मजलूमों का मसीहा और बुद्धिजीवियों का नायक
‘कौन तार से बीनी चदरिया’ गाथा है मध्य बिहार पहुंचे एक आगंतुक डॉ. अमिय की जो वहीं का होकर रह जाता है। अगले तीसेक वर्षों तक वह लगातार संघर्ष करता है, स्थानीय युवाओं के साथ, वहाँ की सदियों पुरानी सामाजिक कुरीतियों, विसंगतियों और शोषण के खिलाफ़। चार सौ से ज्यादा पन्नों में फैला यह विस्तृत उपन्यास कथा है एक व्यक्ति के अदम्य साहस, सूझ बूझ, एवम नेतृत्व क्षमता की जो दबे, कुचले, लोगों के अधिकारों एवम उनके मानवीय गरिमा के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति देता है।
यह पुस्तक सिर्फ उपन्यास नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है। डॉ. अमिय जो इस उपन्यास के केन्द्र में है, कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। अंग्रेजी साहित्य में ऐसे कथानकों की एक अलग श्रेणी है, नॉन फिक्शन की, जिसमें मुख्य पात्रों, घटना स्थलों के नाम बदले हुए होते हैं। पात्रों एवम विशेष घटनाओं के चित्रण को दमदार बनाने में लेखक अपनी कल्पना शक्ति का जरूर इस्तेमाल करता है।
आगंतुक डॉ अमिय न तो पूरा डॉक्टर है न ही पूरा संन्यासी। ऐसे ही इंसान थे डॉ विनयन। वास्तव में यह कहानी डॉ विनयन की ही है। बिहार के बहुत से लोगों ने डॉ. विनयन का सिर्फ नाम भर सुना होगा। कुछ ऐसे भी हैं जिनसे उनकी औपचारिक में मुलाकात होती थी। एक और समूह के लोग हैं जिनके साथ कई अलग- अलग मोर्चे पर उन्होंने मध्य बिहार के जहानाबाद जिले के कई गाँवों में संघर्ष किया और वे वर्षों शोषण, असमानता, वाजिब दैनिक मजदूरी के हक के लिए जन आन्दोलन को संगठित एवं संचालित करते हुए सक्रिय रहे। सैकड़ों परिवार ऐसे भी हैं जो उन्हें देव-तुल्य, असाधारण मानव समझते रहे।
इन सबसे परे, बड़े शहरों, खासकर पटना, दिल्ली स्थित शीर्षस्थ प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों, यूनिवर्सिटी एवं शोध संस्थानों में कार्यरत प्रोफसरों के बीच एक परिचित चेहरा था डॉ. विनयन का, जो अचानक अवतरित होता था दो-तीन दिनों के साथ के लिए, फिर महीनों लापता।
डॉक्टर अमिय या विनयन का सरोकार सबसे था। निजी परिवार जैसा कुछ था नहीं लेकिन उनका संसार बहुत ही विस्तृत था। एक तरफ अहिंसक, गाँधीवादी तौर तरीकों से आन्दोलन करने, लम्बी पद यात्राओं पर निकलने, लम्बा उपवास करने वाले से लेकर नक्सलाईट, भूमिगत पार्टी यूनिटी के जमीनी कार्यकर्ता के अलग- अलग रूपों में वे ख्यात थे तो दूसरी ओर एक गम्भीर बुद्धिजीवी जो आसानी से वेद एवं गीता से लेकर मार्क्स, माओ एवं चे ग्वेवारा तक को उद्धृत करता था। कई भाषाओं के जानकार विनयन जब मधुर मुस्कान के साथ अपने अर्जित अध्ययन, मनन एवं जमीनी अनुभवों को साझा करते थे तो परिचर्चा में शामिल लोगों को वैचारिक अनुभूति का अद्भुत आनन्द मिलता था।
ऐसे लोग बहुत कम हैं जो डॉक्टर विनयन को मुकम्मल जानते हों। इस लिहाज से ‘कौन तार से बीनी चदरिया’ के जरिये व्यास मिश्र ने डा. अमिय यानी डॉ. विनयन के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं उनके विस्तृत कार्यक्षेत्र को सामने लाकर बहुत ही सराहनीय काम किया है। क्योंकि इसी बहाने व्यास जी मध्य बिहार के समकालीन इतिहास जो हिंसा प्रतिहिंसा की घटनाओं से भरा पड़ा है, से हमें रूबरू कराते हैं।
आगरा में जन्मे, इलाहाबाद मेडिकल कालेज में आधी अधूरी मेडिकल शिक्षा से लेकर हिमालय की दुर्गम घाटियों एवं कंदराओ में जीवन के अर्थ को खोजने-समझने की कोशिश के बाद वैराग से उनका मोह भंग होता है। और अन्ततः राहुल सांकृतायन के दर्शन ‘भागो नहीं,दुनिया को बदलो’ को उन्होंने अपना जीवन-दर्शन बना लिया। उनका मानना है कि जीवन का प्रयोजन सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि ‘सर्वजन हिताय’ के लिए होना चाहिए और सदियों से पीड़ित, दबे कुचले लोगों को जगाना, उन्हें मानवीय गरिमा से भरे जीवन उत्थान के लिए प्रेरित एवं संघर्ष करने के लिए प्रेरित करना ही जीवन का ध्येय होना चाहिए।
इसलिए अकारण नहीं कि स्वामी अग्निवेश से जुड़कर हरियाणा में बंधुआ मजदूरों की मुक्ति आन्दोलन में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 के बिहार आन्दोलन में वे सक्रिय हुए। फिर जेपी के परामर्श से ही वे जहानाबाद पहुँचे।
डॉ. विनयन का एक तरह से भटकाव खत्म हुआ जो होना ही था। जहानाबाद आखिरकार फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है पूरा संसार जहाँ बसा हो, तो उसके आगे कुछ रहा ही नहीं। फिर वहीं के गाँवों में अगले तीन दशकों तक वे सक्रिय रहे। पालकी प्रथा, बेगारी, दलित, मुसहर औरतों के शारीरिक शोषण, मनमाना दैनिक मजदूरी देने इत्यादि के खिलाफ संघर्षरत रहे। उसके अलावा डेहरी सिचाई कामगार यूनियन, आदिवासी तेंदूपत्ता संकलन को लेकर वन विभाग एवम ठेकेदारों द्वारा जारी शोषण के विरोध में लगे हुए डॉ. विनयन का कैमूर, रोहतास, पलामू, गढ़वा आना जाना लगा रहा। जेल भी गए।
डॉ. अमिय का सामना एक तरफ उन कतिथ जेपी समर्थकों से हुआ जो जन आन्दोलन में भूमि सुधार या दैनिक मजदूरी कानून लागू करने की बात से ही भड़क उठते थे तो दूसरी तरफ भूमिगत पार्टी के नेताओं से भी जो इन आन्दोलनकारियों को महंत के लठैतों एवम भाड़े के गुंडों से बचाते थे लेकिन उनकी हिंसक कार्रवाई का अंजाम इन्हें भुगतना पड़ता।
पूरा उपन्यास घटनाओं से भरा पड़ा है- चाहे जिला अधिकारियों की मीटिंग हो या सचिवालय में मुख्य सचिव स्तर की प्रशासकीय करवाई या फिर सैकड़ों एकड़ वाले मठों के महंत, बड़े एवम मझोलें किसानों के आन्दोलन पर आमादा खेतिहर मजदूरों से निपटना हो। लेखक ने अपने सूक्ष्म अवलोकन का भरपूर उपयोग किया है। पुस्तक में एक चौंकाने वाली घटना का भी जिक्र है। जैसा कि सभी जानते हैं रणवीर सेना का गठन ही हुआ था दलित, मुसहर खेतिहर मजदूरों को आतंकित करने तथा उनके पक्षधर कतिथ नक्सली नेताओं एवम कैडरों के सफाया के लिए। लेकिन इस सेना के लंपट, दुष्चरित्र बाहुबलियों के शिकार उनकी ही जाति की बहु बेटियां भी हुईं। इस कुत्सित सत्य को भी लेखक ने उजागर किया है।
इस बृहत नन-फिक्शन को गढ़ते हुऐ, डॉ. विनयन की गाथा सुनाते हुए ब्यास जी एक रचनाकार से बढ़कर महाभारत के संजय की तरह लगते हैं जो सब कुछ आँखों देखी सुना रहे हों। अंधे धृत्रराष्ट्र को नहीं बल्कि उन सभी सजग पाठकों को जो इस साहित्यिक कृति को पढ़ेंगे।
भाषा, शैली, प्रवाह, शब्दों के सटीक चयन के लिहाज से भी व्यास जी बधाई के पात्र हैं। थोड़ा अतिरेक जरूर है, वह है लेखक की भाव-विहवलता। डॉ. विजयन निश्चय ही असाधारण थे। लेकिन उनकी कमजोरियाँ भी रही होंगी। गलतियां भी हुई होंगी, गलत निर्णय लिये होंगे। इन मुद्दों पर व्यास जी ने बचने की कोशिश की है।
पुस्तक के केन्द्र में है मध्य बिहार, वहाँ के गाँवों के लोगों की कौन कहे, शहरी भी मध्य युगीन मानसिकता वाले लगते हैं। अविभाजित बिहार के दो अन्य भौगोलिक क्षेत्रों-उत्तर एवं दक्षिण बिहार-से मध्य बिहार भिन्न क्यों है? इस पर भी लेखक ने थोड़ा प्रकाश डाला होता तो इस अँधेरे में डूबे क्षेत्र की गम्भीर समझ बढ़ती।
डॉ. विनयन तीन दशकों तक वहाँ सक्रिय रहे। इनसे दशकों पूर्व स्वामी सहजानंद ने अलख जगाया। नक्सल आन्दोलन भी बिहार में वहीं से शुरू हुआ। इन सब की विरासत क्या है? इसका जिक्र इस किताब में नहीं है। होना भी नहीं था। कयोंकि यह डाक्टर विनयन की गाथा है जो उनके अवसान के साथ समाप्त हो जाता है। इसके आगे की कहानी कोई और सुनाएगा। शायद इसी से प्रेरित होकर। यों भी अपने यहाँ जन आन्दोलनों का इतिहास लेखन लगभग नहीं के बराबर है। प्रस्तुत पुस्तक का स्वागत इसलिए भी होना चाहिए।
कौन तार से बीनी चदरिया
लेखक- व्यास मिश्र
राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली, 2022
मूल्य-रु. 399