Sunday, December 10 2023
अनुत्तरित संताप के अभिज्ञान का उपन्यास : चन्ना तुम उगिहो
बुद्ध की खोज
सेठ का बेटा
हमारे ‘श्रीधर भइया’ उर्फ़ सबके ‘बच्चा’
खान्दान भर के चाचा : प्रभाकर त्रिपाठी
आतंकी हिंसा की खोल में ‘चुप’ के राज़ और भी हैं…!
रघुबर पहँ जाब…अब ना अवध में रहबै…
शैलेन्द्र के गीतों में मानवीय संवेदना
निकम्मों के कोरस का स्वर
कथा संवेद – 22
परती परिकथा : पात्रों की बहुलता के बीच” एक जैविक आंचलिक उपन्यास”
ग्रामीण राजनीतिक विसंगतियाँ और चाक
स्त्री जीवन का दस्तावेज़-बेहटा कलाँ
‘क़ौल-ए-फ़ैसल’ : मौलाना आजाद की शानदार विरासत और हमारा वर्तमान
रुई लपेटी आग : लोक धारणा से इतर कथा धारणा
मजलूमों का मसीहा और बुद्धिजीवियों का नायक
जनसंवाद भाग 3 (शेष अंश)
जनसंवाद : भाग 3
‘समंदर का राजा’ बनाम ‘वह बूढ़ा और सागर’
‘नेहरू नाट्योत्सव : परम्परा एवं 2022 के नाटक’
जन संवाद: द्वितीय भाग
भविष्यत् में हिन्दी का रूप क्या हो?
मुकुटधर पाण्डेय के काव्य की पृष्ठभूमि
जन संवाद: प्रथम भाग
दीप यज्ञ बनाम मास कम्युनिकेशन
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प्रेम का शाश्वत मर्म
प्रेम का शाश्वत मर्म
फणीश्वर नाथ रेणु
samved
October 19, 2020
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प्रेम का शाश्वत मर्म
(एक श्रावणी दोपहरी की धूप) फणीश्वरनाथ रेणु कहानी रचते नहीं, कहते हैं और लोक की कहन–परम्परा को नये…
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