दीप यज्ञ बनाम मास कम्युनिकेशन
अब तक आपने पढ़ा: मंडल जी दोनों विद्यार्थियों के साथ साथ भागलपुर विश्वविद्यालय आकर समाजशास्त्री भारती जी एवं अर्थशास्त्री मजूमदार जी से मिले और शोध पत्र के ऊपर विमर्श के बाद बड़े उत्साह से उन्होंने अपने जीवन की भावी योजना बनाई। अब उसके बाद
दीप यज्ञ बनाम मास कम्युनिकेशन
उत्साह और खुशी जब साथ हो तो दिमाग की गति भी तेज हो जाती है। ट्रेन के अंदर बैठे बैठे कई चीजें मंडल जी ने प्लान कर ली थी, “अब सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से करना होगा। बीएपीएल पार्टी का गठन, इसके लिए मास कम्युनिकेशन की आवश्यकता थी, तो क्या हो इसका तरीका? “दीप यज्ञ” यही बात मस्तिष्क में बार बार आ रही थी।” दीप यज्ञ में वे शरीक जरूर हुए थे पर इसे कभी आयोजित नहीं किया किया था। स्टेशन से उतरते ही गायत्री मंदिर पहुंचे। परिव्राजक रोशन जी बचपन के सखा भी थे धार्मिक रुझान की वजह से हरिद्वार “शांति कुंज” गये। युग शिल्पी सत्र में प्रशिक्षण लिया और अब मंदिर से जुड़े हर कार्यक्रम को वे इतने खूबसूरती से अंजाम देते थे की जनता मोहित हो जाती थी। बहुत दिनों बाद वे मंदिर आए थे। फरवरी का महीना था। फूलों का बहार हर किसी को मोहित कर सकता था। रोशन अभी भी बागवानी में लगे हुए थे। मंडल जी को देखते हुए देखते ही हाथ धोकर उन्हें अंदर ले गये, पानी पिलाई, प्रसाद खिलाया। मंडल जी ने बीती सारी बातें बताई। रोशन ने उसे कहा, “स्कूल के प्रांगण में रविवार की शाम दीप यज्ञ आयोजित की जाए। दिन में हर घर में पीला अक्षत को दीप यज्ञ के निमंत्रण के तौर पर दे देना है। अक्षत को स्वीकार कर नहीं आने का अर्थ है, यज्ञ देवता का अपमान। तो जो भी स्वीकार करेंगे वैदिक यज्ञ में जरूर सम्मलित होंगे। फिर दीप यज्ञ के बाद धार्मिक प्रवचन और तत्पश्चात आप का संबोधन होगा। ” योजना के तहत रविवार को जब दीप यज्ञ शुरू हुआ तो काफी खूबसूरत समा बंधा हुआ था। 100 दियों की आरती के साथ गायत्री मंत्रों का उच्चारण, धूप और अगरबत्ती की खुशबू पूरे माहौल को श्रद्धामय बना रही थी। धार्मिक प्रवचन के बाद मंडल जी ने माइक थामी, “भाइयों और बहनों। दीप यज्ञ का अर्थ है “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात हे ईश्वर हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ ले चलें, “असतो मा सद्गमय” अर्थात असत्य से सत्य की तरफ ले चलें। हमारी जिंदगी के विकास का भी यही मूल मंत्र है कि हम गरीबी के अंधकार से निकलकर खुशहाल जिंदगी की रोशनी की तरफ बढ़े। असत्य को पहचाने फिर इसे छोड़ सत्य को की तरफ बढ़े। तो भैया हम बात कर रहे हैं एक बहुत बड़े असत्य की जिसने हमारी जिंदगी को गरीबी और बेचारगी के अंधेरे में जकड़ कर रखा है।
हमारे गांव में ज्यादातर लोगों के बच्चे चाहे वे जिस भी जाति के हो इसी गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं जिसके प्रिंसिपल तक को अंग्रेजी नहीं आती या फिर भी वे छोटे-मोटे कोचिंग सेंटर में पढ़ते हैं जिसका प्रोपराइटर बस पैसा बनाना चाहता है। दूसरी तरफ शहर के बच्चे हैं जो बड़े-बड़े स्कूल और प्रतिष्ठित कोचिंग सेंटर में पढ़ते हैं। घर में अलग से उनको ट्यूशन पढ़ाने के लिए शिक्षक आता है। इन दोनों के बीच प्रतियोगिता कराना वैसा ही है जैसे की साइकिल सवार की प्रतियोगिता मोटरसाइकिल सवार से कराई जाए। फिर भी यदि हम इसे सामाजिक न्याय कहें तो यह सरासर नाइंसाफी है। पर भैया इस नाइंसाफी को सामाजिक न्याय का नाम दिया जा रहा है। जातिगत आरक्षण के नाम पर यही तो हो रहा है। आज मेरे चाचा का लड़का डीपीएस स्कूल से पढ़ाई किया। 2 -2 ट्यूशन भी अलग से पढ़ा। जो उसे पढ़ाई की इतनी सारी सुविधा मिली तो भैया मैरिट से कम्पीट करके दिखाओ ना। पर नहीं आरक्षण लेकर कम्पीट किया ,अब कुछ दिन में बन जाएंगे डॉक्टर और जानते हैं चाचा से मदद मांगने गए तो क्या बोले, “सब कुत्ता काशीए चला जाएगा तो गली का पत्तर कौन चाटेगा। ”मतलब उसका भतीजा गली का कुत्ता हो गया और उ लोग हो गए बड़का आदमी। भैया पैसा मिलते ही आदमी का जात अलग हो जाता है। सच पूछो तो समाज में दुइये ठो जाति है, अमीर और गरीब। बाकी सब छलावा है। गरीब ब्राह्मण भी ज्यादा दक्षिणा मांगने लगता है उसको धकिया कर भगा दिया जाता है पर मजाल है कि कोई पैसा वाले का बेइज्जती कर कर दे, भले ही उ दलित ही क्यों न हो।
तो भैया काम की बात करें। अमीर बाप के बेटा बेटी सब का आरक्षण बंद हो तब तो कहीं जाकर हमारे बिटवा को, आप के बेटवा को, हम सब गांव वालन के बच्चे को आरक्षण का फायदा मिल सकेगा। भाई संविधान में आरक्षण का प्रावधान है तो आरक्षण मिले हमारे बच्चे को जो स्कूल में पढ़ने के अलावा भी ट्यूशन पढ़ाने को, खेत में काम करने को, रोजी रोटी के लिए घर के बाहर मेहनत करने को बाध्य हैं। तब तो मिटेगी हमारी गरीबी। मुफ्त का सरकारी अनाज खाकर हम जिंदा रह सकते हैं पर ऊंचा नहीं उठ सकते। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, दरोगा नहीं बन सकते।
एक आदमी,“सही बात बोले भाई। खाली गरीबी के आधार पर आरक्षण मिले तो कोई ना कोई गरीब बच्चा को ही आरक्षण का लाभ मिलेगा और फिर वो डॉक्टर इंजीनियर बन सकेगा और धीरे-धीरे बारी बारी से सबके घर में कोई न कोई डॉक्टर इंजीनियर बन सकेगा। ”मंडल जी,“यही नहीं, डॉक्टर बनके वह हम लोग के बीच रह भी सकेगा और हमर सेवा भी कर सकेगा। कोई शहरी डॉक्टर यहां के पीएचसी में आज तक टिका है, पर हमारे घर का बच्चा तो खुशी-खुशी इस गाँव में रह लेगा। ”दूसरा आदमी,“बात तो भैया सही कह रहे हो। पैसे की धाक जात से ऊंची होती है। मेहतर भी जब करोड़पति बन जाय तो पंडित भी उसके द्वार पर जाने में अपना सम्मान समझेगा। एक बार पैसा वाला बन जाने के बाद कोई नहीं पूछता कि कौन जात हो? जब तक पैसे से पिछड़ा है तभी तक सब जात पूछता है।” एक और आदमी, “भैया बात तो सब सही कह रहे हो। हम तो कम कीमत में अनाज मिल जाने से ही खुश हो जाते हैं। मिड डे मील और मुफ़्त की साइकिल से खुश हो जाते हैं।
ऊंचा बात तो हम सोच ही नहीं पाते।” मंडल जी ने समझाया, “परावलम्बी हो जाने के बाद आदमी की महत्वाकांक्षा मर जाती है। बस किसी भी तरह से जिये जाने को ही वह अपनी जिंदगी का उद्देश्य समझ लेता है। इसीलिए भैया हम कहते हैं परावलम्बन छोड़ो, स्वावलंबी बनो। तभी ऊंचा सोच सकोगे और ऊंचे सपने देख सकोगे।” एक आदमी, “भैया पर यह सब होगा कैसे?” मंडल जी, “यह सब होगा हम गरीब लोगों की एकता से। जब हर जात के गरीब में एकता होगा तो इतना बड़ा मजबूत वोट बैंक बन जाएगा कि दूसरे पार्टी का कोई भी जातिगत समीकरण से कहीं ज्यादा हमरा पलड़ा भारी होगा।” एक आदमी, “बुझ गये हम। हम लोगों को सब गरीब भाई बहन को इतने अच्छे ढंग से समझाना बुझाना है कि जातीय खत्म हो जाए। बस दुइ जाति रह जाए, अमीर और गरीब। और गरीब की संख्या तो लाजमी तौर पर अमीर से हमेशा ज्यादा रहेगी।” रोशन जी, “मंडल जी, अमीर और गरीब सापेक्ष शब्द है। किसको मानिएगा अमीर और किसको मानिएगा गरीब?” मंडल जी, “ठेला वाला, ड्राइवर, चपरासी, सफाई कर्मचारी, अनुबंध शिक्षक, आशा कार्यकर्ता,जीविका बहन आदि। इनका मासिक वेतन या कमाई ज्यादा से ज्यादा 20000 महीना तक होता है यानी सालाना आय हुआ ढाई लाख तो भाई तीन लाख तक का सालाना आय को कटऑफ मान लेते हैं। तो हमारी नीति में क्रीमी लेयर का यही कटऑफ होगा और जातिगत आरक्षण बंद कर दिया जाएगा। यह तो हमारे गरीबी मिटाने के फार्मूला का पहला शब्द “आ” है “आ” मतलब आर्थिक आरक्षण। अभी तीन शब्द और तीन फार्मूला और बचा है।” लोगों के बीच कुतूहल बस खुशुर फुसुर और बातचीत शुरू हो गई। रोशन जी ने सबको समझाया,“शांत हो जाइए, शांत हो जाइए। मंडल जी ने गरीबी मिटाने का क्या फार्मूला बनाया है इसे ध्यान से सुनिए। यह कोई मामूली फार्मूला नहीं है। शहर के मशहूर अर्थशास्त्री मजूमदार और समाजशास्त्री भारती जी के साथ विचार मंथन के पश्चात इस फार्मूला को बनाया गया है। इसे ध्यान से सुना जाए और समझा जाए।” सारे लोग एकदम शांत हो जाते हैं। मंडल जी, “मेरा आवाहन है कि हम लोगों को परावलंबी, चोर और चापलूस बनाने वाली वर्तमान संस्कृति से लड़ना होगा। संगठन बनाना होगा। और आवाहन मंत्र है आ लड़ो भी। “आ” का अर्थ है आर्थिक आरक्षण।
“ल” का अर्थ है लघु उद्योग। जो जन कल्याणकारी योजना के नाम पर ₹100 केंद्र से चलती है तो जनता तक ₹5 पहुंच पाती है और ₹95 बीच का दलाल खा जाता है। उस व्यवस्था को हम नकार देंगे। यह कुछ नहीं छलावा है। जनकल्याण के नाम पर नेताओं, अफसरों और जनप्रतिनिधियों के माध्यम से होने वाला अरबों रुपए का लूट खसोट बंद हो, और उन पैसों से लघु उद्योग, गृह उद्योग बने। इसे सफल कंपनियां चलाएं सरकार नहीं अर्थात आर्थिक विकेंद्रीकरण की शुरुआत हो जैसा कि जापान और चीन में हो रहा है।
“रो” अर्थात रोजगार परक शिक्षा का प्रारंभ हो। आज के जमाने में जब 90% नंबर पाकर भी नौकरी की कोई गारंटी नहीं तो 60% लाने वाले को आठवीं क्लास के बाद से ही रोजगार परक शिक्षा से क्यों न जोड़ें! आठवीं से 12वीं तक का 4 साल बर्बाद कर शिक्षित बेरोजगार की भीड़ हम क्यों खड़ी करें।
“भी” मतलब भ्रष्टाचार। सबके संपत्ति को पैन कार्ड और आधार कार्ड से जोड़ा जाए। हर साल जनप्रतिनिधि, नेता और प्रशासनिक पदाधिकारी अपनी संपत्ति की घोषणा करें उसके स्रोत बताएं। घोषित संपत्ति से ज्यादा पाए जाने पर जितनी संपत्ति पाई गई है उसे जप्त कर उससे कल कारखाने, सड़क, स्कूल, कॉलेज आदि विकास संबंधी कार्यों पर खर्च किया जाए। इससे भ्र्ष्टाचार के भरोसे खड़ी की गई निजी संपत्ति घटेगी और राष्ट्रीय संपत्ति में इजाफा होगा।”
रोशन जी, “और इस पार्टी का नाम क्या होगा?” मंडल जी ने भाषण अंत करते हुए कहा, पार्टी का नाम होगा BAPL party अर्थात “below to above poverty line” यानी गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए प्रतिबद्ध पार्टी। रोशन जी ने तालियां बजाई और देखते-देखते स्कूल का पूरा प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया।