Sunday, September 8 2024
हर बशर को लाज़िम है सब्र करना चाहिए
‘पर्यावरण : संकट के बावजूद’ पर ‘बतरस’ में सार्थक चर्चा
अभिव्यक्ति के रंग
‘प्रवीण नाट्योत्सव’: खाँटी व विविधरंगी रंगकर्म की मिसाल
स्मृतियों का घर बुनता एक कवि
प्रतिरोध की भूमिका में खड़ा नाटक
बैल की आंख
उम्मीदों के आतिशदाने
कला-संस्कृति की बहुरंगी छटाएँ बिखेरता त्रिदिवसीय आयोजन
समलैंगिक विमर्श का ‘चोर दरवाज़ा’
मधुपर्व पर प्रेम-रस में भींगी ‘बतरस’
आदि-अंत से अनंत… होते गुरु – टी.एन.राय
अलविदा इमरोज दरवेश
गोस्वामी तुलसीदास: इन्द्रियविजय या आत्मसंघर्ष?
हिंदी आलोचना की आलोचना
योगिता यादव की कहानी ‘गंध’
अनुत्तरित संताप के अभिज्ञान का उपन्यास : चन्ना तुम उगिहो
बुद्ध की खोज
सेठ का बेटा
हमारे ‘श्रीधर भइया’ उर्फ़ सबके ‘बच्चा’
खानदान भर के चाचा : प्रभाकर त्रिपाठी
आतंकी हिंसा की खोल में ‘चुप’ के राज़ और भी हैं…!
रघुबर पहँ जाब…अब ना अवध में रहबै…
शैलेन्द्र के गीतों में मानवीय संवेदना
निकम्मों के कोरस का स्वर
Menu
Search for
संवेद
संवेद पत्रिका
सबलोग
कविता
कहानी
लेख
आत्मकथ्य
रचना प्रक्रिया
रिपोर्ताज
संस्मरण
पुस्तक समीक्षा
शताब्दी स्मरण
फणीश्वर नाथ रेणु
मुकुटधर पाण्डेय
प्रेमचन्द
नाटक
रंगमंच
साक्षात्कार
उपन्यास
सपने जमीन पर
Search for
Home
/
नयी नयी-सी है पर तेरी रहगुज़र फिर भी…
नयी नयी-सी है पर तेरी रहगुज़र फिर भी…
रंगमंच
सत्यदेव त्रिपाठी
July 21, 2022
0
नयी नयी-सी है पर तेरी रहगुज़र फिर भी…
फ़िराक़ साहब ने चाहे जिस भाव व कला के लिए कहा हो – ‘हज़ार बार जमाना इधर से गुजरा…
Read More »
Back to top button
Close
Search for