जनसंवाद : भाग 3
अब तक आपने पढ़ा : मंडल जी जन जागरण के सिलसिले में अलग-अलग लोगों से मिल रहे थे और जन संवाद के माध्यम से लोगों को जागृत कर रहे थे। इसी सिलसिले में उनका रिश्तेदारी में पास के गाँव में जाना हुआ। यहाँ की अधिकांश गरीब आबादी वामपन्थ के प्रभाव में थी और उसकी वजह से कई समस्याएं पैदा हो रही थी जो गरीबों के लिए भी घातक थी और वहाँ के सम्पन्न समुदाय के लिए भी। मंडल जी ने इस समस्या को किस प्रकार रूबरू देखा इस अंक में पढ़िए :-
जनसंवाद भाग 3
रिश्तेदारी के सिलसिले में मंडल जी को किशनपुर गाँव जाने का मौका मिला। किशनपुर के शिरोमणि मंडल रिश्ते में मंडल जी के साले लगते थे। उन्हीं के बच्चे का मुंडन था। जब वह वहाँ पहुंचे तो वहाँ मुखिया जी समेत कई लोग बैठे हुए थे। शिरोमणि जी ने मंडल जी का परिचय कराते हुए लोगों को बताया कि मंडल जी ने बीएपीएल पार्टी बनाई है, जो गरीबों के लिए काम कर रही है और उनके भाषण का उनके दिलो-दिमाग पर बहुत अच्छा असर पड़ रहा है। इनको सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। मुखिया जी ने थोड़ा अविश्वास के भाव से मंडल जी को गौर से देखा और बगल के गुप्ता जी की ओर देखते हुए बोले, “क्या इनका जादू यहाँ चल सकेगा? क्या कहते हो गुप्ता जी?” गुप्ता जी बोले-, “नहीं भाई, ये क्या,कोई भी कुछ नहीं कर पाएगा। यहाँ की गरीब तबके पूरी तरीके से वामपंथियों के प्रभाव में हैं। उन्होंने इनके दिमाग में जो जहर भर दी है, उसे निकालना कोई आसान काम नहीं! और दुख की बात तो यह है कि यह जहर फैलता ही जा रहा है। आज के ही दिन इनके नेता जी आ रहे हैं, सुन लीजिएगा। कैसी कैसी बातें करते हैं” सामने के शर्मा जी बोले-, “हद तो यह है कि नेताजी के कॉमरेड लोगों से पार्टी चंदे के नाम पर लेवी की जबर्दस्ती वसूली करते हैं। कुछ व्यवसाई तो इस जगह को छोड़कर बाहर जाने की सोच रहे हैं। यह कौन सी क्रान्ति है! यह तो गुंडागर्दी है! ”मंडल जी सब कुछ शांति से सुन रहे थे। उन्होंने कहा-, “वामपन्थ,साम्यवाद और समाजवाद तीनों की आत्मा एक जैसी है, हाँ शरीर का फर्क जरूर है। मार्क्सवाद को साम्यवाद लाने में हिंसा से भी परहेज नहीं पर समाजवाद साम्यवाद को अहिंसक तरीके से बहाल करना चाहता है। तो यह नेता जी क्या है समाजवादी या मार्क्सवादी?” मुखिया जी ने कहा-, “इतनी गंभीर जानकारी मुझे नहीं है। पर अपने भाषण में ये सशस्त्र क्रान्ति की बात करते हैं। सेना की गठन की बात करते।” शिरोमणि जी अब तक केवल सबकी बातें सुन रहे थे। पर अब उन्होंने टोका -,”गणेश, जो जादू तुम वहाँ के गरीबों पर चलाए हो वह जादू इन पर भी चलाओ तो पूरे समाज का भला होगा। बाकी इ सब कागजी बहस से किसी को कोई लाभ नहीं होने वाला। इनके दिमाग में जहर भरा जा रहा है उसका शिकार सब कोई हो रहा है। दलित टोला का चार लड़का जेल में है तो अगरे टोला के लोग भी डरे सहमे रहते हैं कि पार्टी संगठन के नाम पर, चंदा के नाम, कब कौन कितना लेवी मांग ले, इसका कोई ठीक नही!” मंडल जी ने पूछा-, “नेता जी का भाषण कहाँ पर है?” आज शाम 4:00 बजे यहाँ के सरकारी स्कूल में पर मैं वहाँ नहीं जाऊँगा”मुखिया जी ने थोड़े रोष से अपनी बात रखी।” मंडल जी ने कहा-,”सार्वजनिक भाषण है। उनकी पार्टी की मीटिंग थोड़े ही है। इसे तो हर कोई सुन सकता है।” शिरोमणि जी बोले ठीक है-, “मैं चलूंगा तुम्हारे साथ, तुम भी इनके नेता का भाषण सुनो और विचार करो कि जो जहर इनके दिमाग में भरा जा रहा है उसका क्या हल हो?”
शाम 4:00 बजे शिरोमणि जी के साथ मंडल जी वहाँ जा पहुंचे। भाषण के कई अंश ऐसे थे जो लोगों के जेहन में वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ जहर घोलने का काम कर रहे थे……… “इस धरती को भगवान ने बनाया। जमीन आसमान जंगल पानी इन सब पर सबका हक है। पर अमीरों ने उस पर कब्जा कर आप को बेदखल कर दिया। पर इन प्राकृतिक संसाधनों पर आपका भी उतना ही हक है जितना कि अमीरों का”
मंडल जी ने फुसफुसा कर शिरोमणि जी से पूछा तो पता चला कि नेता जी ने अपनी पुश्तैनी गाँव में नेतागिरी चमकाने के बाद कई बीघा जमीन खरीदी है। “क्या ये समानता के सिद्धांत के आधार पर गरीबों के बीच अपनी जमीन दान कर देंगे?” मंडल जी के मन में यह ख्याल आया और सोचा कि भाषण के अंत में इन से पूछा जाए। आगे और भी कइ बातें थी ……….”आपके घर की बहू बेटियां इस गाँव के बड़े बड़े घरों में जाकर बर्तन धोने का काम करती हैं। आप हमें वोट दें हम तब तक इन पर राज करेंगे जब तक कि उनकी घर की बहू बेटियां आपके घरों में काम करने को मजबूर ना हो जाए” इस बात पर लोगों ने जमकर तालियां बजाई। मंडल जी के मन में ख्याल आया-,”लगता है उनके घर का सारा काम बस इनकी पत्नी ही करती हैं। क्या कोई भी काम वाली उनके घर काम नहीं करती”………… “बाबा रामदेव के को जेड प्लस सुरक्षा मिली है। उनकी जान जान है और कुदाल चलाने वाले के जान की कोई कीमत नहीं! एक गरीब की जान की कोई कीमत नहीं। उनको बुखार भी आ जाए तो यह खबर बन जाती है पर इन अमीरों के शोषण की वजह से इतने गरीब रोज मरते हैं पर यह खबर नहीं बनती। हम इस व्यवस्था को बदल कर रख देंगे। हर व्यक्ति का जान, हर व्यक्ति की सुरक्षा का बराबर वैल्यू होगा। समाज के अंदर हम आर्थिक समानता लाएंगे, सामाजिक समानता लाएंगे। ऐसा कब तक चलेगा कि मिश्रा जी को तो लोग “पाँव लागू पंडित जी बोलेंगे” और गाँव के चमार रमुआ को अपनी हवेली के सामने से गुजरने भी नहीं देंगे। हम सामाजिक समानता भी लाएंगे और रमुआ को भी वैसा ही सम्मान दिलाएंगे जैसा कि पंडित जी पाते हैं। ” फिर से एकबार तालियां बज रही थीं। मंड़ल जी के मन में आया कि इनसे पूछा जाय कि आपके स्टेज पर आने से जो लोग सम्मान में उठ खड़े होते हैं फिर तो वह भी गलत है। …………… “हाथ जोड़ने से काम नहीं चलेगा। सशस्त्र क्रान्ति करनी होगी और जिन्होंने आपका शोषण कर के धन इकट्ठा कर लिया उनके घरों पर हमला भी करना पड़े तो यह गलत नहीं होगा,यह सर्वहारा वर्ग की क्रान्ति होगी। और आप ये जान लें कि ये पुलिस, ये प्रशासन सभी पूंजीवाद के पिछलग्गू हैं। तो जब सर्वहारा वर्ग का पूंजीपतियों के खिलाफ,जमींदार के खिलाफ क्रान्ति होगी तो उनके इशारे पर पुलिस वाला आप को पकड़नेआ सकती है,आपके घरों की तालाशी ली जा सकती है। पर यदि आप पूर्णतया संगठित हों, एक दूसरे के खातिर मरने और मारने का दम खम रखते हों तो मजाल नहीं कि पुलिस वाले आपके घरों की तलाशी ल लेने की हिम्मत भी कर सकें। आखिर एक पुलिस चौकी में दम ही कितना होता है, 3 या 4 पुलिस और उनके पास पास होता ही क्या है,तीन चार डंडे और एक दो राइफल,बस। इससे कहीं ज्यादा शस्त्र आपके पास हो सकता है यदि आप संगठित होकर प्रयास करें…….. ….” मंडल जी सोच रहे थे- “या तो दर्शकों के पास तर्क बुद्धि नहीं थी या फिर नेता जी की बातें उनके दिलों को इतना भा रही थी कि इनके दिमाग की तर्क शक्ति ने काम करना बंद कर दिया था। सारे दर्शक आह्लादित दिख रहे थे और किसी के चेहरे पर असहमति का कोई भी भाव नहीं दिख रहा था। भाषण सुनकर खिसक लेने में ही भलाई थी। नेताजी लोगों के दिलों में बस चुके थे और एक बार जो कोई दिल में बस जाए तो उनके खिलाफ कोई तर्क नहीं सुन सकता हाँ हाथापाई जरूर कर सकता है।