आगाज
यह हमारी आपकी सबकी कहानी है। इसके नायक भी हम हैं और किसी न किसी मोड़ पर स्वेच्छा से या मजबूरी से खलनायक भी हम हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि भ्रष्टाचार का माहौल सघन हो तो न्याय पूर्ण रास्तों पर चलना कठिन हो जाता है। हमारे देश की समस्याएं बहुत हैं और उनके समाधान भी हैं पर समाधान को जमीन पर उतारने के लिए जिस ईमानदार नीयत की जरूरत है उसका घोर अभाव है। भ्रष्टाचार की बैसाखियों पर टिके तन्त्र को जो राजनीति अपने नियन्त्रण में रखती है उसके शीर्ष पर जो नीति नियंता बैठे हैं वे भ्रष्टाचार की ही नस्ल तैयार कर रहे हैं। परिवर्तन के बाद सत्ताधारी समूह बदल जाता है है लेकिन तन्त्र वही रह जाता है इसलिए समस्याएं यथावत बनी रहती हैं।
हम एक उपन्यास का धारावाहिक प्रकाशन प्रारम्भ कर रहे हैं। यह उपन्यास ऐसे ख्वाबों का दस्तावेज है जो अव्यवस्था,अराजकता, अन्याय और अत्याचार की आँधी में कहीं गुम हो गये थे। यह उपन्यास भ्रष्टाचार की फसल उगाने वाली व्यवस्था के खिलाफ, राष्ट्रवाद की जगह जातिवाद क्षेत्रवाद की जहर उगलने वाली संकीर्ण राजनीति के खिलाफ एक एक “हल्ला बोल” मुहिम भी है।
इस उपन्यास को पढ़ना उन सपनों से जुड़ना है जिन्हें हमारे शहीदों और स्वतन्त्रता सेनानियों ने देखा था।- सम्पादक
आगाज
कभी अपनी जमीन बेचने के लिए मजबूर मंडल जी अपने सपनों को नहीं बिकने देंगे। उभरते हुए नेता हैं। भीड़ देखते ही उनके चश्मा में बल्व जल उठते हैं। भीड़ होती है तो उसकी एक गंध भी होती है उस गन्ध में डूबने के लिए मंडल जी ने लंबा सफर तय किया है। छोटी जगह में कोई सपने देखे तो उसे शर्म में बदल देने वाले कम नहीं होते। उन्होंने जब अपनी एक पार्टी बनाई और उसका नाम रखा बीएपीएल पार्टी तो उनके गांव के ही सिनेमची मुनमुन ने अपनी खटासी बोली में कूट किया था, “क्या हो मंडल जी गरीबी भागाएंगे कि गरीबों को…..! बोली कि खटास ऐसी कि दूध तक फट जाए। मंडल जी का कलेजा चीर गया, लेकिन वह कुछ बोले नहीं। मन ही मन भुनभुना कर रह गये, “धर्म को ताक पर रखकर पुण्य बनने चले हैं। ” तब से आज तक मंडल जी अपनी ही दुनिया में जी रहे हैं। वहीं दुनिया जिसमें दर्द भी है और उस दर्द की दवा भी। बड़े-बड़े टोले ले मोहल्ले से शुरू होकर अब उनकी दुनिया छोटे-बड़े शहरों तक फैल चुकी थी। मंडल जी यानी गणेश मंडल, बीएपीएल पार्टी के सर्वेसर्वा। पार्टी का नाम तय करने में भी कम लफड़े पड़े हुए क्या! बिलो टू एबभ पॉवर्टी लाइन। लोगों ने खूब नाक भौं सिकोरे, ये भी कोई नाम हुआ। उस दिन उनको लगा कि सिकुड़े हुए नाक और भौं का यदि कोई नक्शा बनाया जाए तो दुनिया का सबसे टेढ़ा उनका ही गांव होगा। वह अपनी पार्टी को ऐसी पार्टी बनाना चाहते थे जो गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर ले जाने का काम करें। आसपास के लोग तो जब भी आए टूटने की तरकीब भी साथ लेकर आए। कुछ दिन उन्होंने अपनी पार्टी को ढक कर रखा और फिर मंडल जी की मेहनत रंग लाई। उनको जानने वाले उनके साथ काम करने वालों की कतार खड़ी हो गई। और अब भीड़ देखते ही उनके चश्मा में बल्व जल उठते हैं। आज भागलपुर में थे। मंच सजा हुआ था। उनको सुनने आए लोग लगातार नारे लगा रहे थे “मंडल जी जिंदाबाद”, “बीएपीएल पार्टी जिंदाबाद”, “गरीब एकता जिंदाबाद”। समर्थकों के फूलों से लदे और लगभग बीते दिनों में खो चुके मंडल जी को यादों के तालाब से निकली भाप का एहसास तब हुआ जब उनके सहयोगी ने उनको मंच पर बोलने का न्योता दिया। वे उठे और सधे कदमों से माइक तक पहुंचे को। भीड़ को संभालना उन्हें आ गया था और भी समझने लगे आप जनता ने मुझे जो प्यार और सम्मान दिया है उसके हम तहे दिल से आभारी हैं हमें पूरी उम्मीद है कि हम उन सपनों को अवश्य जमीन पर उतारेंगे जिन्हें पहले तो हमने देखा फिर उस पर यकीन किया और फिर हम सबों ने मिलकर उन सपनों को जिया है। वे लगातार बोलते जा रहे थे। जनता को भी मजा आ रहा था। जनता जैसा सुनना चाहती है मंडल जी वैसा ही बोलना जानते हैं। तभी उनके सहयोगी ने उनको घड़ी दिखा कर इशारा किया तो उन्होंने मजे हुए नेता की तरह भाषण को वहीं पर रोका और फिर जनता से विदा होने की अनुमति मांगी,“अब आप लोगों से विदाई लेना चाहूंगा। आधे घंटे में एक और जनसभा को संबोधित करना है। मंच से उतरते ही पत्रकार लग गए पीछे।
“सुना है आप तो ऐसे किसान थे कि खेती करने से भी डरते थे और पिछले 4 साल में ही आपने इतनी ऊंचाई हासिल कर ली?”
सारे दांव-पेच झेल कर हो चुके मंडल जी उसके सवाल पर कुछ ऐसे मानो कह रहे हों, क्या फालतू का सवाल पूछा है। फिर गंभीर होकर कुछ इस कदर बोले कि कि दूसरे लोग भी सुन लें-“हाँ ऐसा भी समय आया था जब मैं जमीन बेचने के लिए मजबूर हो गया था।”
लंबे सवालों के छोटे और उलझे हुए प्रश्नों के सुलझे हुए जबाबों ने मंडल जी को पत्रकारों के बीच भी खूब लोकप्रिय बना दिया था। एक दूसरेपत्रकार ने चिल्ला कर पूछा- “तब से अब तक के सफर के बारे में आप क्या बताना चाहेंगे?”
जवाब में मंडल जी के चेहरे पर एक मुस्कान भर थी। एक तीसरे पत्रकार ने पूछा- “क्या यह सच है कि जिसे आप को मारने की सुपारी दी गई थी वहीं आज आपका बॉडीगार्ड बन चुका है?” मंडल जी फिर मुस्कुराये और अपने पास खड़े बॉडीगार्ड के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा “हां यह सच है।”
फिर तो हर तरफ से सवालों का एक चक्रव्यूह सा रच गया, मानों सवालों के चक्रव्यूह से निकलने का हर एक रास्ता गुरु द्रोण की तरह उन्होंने ही सेट किया हो,वे बाहर निकल गये। लेकिन जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा कि – “आप की जाति को तो आरक्षण मिला हुआ है फिर भी आप आरक्षण के खिलाफ है?”मंडल जी सहसा गंभीर हो गए। अब वे एक नेता नहीं बल्कि शिक्षक की तरह दिखने लगे। उन्होंने गंभीर होकर कहा-“जो गरीबी की वजह से अयोग्य हैं मैं उसे बस योग्य बनाना चाहता हूं और मेरी किसी जाति से कोई दुश्मनी नहीं है। मेरी पार्टी का इसीलिए तो नाम है बी ए पी एल यानी बेलो टू एबोभ पॉवर्टी लाइन” फिर उनके चेहरे पर राजनीति वाली चिर परिचित मुस्कान आ गई। और वह मुस्कान तब तक लोगों को दिखती रही जब तक उनकी गाड़ी आंखों से ओझल नहीं हो गई। लेकिन जाते-जाते व पत्रकारों को एक गुरु मंत्र दे गए थे- “आज रात में गेस्ट हाउस में रुका हूं आप लोगों को मैं वही डिनर पर आमंत्रित करता हूं फिर विस्तार से बता पाऊंगा अपने जीवन यात्रा के बारेमें…।”
शाम 7:00 बजते बजते गेस्ट हाउस में पत्रकारों का जमघट लगना शुरू हो गया था। सबके अपने अपने सवाल थे। जवाब देने के क्रम में मंडल जी ने बताया, “आम किसानों की तरह ही मेरी भी जिंदगी थी। पर शायद ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन मेरे गांव में 2 विद्यार्थी आये। आए तो थे वे गरीबी के कारणों पर शोध करने, पर वहीं से मेरे जीवन की दिशा बदली और जो मैंने अग्नि पथ पर चलने की ठान ही ली तो हालात भी बदले और लोगों के विचार भी” बताते बताते मंडल जी को पुराने दिन याद आने लगे जहां से उनकी जिंदगी के बदलाव की इबारत कुदरत ने लिख रखी थी।
अविस्मरणीय, बहुत ही शानदार