सपने जमीन पर

 मुखिया जी और जनहित योजना

 

   अब तक आपने पढ़ा: मंडल जी के गांव में दो विद्यार्थी शोध कार्य के लिए आये थे। उन्होंने गाँव के सरकारी स्कूल की शिक्षा व्यवस्था देखी और वहाँ के एक शिक्षक से मिले। इस प्रकार उनका पहला दिन बीत गया। अब दूसरा दिन:

 मुखिया जी और जनहित योजना

 होटल शीशमहल से निकलकर दोनों मित्र गांव पहुंच चुके थे। आज गांव में काफी चहल-पहल थी। ज्यादातर लोग घर से बाहर निकल कर सड़कों पर एक दूसरे से बातें कर रहे थे। कहीं-कहीं पर लोगों का छोटा-छोटा झुंड भी नजर आ रहा था। मंडल जी के घर पहुंचने के बाद वहां पर पहले से 5 लोग नजर आये जो मंडल जी का इंतजार कर रहे थे। सत्यार्थी, “वापस चलें क्या? आज तो लगता है मंडल जी भी व्यस्त होंगें।” राजेश ने धैर्य पूर्वक कहा, “हो सकता है, आज कोई और मुद्दा पकड़ में आ जाए। जैसे कल शिक्षा व्यवस्था दिखी, आज कुछ और दिख जाए।” मंडल जी तब तक आ चुके थे। सब को बैठाया। गांव के लोगों को सत्यार्थी और राजेश का परिचय कराया। थोड़ी देर में चाय भी आ गई थी। जो पांच व्यक्ति आए थे उसमें जो सबसे जागरूक व्यक्ति था उसका नाम सतपाल था। लगभग 50 वर्ष की आयु होगी। बाल अध पके थे,और वह पढ़ा लिखा और समझदार लग रहा था। उसने मंडल जी से कहा, “आपको भी धरना प्रदर्शन के लिए समाहरणालय चलना होगा। जब तक हम संगठित नहीं होंगे, भ्रष्टाचार को रोक नहीं पाएंगे।”

मंडल जी ने कहा, “हम लोग किस किस के खिलाफ लड़ने जाएंगे। जिस अफसर से शिकायत करें हो सकता है वह भी भ्र्ष्टाचार में बराबर के हिस्सेदार हो। तो क्या ऐसे में वह हमारे साथ न्याय करेगा?” फिर सत्यार्थी और राजेश की तरफ देखते हुए कहा, “आप लोगों के काम की ही जानकारी है। सरकार का जो फंड विकास के नाम पर आता है उसमें बड़ा घोटाला हुआ है, उसी के खिलाफ धरना प्रदर्शन की बात हो रही है।” मंडल जी ने सतपाल से कहा, “ये लोग शहर से हैं और ग्राम पंचायती व्यवस्था के बारे में ज्यादा जानते भी नहीं होंगे। पर “गरीबों के गरीबी का कारण क्या है, सरकार के इतने प्रयास के बावजूद गरीबों की दशा सुधर क्यों नहीं रही?” यह इनके शोध का विषय है। तो सतपाल जी बताइए इनको अपने गांव में क्या चल रहा है।” सतपाल जी ने गंभीरता के साथ बताना शुरू किया, “सरकार कई कार्यक्रमों के द्वारा गरीब ग्रामीण जनता की मदद करना चाहती है। पर यह हाथी का दिखाई देने वाला दांत है ,जो सुंदर तो दिखता है पर खाने के दाँत छिपे हुए होते हैं। अब ये बताइये कि गांव वालों के लिए सरकार का क्या मतलब हुआ?” राजेश ने सोचते हुए जबाब दिया,”आपके गांव के जनप्रतिनिधि और ब्लॉक तथा जिले के सरकारी नुमाइंदे जिनके माध्यम से ये कार्यक्रम आप तक पहुँचते हैं। मेरे ख्याल से आपके लिए यही स्थानीय सरकार है।”

सतपाल जी, “हां बिल्कुल सही समझा आपने। तो सरकार ये कर रही है कि 100 रुपये ले लो और हमें ₹ 30 वापस दे दो। जैसे कि इंदिरा आवास योजना में सरकार 130000 देगी तो 30,000 यहां की स्थानीय सरकार यानी की मुखिया, सरपंच, प्रखंड विकास पदाधिकारी आदि में बंट जाएगी। ये है खाने वाली दांत कि एक हाथ से पेपर पर तीन रुपये दिया तो दूसरे हाथ से उसके बदले ₹1 वापस ले लिया।” सत्यार्थी ने सवाल किया,”और ऊपर ऊपर शिकायत कर दी तो? ” सतपाल जी, “किस को शिकायत करोगे? पैसे तो नीचे से लेकर ऊपर तक सब में बँटता है। तो हम कोई शिकायत नहीं करते। इतना देना ही पड़ेगा हम मान कर चलते हैं। 30 हजार देकर 1लाख मिल गया तो भाई कोई दिक्कत नहीं। मनरेगा योजना में भी 40% मुखिया,बी डी ओ और रोजगार सेवक मिलकर ले लेते हैं वह भी बर्दाश्त किया। पर इस मुखिया ने तो वह घोटाला कर दिया जो किसी ने सोचा भी नहीं था।

इसीलिए हम लोग धरना प्रदर्शन करने जा रहे हैं।” राजेश आश्चर्य से, “ऐसा क्या घोटाला किया गया है?” सतपाल, “जिन घरों में मर्द लोग बाहर काम कर रहे हैं और घर में औरतें बूढ़े और बच्चे बच गए हैं, उन घरों में जाकर सरकारी मदद देने के नाम पर उनसे आधार कार्ड और पहचान पत्र ले लिया। उनके नाम से फिर फर्जी खाता बना कर पैसे की निकासी करते रहे। 80 साल के बूढ़े आदमी का जॉब कार्ड बनाकर मनरेगा से निकासी कर लिया। बुड्ढा जिसने आज तक बैंक का दर्शन भी नहीं किया, उनके नाम से बैंक में पैसा जमा भी हुआ और निकासी भी हो गई। ये तो बैंक में मेरा एक रिश्तेदार निकल आया और मैं पीछे पड़ गया तो पूरे मामले का पता चला। लाखों का घोटाला है। एक और व्यक्ति ने जोड़ा, “और यह मुखिया तो इतना बेशर्म है कि साफ साफ कहता है कि हमको चौधरी टोला से वोट मिला है? जो उसका काम करेंगे! अब वह इस पूरे गांव का मुखिया है कि बस अपनी जात का मुखिया है ,बताइए भला? ” सत्यार्थी, “इनको आप लोंगों ने ही तो जिताया है।”

उस आदमी ने कहा,”चुनाव के वक्त तो यह हर बूढ़ा आदमी को पाँव छू कर उनका आशीर्वाद लेता था,जवान लड़का सब को दारू पिलाया और गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर बाई जी का नाच दिखाया,बच्चा सबको टॉफी दिया, गांव के औरतों को भौजी भौजी बोलते रहें और अब इलेक्शन जीत गए तो बस फर्जीवाड़े के धंधे में लगे हुए हैं।” इसी बीच एक आदमी मोटरसाइकिल से आया। उसे देखते ही सारे लोग अचानक से चुप हो गये। सत्यार्थी और राजेश घूर घूर कर इस नवागंतुक को देखते रहे। जीन्स पैंट, गठीले बदन के ऊपर टी शर्ट, गले में लाल रुमाल, आंखों पर काला चश्मा। मोटरसाइकिल से उतरे बगैर घूर कर उसने सबको देखा और बोला, “मुखिया जी तुम सब को अपने कोठी में बुलाएं हैं। तुम लोग को जो भी शिकवा शिकायत करना है वहीं करना।  और हां ज्यादा ऊंचा आवाज में कोई बात नहीं करेगा। वह हमारे मुखिया हैं कोई हंसी ठट्ठा नहीं है कि कुछ भी बोल दिया।” फिर सतपाल की ओर कड़ी नजरों से घूरते हुए उसने कहा, “समझ गए हो तो इनको भी समझा देना। जो नहीं समझे तो हमको अच्छे से समझाने आता है।

मुखिया जी हमारे अन्नदाता है जो कोई उंगली उठायेगा ना उनकी तरफ तो उस शाले का हाथ काट कर रख देंगे,अच्छे से बुझ लो। वैसे सतपाल समझदार हो तुम और समझदार के लिए इशारा काफी होता है। ”फिर जोर से उसने किक मारी और मोटरसाइकिल सवार जब तक आँखों से ओझल नहीं हुआ, लोग उसी की तरफ देखते रहे। सबके चेहरे पर भय की छाया साफ साफ दिखाई पर रही थी। राजेश ने कौतूहल से पूछा,”कौन था ये, जो सरेआम धमकी देकर गया है?” मंडल जी ने बताया, “ये मुखिया जी का खास आदमी है। सरेआम चौराहे पर दो आदमी का एक साथ मर्डर किया। मुखिया जी ने रातों रात दरोगा का ट्रांसफर करवा कर नए दरोगा का पोस्टिंग कराया। फिर दोनों मृतक को आपिस के रंजिश में एक दूसरे की हत्या का मामला बता कर उसके खिलाफ दर्ज सारे सबूत मिटा दिए। तब से यह मुखिया जी का वफादार कुत्ता बना हुआ उनके साथ घूमता रहता है।  मुखिया जी साम-दाम-दंड-भेद हर कला में माहिर हैं। घर आकर हाथ जोड़ लेते हैं और उनके खिलाफ कोई आवाज बुलंद करे तो उसको खामोश करना भी जानते।” सत्यार्थी और राजेश के चेहरे पर भी भय की छाया साफ दिख रही थी। मंडल जी ने कहा,”आपलोग टेन्सन नहीं लीजिये। अब देखना है कि मुखिया जी के हवेली से क्या फरमान जारी होता है।” फिर सतपाल की ओर देखकर पूछा,”अब क्या कीजिएगा?” सतपाल के चेहरे का क्रांतिकारी उत्साह बुझ चुका था और उसकी जगह पर असमंजस का भाव दिखना शुरू हो गया था। बुझे स्वर में उसने कहा, “लगता तो नहीं है कि कोई भी आदमी आर पार की लड़ाई में मेरा साथ देगा। देखते हैं, कोई समझौते वाली बात निकल आए।” 

   मुखिया जी का हवेली खासा बड़ा था। बाहर लोहे के बड़े-बड़े गेट के दोनों तरफ हाथों में मुठ वाली डण्डों को हाथ में लिए दो सन्तरी खड़े थे। कई लोग आ चुके थे। सतपाल बड़ा परेशान दिख रहा था। राजेश और सत्यार्थी भी हिम्मत कर कौतूहल वश सबके साथ हो लिए थे। मंडल जी तटस्थ दिख रहे थे जैसे कि उन्हें पता हो यह सब तो होना ही था। दरबान अंदर खबर कर चुका था। एक-एक कर सब की तलाशी ली गई। और बारी-बारी से सब अंदर पहुंचे। सामने मोड़े पर लगभग 6 फीट लंबा चौड़ा मूछ वाला बाहुबली सा दिखने वाला सफेद धोती कुर्ता पहने मुखिया जी बैठे थे। सामने दरी बिछी हुई थी। चार पांच लोग पीछे खड़े थे जिन्होंने लूंगी गंजी या हाफ पेंट गंजी पहन रखी थी।  मुखिया जी ने सब को इशारे से दरी पर बैठने को कहा। कई लोगों ने बैठने से पहले मुखिया जी को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और कुछ लोगों ने तो जाकर उनके पांव भी छुए।  सबके बैठ जाने के बाद मुखिया जी ने कहा, “अंदर जाकर सबके लिए चाय भिजवाने के लिए कह दो।” फिर सतपाल की तरफ देखते हुए व्यंग्य से कहा, “सतपाल, गांव के लोगन के लिए आपको तो बड़ी चिंता है। बड़ा अच्छा लगा हमको। हमरे बाद किसी को ई लोगन की चिंता है तो उ आप ही हैं। पर बाबू तुमको जरूर बड़का गलतफहमी हुआ है। जिन लोगों का आधार कार्ड और परिचय पत्र लिया गया है ,उ सब का राशन कार्ड तैयार हो गया है और अब सबको सस्ते में राशन मिल सकेगा। मेरे और आपके अलावा कौन है जो उनका भला सोचेगा। पर जब तक हम जिंदा हैं आपको इनका चिंता करने का कोई जरूरत नहीं है। चाय भी आ गई है आप लोग चाय पीजिए। ऐसा कहते कहते उन्होंने दाहिने हाथ के तर्जनी अंगुली से इशारा करते हुए कहा, “क्या रमुआ! हमारे जैसा कोई मुखिया आज तक मिला है ई गांव को? ” तर्जनी अंगुली के इशारा को देखते ही रमुआ ने यंत्रवत तपाक से कहा, “बोलो मुखिया जी की जय….। ”

फिर साथ के सारे व्यक्ति बोल पड़े, “मुखिया जी की जय” फिर रमुआ बोला, “मुखिया जी जिंदाबाद” पीछे खड़े बाकी लोगों ने भी नारे लगाए,”मुखिया जी जिंदाबाद। ” फिर ईशारे से रमुआ ने भीड़ को भी जैकारे लगाने के लिए कहा। जो लोग मुखिया जी के पांव छू चुके थे वे बोल प,”मुखिया जी की जय, मुखिया जी जिंदाबाद। ” भीड़ में फिर बाकी लोग भी जय कारे लगाने लगे। अब कुछ लोग ही रह गये जिन्होंने मुखिया का जयकारा नहीं लगाया था। मंडल जी, सतपाल, दोनों विद्यार्थी और कुछ लोग जो थोड़े संपन्न दिख रहे थे उन्होंने जयकारा नहीं लगाया था। शायद मुखिया जी इस बात को अब और ज्यादा तूल नहीं देना चाहते थे अतः उनकी ओर से फरमान आ गया, “अब आप लोग चाय पीजिए,घर जाइए, किसी अफवाह पर विश्वास करने की जरूरत नहीं। अभी बड़े प्यार से बात किए हैं हम ,पर यह धरना प्रदर्शन वाली बात सुन लिए तो आप हमरा दूसरा रूप भी देखिए लीजिएगा।” मुखिया जी जा चुके थे। चाय समाप्त कर सारे लोग बाहर आ गए। मंडल जी ने सतपाल से मजाक में पूछा, “क्या यार,तुम्हें भी कैसी कैसी गलतफहमी हो जाती है। हमारे महान मुखिया जी के बारे में ऐसी गलतफहमी!”पर सतपाल ने इसे गंभीरता से लिया। जेब से बैंक का स्टेटमेंट निकाल कर मंडल जी को दिखाते हुए कहा, “सारा सबूत साथ में है। पर लोगों को देखा ,मुखिया जी के जयकारे लगा रहे थे। क्या खा के ये लोग साथ देंगे मेरा। चलिए रास्ते में ही तो मेरा घर पड़ता है। वहां बैठ कर बात विचार करते हैं।”

हालांकि बात विचार करने के लिए अब कुछ बचा नहीं था पर मंडल जी ने सतपाल का दिल रखने के लिए कहा, “अच्छा चलिए। चलते हैं।” रास्ते में सतपाल का छोटा सा घर था। घर के आगे छोटा ही सही पर बेहद सुंदर सा बगीचा लगा हुआ था। बगीचा के बगल से अंदर जाने का रास्ता था। दलान के आगे एक मोटरसाइकिल रखी थी पर इसके दोनों मिरर को देखकर लग रहा था कि इन्हें अभी तुरंत तोड़ा गया था। सतपाल मोटरसाइकिल देखकर परेशान हो गया। सतपाल को देखते ही एक नौकर लगभग रोता हुआ सूजा चेहरा लिए हुए आया और बोला, “मुखिया जी के गुंडा आयल रहे मालिक, हमरा मारबो कैलक और मोटरसाइकिल के शीशा तोड़ कर बोललक “अभी तो शीशा तोड़ दिए हैं पर अप्पन मालिक को चेता देना कि जो ज्यादा लिडरई किया तो ओक्कर खोपड़ीया तोड़ देंगे,बड़ा अप्पन खोपरिया भिड़ाता है।” मंडल जी ने सतपाल के कंधे पर हाथ रखते हुए उसे सांत्वना देने की कोशिश की, “तुम्हारे जैसे जागरुक व्यक्ति के रहते हुए भी इस गांव का कुछ भी नहीं हो सकता। कितने अफसोस की बात है। पर इन डरे सहमे लोगों की जमात के भरोसे तुम क्रांति नहीं कर सकते और अकेले कुछ करोगे तो मिटा दिए जाओगे वैसे भी मुखिया जी ने तो समझा ही दिया है कि उनके जीते जी तुम्हे गाँव वालों की चिंता करने की जरूरत नहीं। दोस्त, सब कुछ ऐसे ही चलता रहेगा, इस गाँव का और हमलोगों का कुछ नहीं हो सकता” 

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डॉक्टर प्रभाकर भूषण मिश्रा

जन्म स्थान : जमालपुर (मुंगेर), बिहार, शिक्षा: एमबीबीएस, एमडी (मेडिसिन) रुचियां: पेंटिंग एवं लेखन
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विजय कुमार झा
विजय कुमार झा
2 years ago

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त ग्रामीण विकास के लिए सरकारी स्तर पर विभिन्न समय में विभिन्न लोक कल्याणपरक योजनाएँ लायी गयी। इन योजनाओं के अमली जामा न पहनने के कारण स्थानीय स्वशासन के सुदृढ़ीकरण हेतु 1992 में तत्कालीश सरकार
द्वारा 73वां संवैधानिक संशोधन लाया गया है,जिसका मुख्य उदेश्य ग्रामीण स्तर पर स्थानीय निवासियों द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि के माध्यम से स्थानीय आवश्यकताओं के दृष्टिगत जनहित की प्राथमिक योजनाओं को बनाना तथा उसका सरकारी आवंटित धनराशि से बेहतर ढंग से क्रियान्वयन करना। इसके साथ ही ब्लाकस्तरीय योजनाओं का कहीं कहीं पर्यवेक्षकीय दायित्व भी सौंपा गया है। तबसे लेकर आज तक के अनुभव के आधार पर यह कहना अनुचित नहीं होगा कि जिसको जब मौका लगा तब इस जनसेवा के नाम पर लूट खसोट मचाया। यही नहीं गाँवों में व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण खेमेबन्दी एवं गुटबाजी भी देखा जा रहा है। कभी कभी तो एक ही परिवार में अलग-अलग नेतृत्व को मानने वाले दीख जायेंगे। भारी भ्रष्टाचार के बोलबाला के कारण एक तरफ जहां योजनाएँ सही ढंग से लागू नहीं हो पा रही है वहीं अनैतिक आचरण को बढ़ावा मिल रहा है तथा कहीं कहीं खून खराबा भी देखने में आता है। सत्यपाल के घर पर दिये गये धौंस की बानगी का उल्लेख आपने किया ही है। समसामयिक इसी सामाजिक स्थिति का सटीक उपस्थापन यह धारावाहिक करता है। मण्डल जी का गिरगिट के तरह रंग बदलना भी अच्छा लगा, दोनों शोधार्थी को अपने शोध का पर्याप्त विवेच्य भी मिल रहा है। हंसी ठट्ठा, (डंडे का) मूठ, बूझना, लीडरई ,खोपडिया भिडाना आदि आंचलिक प्रयोग बहुश्रुत एवं अर्थगाम्भीर्य के कारण समीचीन है। जनहित/समाज सेवा पर सुन्दर प्रस्तुति।

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