही काफी होता था। उसी में सब सीधे हो जाते थे। अनुशासन के पक्के, फिजिक्स के बहुत बड़े विद्वान तो थे ही पर सबसे बड़ी बात यह थी कि वे अपने विद्यार्थियों की महत्वाकांक्षा को आकाश की ऊंचाई देना जानते थे। मेरे बैच से एक आई ए एस ऑफिसर हुआ, 5 डॉक्टर हुए और भी कई बिद्यार्थी अच्छे अच्छे बड़े पदों पर पहुंचे। और एक थे ट्रिपल एस सर, दरअसल उनका नाम था शिव शंकर सिन्हा पर हमलोग उन्हें इसी नाम से याद रखे हुए हैं। मैथ तो वे ऐसा पढ़ाते थे जैसे कि मैथ न हो बल्कि कोई शतरंज का गेम हो। और अब देख लीजिए क्या हो गया इस स्कूल का हाल!” राजेश मंडल जी के चेहरे पर दुख और अफ़सोस के भाव को साफ-साफ पढ़ पा रहा था। मंडल जी जारी थे, ”स्कूल बिल्डिंग का वह पश्चिम का हिस्सा देखिये। उस हिस्से में कोई क्लास नहीं होता। पढ़ाते पढ़ाते कब सर पर छत गिर जाए कोई नहीं जानता। 16 शिक्षकों की नियुक्ति हुई है पर 12 का सेटिंग गेटिंग है जो महीने में कभी कभार दर्शन देते, बस वही शिक्षक रोज आते हैं जिनकी कहीं भी कोई पहुँच नहीं है। एक ही शिक्षक कई अलग अलग विषयों को पढ़ा रहा है। ”स्कूल के प्रांगण में एक अकल्पनीय दृश्य दिखा। एक टेबल पर कई बोरियाँ तह करके रखी हुईं थीं और बोरियों की भीड़ के ऊपर से मुश्किल से एक बच्चे का सिर दिख रहा था। टेबल पर एक गत्ते का कार्ड लटक रहा था जिस पर काली स्याही से लिखा था, ”खाली बोरी का सरकारी दर ₹10 प्रति पीस”। अबतक सब लोग प्रिंसिपल साहब के कमरे तक पहुंच चुके थे। बाहर नेम प्लेट लगा था, ”महावीर प्रसाद, प्रिंसिपल, आदर्श विद्यालय, ग्राम भैना”। बाहर चपरासी की कुर्सी तो रखी हुई थी पर चपरासी नजर नहीं आया अतः दरवाजे पर हल्की सी दस्तक देकर मंडल जी अंदर घुस गए और इशारे से विद्यार्थियों को भी अंदर बुला लिया। मंडल जी को देखते ही प्रिंसिपल साहब के चेहरे पर लंबी मुस्कान आ गई थी, ”आओ यार बहुत दिन बाद दर्शन दिए। ” मंडल जी भी कहाँ चूकने वाले थे, मुस्कुराते हुए बोले, ”पर महावीर यह दर्शन तुम्हें महंगा न पड़ जाय! देखो तुम्हारे लिए बाड़ी से तोड़कर सबसे खीच्चा वाला पतला लंबा सुंदर कद्दू लाए हैं।

कद्दू का खीर भाभी जी बनाएंगी तो मुझे भी खिलाना पड़ेगा। ”जबाब प्रिंसिपल साहब ने ठहाका लगाया। पर थोड़ी ही देर में चेहरे पर खीझ और परेशानी का भाव पसर गया। सामने बहुत सारे पेपर बिछे हुए थे। तीन चार बार घंटी बजाने पर चपरासी अंदर आया, ”कुछ चाय लेकर आओ” प्रिंसिपल साहब ने आर्डर किया। मंडल जी ने प्रिंसिपल साहब के चेहरे को पढ़ते हुए पूछा, ”क्या बात है महावीर? परेशान लग रहे हो। बी पी वगैरह ठीक तो है। प्रिंसिपल साहब के अंदर की कड़वाहट शब्दों में व्यक्त होने लगी, ”मत पूछ यार, साली जिंदगी नरक बन गई है। बाल संसद, मीना मंच, मिड डे मील, सुरक्षित शनिवार जैसे कई काम है और शिक्षक बस चार और एक मैं और रोज का रोज राजधानी में सब का रिपोर्ट भेजते रहो। ऊपर से कौन-कौन गांव के अंदर 18 से ज्यादा बरस का हो गया, कौन-कौन गांव छोड़कर बाहर चला गया, उसका भी हिसाब रखो ताकि मतदाताओं की सूची दुरुस्त रहे। ” मंडल जी ने माहौल को हल्का करने की कोशिश की, ”हाँ यार इस पर तो शोले फिल्म का वह डायलॉग याद आ जाता है। आधा बाएँ आधा दाएँ और बाकी सब मेरे पीछे। ” प्रिंसिपल साहब के चेहरे का तनाव थोड़ा कम हुआ। वह भी मजाक से बोले, ”सही पकड़े। ” मंडल जी अब बात के सिलसिले को मुद्दे तक लाने की कोशिश में बोले, ”और पढ़ाई लिखाई का क्या हाल है?” उनके चेहरे पर फिर से कड़वाहट आ गई, ”12 शिक्षक की पोस्टिंग है। चार ट्रांसफर करा कर चले गए, चार का भी आई पी कनेक्शन है सो बस कभी कभार दर्शन देते हैं और बच गए चार तो बस उसी से काम चलाना पड़ता है। पर यार एक बात समझ में आ गई है कि अधिकांश विद्यार्थी तो मिड डे मील और साइकिल पोशाक योजना का लाभ उठाने के लिए ही सरकारी विद्यालय आते हैं। इन्हें पढ़ाई से कोई सरोकार है नहीं। कई तो ऐसे हैं जिन्होंने सरकारी और प्राइवेट स्कूल दोनों जगह नाम लिखा रखी है। यहाँ से साइकिल पोशाक ले ली और पढ़ाई के लिए प्राइवेट स्कूल या कोचिंग सेंटर में भी नाम लिखा लिया। यहाँ तक है कि कुछ लोगों ने दो-दो सरकारी स्कूल में नाम लिखा रखी है और दोनों जगह से साइकिल पोशाक योजना का लाभ उठा रहे हैं। ” इसी बीच प्रिंसिपल साहब का मोबाइल फोन बजता है। मोबाइल में नंबर देखते ही चेहरे का भाव ही नहीं बदलता बल्कि प्रिंसिपल साहब स्वयं खड़े भी हो जाते हैं जैसे सामने कोई बड़ा पदाधिकारी आकर खड़ा हो गया हो। चेहरे पर तनाव साफ साफ लक्षित हो रहा था, ”प्रणाम डीपीओ साहब …………..सर, सर प्रपत्र क की राशि मैंने खुद भरी है और आदेश के मुताबिक सेवा भी कर दी थी …………अच्छा सर भरसक कोशिश करेंगे, कमी को पूरा करने की………. सॉरी सर “कोशिस” शब्द का इस्तेमाल आगे से नहीं करेंगे। बस भिजवा देंगे जैसा भी आपने आदेश दिया है। ” फोन कट चुका था। प्रिंसिपल साहब वापस कुर्सी पर बैठे, बोतल से पानी गिलास में डाला और एक सांस में निगल गए। मंडल जी ने सहानुभूति पूर्वक पूछा, ”क्या हुआ बड़े परेशान लग रहे हो।

” प्रिंसिपल साहब, ”अरे यह मिड डे मील भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा अड्डा बन गया है। ये उतना माँग रहे हैं जितना कि हमें बचता भी नहीं। तंग आ चुके हैं यार। मैं तो कहता हूं मिड डे मील का झमेला ही समाप्त करो इसकी जिम्मेदारी आउटसोर्सिंग को दो, हमें बस शिक्षक बने रहने। ” इसी बीच बगैर इजाजत के बगैर नॉक किये दरवाजा खुलता है। जींस और टीशर्ट पहने, पान चबाता हुआ एक बत्तमीज सा दिखने वाला शख्स अंदर घुसता है और पूरे अधिकार के साथ एक कुर्सी खींचकर बैठ गया। पान का बीड़ा उसके दाएं गाल में अभी भी विराजमान था। थूक निगलते हुए निहायत ही बदतमीज अंदाज में बोला, ”क्या मास्टर साहब, हम को पहचाने कि नहीं? हम हैं “प्रभात संवाद” के संवाददाता रवि यादव। अच्छे से पहचान लीजिए क्योंकि अब तो आपके यहाँ आना जाना लगा रहेगा। और यह क्या अंधेर मचा रखे हैं। बच्चा सब से बोरी बिक़वाते हैं। पूरा वीडियो बना लिए हैं। जो वायरल कर दिया ना तो चली जाएगी नौकरी।” प्रिंसिपल साहब बचाव में बोले, ”ऐसा है कि मिड डे मील का जो अनाज आता है उसकी प्रति बोरी पर सरकार को ₹10 देने होते हैं। अब क्या करें मजबूरी है। बच्चा सब को बारी-बारी से बोरी बेचने की ड्यूटी लगा दिए हैं, पर एक बच्चा महीने में बस एक बार वह भी मात्र 2 घंटे के लिए बोरियाँ बेचता है।” पत्रकार, ”जब नौकरी छीन जाएगी ना तब सफाई देते रहिएगा। जरा बाहर आइए। हमको और भी कई काम है।” थोड़ी देर में प्रिंसिपल साहब वापस आते हैं। चेहरे पर परेशानी का भाव और भी सघन हो चुका है। मंडल जी जल्दी से एक गिलास पानी बनाकर सामने रख देते हैं, ”गला तर करो यार। कितने में फाइनल हुआ?” प्रिंसिपल साहब फट पड़े, ”इ साले ब्लैकमेलर सब को कौन बेहूदा पत्रकार बना देता है! बताइए ₹10 बोरी क्या हम जाएंगे मार्केट में बेचने के लिए। पर साले सब को तो बस ब्लैकमेल करने का बहाना चाहिए। ₹500 हर महीने का डिमांड है, ₹500 लेकर गया है। प्रिंसिपल साहब की मित्र के सामने अच्छी खासी फजीहत हो चुकी थी। गनीमत था इसी बीच चाय आ गई। चाय की चुस्की लेते हुए प्रिंसिपल साहब ने पूछा, ”यह 2 विद्यार्थी तो बाहर के लगते हैं। इनको लेकर कहाँ घूम रहे हो।” मंडल जी, ”अरे, यह दोनों। ये लोग अपने गांव शोध करने आए हैं कि गांव की गरीबी का क्या कारण है? इसे कैसे दूर किया जा सकता है?” इस पर प्रिंसिपल साहब ने संभलते हुए, उपदेश देने वाले अंदाज में कहा, ”देखिए जनाब, पहले तो बच्चों को सही शिक्षा देनी होगी।” फिर थोड़ी देर के लिए चुप हो गए। सोचने लगे, अब तक की सारी बातचीत इन्होंने सुन ही ली होगी तो सफाई देते हुए बोल पड़े, ”अब आप इस स्कूल की शिक्षा के बारे में सोच रहे होंगे तो ऐसा है जनाब, यह स्कूल शहर से दूर है। गांव में कोई शिक्षक रहना नहीं चाहता। और यहाँ बस उतने ही शिक्षक रह गए हैं जिनका कोई भी “भी आई पी” कनेक्शन नहीं है। फिर पढ़ाने के अलावा भी इतने सारे काम हैं, आपने तो सब सुन ही लिया है। ….. तो हाँ भाई यही हकीकत है। कम से कम इस सरकारी स्कूल की तो यही हकीकत है।” मंडल जी ने इस अप्रिय प्रसंग को विराम देते हुए मजाक किया, ”तो आज रात भाभी जी का मूड ठीक रहा और खीर बना देने की कृपा की तो मुझे फोन जरूर करना, अब चलता हूं।” महावीर जी दरवाजे तक छोड़ने के लिए आए। मंडल जी ने बाहर निकलकर चपरासी से पूछा, ”शर्मा जी मास्टर साहब कहीं दिख नहीं रहे?” शर्मा जी का नाम सुनते ही चपरासी पूरी बत्तीसी दिखा कर हंस पड़ा, ”नहीं आज तो शर्मा जी नहीं आए हैं, कुछ काम था क्या?” राजेश ने मुस्कुराते हुए मंडल जी से पूछा, ”क्या बात है, शर्मा जी लाफिंग स्टॉक हैँ क्या? नाम सुनते ही लोगों किबत्तीसियां खिल जाती हैं।” मंडल जी मुस्कुराते हुए, ”कल शर्मा जी से मिलवाते हैं आप लोगों को। मजाकिया स्वभाव है तो सब उनसे मजाक कर लेते।” चपरासी की बत्तीसी पूर्ववत खिली हुई थी, ”हाँ साहब बड़ा अच्छा स्वभाव है। हम लोग के साथ बैठकर खैनी भी खा लेते हैं।” चपरासी से दूर होते ही मंडल जी ने बताया, ”पैरवी से पंचायत शिक्षामित्र के पद पर बहाली हुए पर अब वे नियमित शिक्षक बन चुके हैं। उनसे मिलकर सरकारी स्कूल की शिक्षा की गुणवत्ता का पता लगा सकते हैं। रामू को भी साथ ले लेंगे। आज के लिए विदा चाहूंगा। कल फिर मिलते हैं। 

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डॉक्टर प्रभाकर भूषण मिश्रा

जन्म स्थान : जमालपुर (मुंगेर), बिहार, शिक्षा: एमबीबीएस, एमडी (मेडिसिन) रुचियां: पेंटिंग एवं लेखन
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