फणीश्वर नाथ रेणु
मेरी पीढ़ी के लिए हिन्दी साहित्य के सबसे आकर्षक प्रतीक : ‘रेणु’ जी
- आनंद कुमार
अगर किसी व्यक्ति का ज़िक्र होते ही आपके स्मृति-संसार में एक साथ आपका एक प्रिय उपन्यास, बेहद पसंदीदा फिल्म, अत्यंत रोचक इतिहास वर्णन, बेचैन कर देनेवाला प्रकृति चित्रण, सबसे रोमांचक जनांदोलन और सबसे साहसी साहित्यकार जीवन्त हो जाएँ तो आप उनको क्या कहेंगे? कोई भी एक विशेषण नाकाफी रहेगा। शायद कम से कम दो शब्दों की एक साथ जरूरत पड़ेगी – अविश्वसनीय और अविस्मरणीय! हम रेणु जी को इसी कोटि का मानते हैं। ‘परती -परिकथा’ जैसे कालजयी उपन्यास के सर्जक रेणु जी थे। बम्बइया फिल्मों की मायानगरी में ‘तीसरी कसम’ जैसी ‘मील का पत्थर’ फिल्म के हीरामन और हीराबाई की सहज प्रेमकथा को गढ़नेवाले रेणु जी थे। ‘नेपाली जनक्रांति’ का अद्वितीय वृत्तांत रेणुजी की कलम के जरिए दशकों बाद पुन: जीवन्त हुआ। जल की प्रकृति के दोनों पक्षों – आतंककारी सूखा और भयंकर बाढ़ को एकसाथ ‘ऋणजल-धनजल’ में मर्मभेदी शब्दों की लम्बी श्रृंखला में बांधना रेणुजी के ही बस की बात थी। सम्पूर्ण क्रांति के सपने के लिए लोकशक्ति के अद्वितीय आन्दोलन में राष्ट्रीय ख्याति के साहित्यकार के रूप में बेहद असरदार हस्तक्षेप का किस्सा भी रेणु जी के ही खाते में लिखा गया है।
बिहार आन्दोलन में फारबिसगंज में जन प्रदर्शन संगठित करना, अररिया में गिरफ्तार होना, पूर्णिया जेल में अनशन करना, जेल से जयप्रकाश जी को विस्तृत चिट्ठी लिखकर 1942 और 1974 के बीच जेल-व्यवस्था में बढ़ी दुर्दशा का सच उजागर करना, उत्तर में जे। पी। का ‘उत्साहित और भविष्य के लिए आशान्वित होना’, फिर 4 नवम्बर के विराट जन-प्रदर्शन में जयप्रकाश जी पर पुलिस प्रहार और रेणु जी द्वारा इसके विरोध में राष्ट्रपति के दिए ‘पद्मश्री’ सम्मान को लौटाना और बिहार सरकार की जीवन भर के लिए दी गयी मासिक सम्मान वृत्ति का 18 नवम्बर की पटना के गाँधी-मैदान की ऐतिहासिक जनसभा में मंच से बिहार राज्यपाल को लौटाने का ऐलान करना और इस अद्भुत साहस और भरोसे से लोकनायक का अपने सम्बोधन के आरम्भ में विह्वल हो जाना– यह सब रेणु जी के रोमांचक जीवन वृत्तांत में 1974 के कुल पांच महीनों – जुलाई से नवम्बर के अंदर हुई घटनाओं का हिस्सा था !
चार नवम्बर और अट्ठारह नवम्बर के बीच रेणु जी के मनोभावों को समझने के लिए उनकी मार्मिक कविता ‘डेट लाइन पाटना – चार थेके आठारो नभेम्बर’[1] हमारे पास विरासत के तौर पर है। बांगला में लिखी अट्ठावन पंक्तियों की इस सशक्त कविता की अन्तिम अट्ठारह पंक्तियाँ तो बार बार पढने-सुनाने लायक हैं। क्योंकि इसमें बिहार आन्दोलन का, इसकी लोकप्रियता का, इसके अहिंसक चरित्र का, राज्यसत्ता की हिंसा का और लोकनायक जयप्रकाश की निडरता का रेणु जी की अद्वितीय शैली में प्रभावशाली वर्णन है:
एदेरई कब्जि (कलाई) ते सोनाली-राखी बेंधे आदर कोरेछिलो – मायेरा-दीदीरा-बोनेरा।।।?
कलकातार छेले आमार छोट भाईयेर मत,
आरो एकटा बड़ो कथा बलेगेल से दिन (बोल गया उस दिन)
‘आर, आपनादेर ए लड़ाई ? एकटा अद्भुत व्यापार
मार खाबो अथच मारबो ना
‘हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा’
एई स्लोगनेर एत ‘धक’ ?
आमादेर अन्तत: आमार जाना छिलो ना।
एतो राउंड टियर गैस एतो हैवी लाठी चार्ज
तबू एकटा ढील बा पाथर केउ छुंडे मारलो ना ?
आर जेपी जखन जीप थेके लाफिये नेमे
मारो! मारो! मुझे मारो! –
निजेर माथा पेते ‘यहाँ मारो!’
तारपरे जा घटेगेल ना!
जा घटेछे आमि देखे छि अद्भुत सब व्यापार।’
आमियो देखेछि: आमि बलि
परेर चिठी तो सब कथा खुले लिखबो तारपर ।।।।
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देश भर में सक्रिय हम आन्दोलनकारी युवजनों के लिए रेणु जी ऐसे अनूठे साहित्यकार थे जिन्होंने सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन के दौरान न सिर्फ पुराने-नए कवियों की टोली के साथ बिहार की राजधानी पटना में नुक्कड़-नुक्कड़ कविता पढ़कर लोक-जागरण में प्रवाह पैदा किया बल्कि एक कदम आगे बढ़कर स्वयं आन्दोलनकारी बने। गंभीर अस्वस्थता के बावजूद जेल गये। फिर लोकनायक जयप्रकाश और अहिंसक जन-प्रदर्शन पर पुलिस बर्बरता के विरुद्ध राष्ट्रपति को विरोधपत्र लिखकर ‘पद्मश्री’ सम्मान लौटाने के जरिये देशभर के आन्दोलन समर्थकों का हौसला बढाया और शांतिमय आन्दोलनकारियों के बर्बर दमन के विरुद्ध बिहार के राज्यपाल को चिट्ठी लिखकर बिहार राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा 1972 से प्रदत्त आजीवन मासिक सम्मान राशि को भी वापस करके मदांध सत्ताधीशों के अहंकार को सीधी चुनौती दी।
रेणु जी ने राष्ट्रपति को लिखा कि, “1970 और 1974 के बीच देश में ढेर सारी घटनाएं घटित हुई हैं। उन घटनाओं में, मेरी समझ से, बिहार का आन्दोलन अभूतपूर्व है। 4 नवम्बर को पटना में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में प्रदर्शित लोक इच्छा के दमन के लिए लोक और लोकनायक के ऊपर नियोजित लाठी प्रहार झूठ और दमन की चरम पराकाष्ठा थी। आप जिस सरकार के राष्ट्रपति हैं वह कब तक लोक इच्छा को झूठ, दमन और राज्य की हिंसा के बल पर दबाने का प्रयास करती रहेगी ? ऐसी स्थिति में मुझे लगता है कि पद्मश्री का सम्मान अब मेरे लिए ‘पापश्री’ बन गया है। साभार यह सम्मान वापस करता हूँ।।।”
इसी प्रकार बिहार के राज्यपाल को रेणु जी ने दो-टूक शब्दों में लिखा कि, “बिहार सरकार द्वारा स्थापित एवं निदेशक, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना द्वारा संचालित साहित्यकार, कलाकार, कल्याण कोष परिषद् द्वारा मुझे आजीवन 300 प्रतिमाह आर्थिक वृत्ति दी जाती है। अप्रैल 1972 से अक्टूबर 1974 तक यह वृत्ति लेता रहा हूँ। परन्तु अब उस सरकार से, जिसने जनता का विश्वास खो दिया है, जो जन आकांक्षा को राज्य की हिंसा के बल पर दबाने का प्रयास कर रही है, उससे किसी प्रकार की वृत्ति लेना अपना अपमान समझता हूँ। कृपया इस वृत्ति को अब बन्द कर दें…” यह नहीं भुलाया जा सकता है कि इस साहसपूर्ण त्याग में जनकवि बाबा नागार्जुन का भी उनको साथ मिला।
इसका सभी आन्दोलनकारियों और देश के जनमत पर क्या असर हुआ होगा इसका अनुमान इसी बात से हो जाना चाहिए कि स्वयं जयप्रकाश नारायण ने 18 नवम्बर 1974 की गाँधी मैदान की ऐतिहासिक विराट जनसभा में अपना भाषण रेणु जी के साहस और विशवास की चर्चा से शुरू किया और भावुक होकर रो पड़े। जेपी ने कहा,”वैसे रेणुजी आज सुबह मिले थे और राष्ट्रपति और राज्यपाल के अपने पत्रों का ‘ड्राफ्ट’ पढ़कर सुनाया था। तो मुझे पूर्व सूचना थी। परन्तु जब यहाँ आकर उन्होंने बिहार और देश की जनता के चरणों में इतना बड़ा आदर और तीन सौ रुपये मासिक की यह आजन्म वृत्ति, उसका परित्याग किया तो मैं अपने को संभाल नहीं सका। नागार्जुन जी ने भी, जिन्हें हिन्दी साहित्य में संघर्ष का प्रतीक माना जा सकता है, तीन सौ रूपये की वृत्तित्याग की घोषणा की। यह सारा दृश्य मेरी आँखों के सामने कई पुराने ऐतिहासिक अवसरों को जीवित खड़ा कर देता है। रेणु जी ने और नागार्जुन जी ने देश के तमाम लेखकों के सामने एक उदाहरण रखा है। एक रास्ता बताया है कि कलम भी किस प्रकार न्याय के, क्रान्ति के संघर्ष में हथियार बन सकती है…”[2]
हमारी पीढ़ी का यह सौभाग्य था कि हमने रेणुजी के आरोहण को देखा था। जाना था। माना था। वैसे हमलोग मोहभंग की निरंतरता से अभिशप्त पीढ़ी रहे हैं। हमें जादा व्यक्तियों, रचनाओं और घटनाओं ने खिन्न किया। कम ही आकर्षक और सम्मोहक लगे। इसलिए जो पसंद आए उन्हें हम सबने ‘गरीब के गहने’ की तरह बार-बार निहारा है। अपनी यादों की दुनिया में सहेज कर रखा है। रेणुजी के जीवन में शुरू से अन्त तक की साहित्य-साधना में राजनीतिक प्रतिबद्धता और सामाजिक सक्रियता के ताना-बाना की बड़ी महत्ता है। बनारस पढने गये तो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में इंटरमीडिएट करते करते 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में कूद पड़े। भारत में आज़ादी आयी तो नेपाली कांग्रेस के नेतृत्व में 1950 की नेपाली जनक्रांति में जुट गए। 1954 में ‘मैला आंचल’ ने उनको एक व्यापक पहचान दिलाई और उसके बाद की सृजन-साधना से उनकी छबी में निखार आता गया। भरत ‘यायावर’ द्वारा संपादित और राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित रेणु रचनावली के पांच खंड से इसको समझा जा सकता है[3]। लेकिन उन्होंने जे।पी। के आवाहन पर 1974-77 में जो किया उसका किसी को भी अनुमान नहीं था।
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आइए, इस कथा को रेणुजी की मदद से ही जानें जिसे उन्होंने स्वयं जेल से जे। पी। के नाम एक पत्र में विस्तार से लिखा था। यह पत्र और जयप्रकाश नारायण द्वारा रेणु जी के पत्र का उत्तर ‘दिनमान’ में 25 अगस्त, 1974 को छपकर पूरे देश की जानकारी में आया।[4] तब हम जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के शोधछात्र के रूप में जे। पी। के अभियान के प्रति आकर्षित विद्यार्थी-कार्यकर्ता थे और हमने भी इसे दिनमान में ही पढ़कर रोमांचित महसूस किया था।
रेणु जी 7 जुलाई से अपने गाँव[5]में थे और आन्दोलन के अगले चरण की तैयारी कर रहे थे। 1 अगस्त को फारबिसगंज जनसंघर्ष समिति के आवाहन पर सामूहिक उपवास किया गया। इसके बाद इलाके में अभूतपूर्व बाढ़ आ गयी। यह योजना बनी कि छात्र एवं जनसंघर्ष समिति के सदस्य आन्दोलन के साथ ही राहत का भी कार्य करें। इस प्राकृतिक प्रकोप से पीड़ितों को राहत दिलाने के लिए फारबिसगंज के लायंस क्लब के सहयोग से करीब पच्चीस हजार रुपए इकट्ठे किए गये और रेणुजी स्वयं छात्रों की एक टोली के साथ नरपतगंज के संकटग्रस्त क्षेत्र में पहुंचे। जोगबनी, कुसुमादा, अमहारा, रमई आदि क्षेत्रों में पुराने तथा नए कपड़े, घाव की दवाइयां, चूड़ा, चना, किरासन तेल, दियासलाई के डिब्बे आदि सामग्रियों का वितरण करवाया। यह राहत कार्य 9 अगस्त के प्रदर्शन के दौरान रेणु जी के गिरफ्तार किए जाने के बाद भी कार्यकर्ताओं द्वारा जारी रहा। हालांकि अधिकारी और पुलिसवालों के छात्र-स्वयंसेवकों के पीछे पड़े हुए थे और बाधा डाल रहे थे।
इसी बीच सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के कार्यक्रम के अनुसार 9 अगस्त को ‘अंग्रेजो, भारत छोडो आन्दोलन’ की जयंती पर एक विशाल जुलूस का आयोजन किया गया। इसमें करीब ढाई हजार प्रदर्शनकारी शामिल हुए। जब रेणुजी इस जुलूस को लेकर प्रखंड विकास कार्यालय की ओर अपनी मांगों का ज्ञापन देने जा रहे थे तभी सीताधर पुल (रानीगंज रेणु ) पर स्थानीय पुलिस दारोगा और इंस्पेक्टर केन्द्रीय रिजर्व पुलिस की टुकड़ी के साथ इस तरह खड़े थे मानों प्रदर्शनकारी स्त्री-पुरुष पुल तोड़ने या उड़ाने जा रहे हों। पुल के पास पहुँचते ही अगली पंक्ति पर लाठियों से प्रहार हुआ और रिक्शा गाड़ियों को इस तरह धकेल दिया कि रिक्शा पुल के नीचे अथाह जल में गिरते गिरते बचे। रिक्शा चालक जहूरी यादव और नारे लगानेवाले साथी रमाशंकर गुप्ता को लाठी से चोट लगी।
रेणुजी लिखते हैं कि, “ हमने आगे बढ़कर पुलिसवालों को रोका और कहा “ आप यह क्या कर रहे हैं? लाठी चार्ज क्यों करवा रहे हैं?” दारोगा ने मुझसे कहा, “ जुलूस यहाँ से आगे नहीं बढेगा।”
“क्यों आप हमें बी। डी। ओ। से मिलने नहीं देंगे? आप देख नहीं रहे हैं कि जुलूस में दर्जनों बच्चे हैं, बूढ़ियाँ हैं। इनसे आपको क्या खतरा है? ये सभी बाढ़ पीड़ित हैं और इन्हें बी।डी।ओ। से फ़रियाद करनी है।”
पुलिस दारोगा ने कहा, “ आपको नहीं मालूम कि धारा 144 लागू है?”
“मालूम है। और आपको यह नहीं मालूम कि सारा इलाका बाढ़ से पीड़ित है? हम तो जुलूस ले कर आगे बढ़ेंगे, आप लाठी चलायें या गोली।”।।।
इसके बाद रेणुजी ने अपनी अनूठी शैली में लिखा कि, “ इसके बाद हम आगे बढे। करीब 30-40 मिनट तक गुत्थमगुत्थी और घेरघार होता रहा। अन्तत: वे हमें रोकने में असमर्थ रहे। हम जब ब्लाक आफिस पहुंचे तो वहाँ पहले से ही मुख्य द्वार पर सी।आर।पी। ऍफ़। के जवान तैनात थे। फिर वही रस्साकशी शुरू हुई। अन्त में मैं अन्य छह साथियों (श्री लालचंद साहनी, सत्यनारायण लाल दास, शिव कुमार नेता, जयनंदन ठाकुर, रत्नेश्वर लाल दास, एवं रामदेव सिंह) के साथ अंदर बी.डी.ओ. के दफ्तर में पहुँचा। हमारे साथियों ने कार्यालय में जनता का ताला लटकाया और हमने बी.डी.ओ. से कहा कि बाढ़ से सारा इलाका तबाह है और आप सिर्फ ‘ला एंड ऑर्डर’ मेंटेन कर रहे हैं? हमने अपनी माँग उनके सामने रखी तो वह बोले कि आप लोग मिल कर खाली कांग्रेस को बदनाम करने का काम कर रहे हैं। आप यह जान लें कि महंगाई और भ्रष्टाचार को कोई भी पार्टी और कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, नहीं मिटा सकता।”
“हमने उनसे बात करना फिजूल समझा और हमने एलान किया कि हम आपका कोई भी काम नहीं चलने देंगे और हम अपने साथियों सहित धरना पर बैठ गये। पुलिस दारोगा ने आगे बढकर कहा, “ हमने आप लोगों को गिरफ्तार किया।”
“हम गिरफ्तार हो गये। किन्तु बाहर प्रदर्शनकारी प्रखंड के मुख्य द्वार को घेर कर खड़े रहे, जिसमें सात साल के बच्चे और पचहत्तर साल की बूढ़ी औरत भी थी। प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे, “हमारे नेताओं को रिहा करो या हमें भी गिरफ्तार करो।” पुलिस ने उन्हें खदेड़ने की बहुत चेष्टा की किन्तु वे अडिग रहे। अन्तत: पुलिस ने 205 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया जिसमें 27 औरतें भी (गोद में बच्चे लेकर) थीं। एक ट्रक, एक बस और एक जीप में भरकर हमें फारबिसगंज थाना ले गये… हमने अपने कान से बिहार पुलिस के जवानों को आपस में बात करते सूना, “यह तो जुल्म है। हमें तीन सौ, ढाई सौ महीना देंगे ये, चावल तीन रूपये किलो है। ये लड़के ठीक ही तो कर रहे हैं। अफसर लोग चलावें इन पर लाठी, हमसे तो यह पाप नहीं होगा।”।
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रेणुजी और अन्य आन्दोलनकारी नौ अगस्त को दिन में करीब ढाई बजे गिरफ्तार किये गए। वहाँ से अररिया 9 बजे रात को पहुँचाए गए। लेकिन अररिया के जेलर ने इनलोगों को लेने से इनकार किया क्योंकि इतने लोगों को गिरफ्तारी में रखने की जगह नहीं थी। इसके बाद इन सबको पूरी रात खुले में पुलिस क्लब के भीगे मैदान में घेर कर रखा गया। पुलिस ने खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं की। बल्कि सभी लोगों को सी।आर।पी।ऍफ़। के घेरे में छोड़कर चले गए। तब सबने रात के डेढ़ बजे फैसला किया कि आन्दोलनकारी एस.डी.एम्. के घर पहुँचकर प्रदर्शन करें। इस पर इन्हें फिर घेरा गया। भोजन तथा पानी की माँग की गयी। लेकिन कोई इंतजाम नहीं हुआ। तीन बजे रात अररिया के एस।डी।ओ। तथा सहायक पुलिस सुपरिटेंडेंट दलबल सहित पहुंचे। रेणुजी समेत 14 लोगों को अलग किया। बाकी लोगों को जबरदस्ती बसों में धकेल कर फारबिसगंज भेज दिया। इसके बाद यह अधिकारीगण फिर गायब हो गए ! रेणुजी आदि रात भर वहीँ बैठे रखे गए। सुबह नारेबाजी करने पर एक पुलिस दारोगा आ कर बोला कि इन सभी लोगों को तुरंत पूर्णिया भेजा जा रहा है। लेकिन 11 बजे तक अधिकारीगण फिर गायब रहे। अपरान्ह 1 बजे सबका वारंट तैयार करा दिया गया और चलने को कहा। मजिस्ट्रेट के सामने हाजिर किये बिना वारंट पर दस्तखत कराने के एतराज की कोई सुनवाई नहीं हुई। सबको पकड़ कर खुले ट्रक में चढ़ाया गया। सभी 10 अगस्त को अपरान्ह 4 बजे पूर्णिया जेल पहुंचे। रेणुजी समेत सभी पर चार – चार वारंट और दस-दस दफाएँ लगायीं गयीं थीं।
इस पत्र में रेणु जी ने अन्तिम बात के रूप में क्या लिखा था ? रेणु जी ने जेपी को चिट्ठी के अन्तिम पैरा में लिखा कि, “मेरा स्वास्थ्य ठीक ही है। यों, पिछले एक सप्ताह से मेरा पेप्टिक दर्द का दौर शुरू हुआ है। फिर भी मैं मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ हूँ। जेल की बात? कुछ दिन पहले जुगनू[6] ने मुझसे कहा था कि गुलाम भारत के जेल और स्वतन्त्र भारत के जेल में काफी अन्तर है। सचमुच पूर्णिया जेल मौजूदा भारत का असली नमूना है, जिसमें आदमी भी जानवर बन जाए। एक हजार एक सौ बासठ कैदियों में शायद एक भी व्यक्ति स्वस्थ नहीं है। शायद नरक ऐसा ही होगा…1942 और 1974 में इतना अन्तर?”
इसके बाद क्या हुआ? 10 अगस्त को फारबिसगंज बाजार पूरी तरह बन्द रहा। नरपतगंज प्रखंड आफिस में तालाबंदी हुई। फारबिसगंज में दो छात्रनेताओं मोहन यादव और अशोक दास को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बावजूद आन्दोलनकारियों ने यह फैसला लिया कि पुलिस जुल्म के खिलाफ 13 अगस्त को फारबिसगंज में 8 चौराहों पर 12 घंटे का अनशन किया जायेगा। 15 अगस्त को काला दिवस मनाने का भी निर्णय हुआ।
जयप्रकाश जी ने भी तत्काल 14 अगस्त को रेणु जी को उत्तर लिखा : ” पत्र पढ़कर बड़ा उत्साहित और भविष्य के लिए आशान्वित हुआ। आपके पत्र से जहाँ एक ओर यह प्रकट होता है कि यह शासन कितना नीचे उतर सकता है, वहाँ दूसरी ओर यह सिद्ध होता है कि जहाँ भी जनता को सही नेतृत्व मिलता है, वहाँ वह कितना ऊंचा उठ सकती है और तब वह क्या नहीं कर सकती है। आपके पत्र से एक बात और प्रकट होती है कि यदि शासन के कुछ अधिकारी जैसे फारबिसगंज के बीडीओ शासन की भ्रष्ट नीतियों के कट्टर समर्थक बने हुए हैं तो दूसरी ओर पुलिस के सिपाही तथा अन्य गरीब तबके के अधिकारी हृदय से इस क्रांतिकारी संघर्ष के साथ हैं क्योंकि वे इसमें अपनी भी मुक्ति देखते हैं। इनमें से कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो मारपीट और बर्बरता के अन्य काम कर डालते हैं परन्तु इमरा विश्वास है कि सरकारी क्षेत्र का गरीब वर्ग दिल से हम लोगों के साथ हैं – आज भले ही उन्हें अपने पेट के लिए गुलामी करनी पड़ती हो…”
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रेणु जी को पूर्णिया जेल की दुर्दशा मथती रही। रेणु जी को जेल में चलने वाले भ्रष्टाचार की सूचना देनेवाले भुवनेश्वर कामती नाम के नौजवान हवालाती को बुरी तरह पीटा गया और कई दिनों तक उसे डंडा-बेडी लगी रही। रेणु जी को पेट के अल्सर की गंभीर बीमारी थी इसलिए शाम को डबल रोटी मिलती थी, वह बन्द कर दी गयी। बड़ी संख्या में छात्र और युवक उनसे मिलने गए तो जेल अधिकारियों ने गाली-गलौज की। रेणु जी ने पत्र लिख कर कलक्टर मिलने के लिए समय माँगा। लेकिन वह पत्र जेल में ही रोक लिया गया। इस सबके विरुद्ध रेणु जी ने 8 सितम्बर को अनशन प्रारम्भ कर दिया। रेणु जी के वकील श्री प्रणव चटर्जी ने 9 सितम्बर को एक रिट अर्जी दी कि रेणु जी को गिरफ्तारी के बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया। उनके जैसे राष्ट्रीय ख्याति के लेखक को पुलिस ने ‘पुराना अपराधी’ बताया है। श्री प्रणव चटर्जी ने इस दरखास्त में यह भी लिखा कि उनकी गिरफ्तारी संविधान की धारा 22 (2) का उल्लंघन करती है।
रेणु जी की गिरफ्तारी से देश भर में बुद्धिजीवियों और पाठकों में विरोध का तूफ़ान पैदा हो गया। सिर्फ देश की राजधानी से प्रकाशित ‘दिनमान’ के 8 सितम्बर, 15 सितम्बर और 22 सितम्बर 1974 के अंकों के ‘मत-सम्मत’ स्तम्भ (पाठकों के पत्र) में ही सैकड़ों लोगों के व्यक्तिगत और सामूहिक निंदा – वक्तव्य छपे। एक तरफ विष्णु प्रभाकर (दिल्ली), नन्द चतुर्वेदी (उदयपुर), हरिशंकर परसाई (जबलपुर), और शलभ श्रीराम सिंह (कलकत्ता) जैसे वरिष्ठ साहित्यकार और दूसरी तरफ केशवराव जाधव (हैदराबाद) और शिवपूजन सिंह (डालमियानगर ) जैसे समाजवादी नेताओं ने इसकी सख्त आलोचना की। दूसरी तरफ वाराणसी, सतना, अल्मोड़ा, पठानकोट, इटारसी, दमोह, घुसुड़ी, कायस्थपुरा, पटना, भीलवाड़ा, सीकर, बड़नगर आदि से साधारण पाठकों की नाराजगी की चिट्ठियां छपीं। जनवादी लेखक संघ और प्रगतिशील लेखक संघ जैसे महत्वपूर्ण साहित्यिक संगठनों से लेकर ‘द्विमासिकी’ (रतलाम) और क्रांतिकारी युवा मंडल (पठानकोट) जैसे मंचों से विरोधपत्र आये। हैदराबाद, जयपुर, जोधपुर, रतलाम और मुज़फ्फरपुर के लेखकों-लेखिकाओं द्वारा भेजे सामूहिक निंदा वक्तव्य भी थे।
जेल से बाहर आने पर रेणु जी ने कहा कि, “जेल जाने के बाद से ऐसा मालूम होता है कि मेरी उम्र 25 साल कम हो गयी है। अफ़सोस होता है कि बहुत पहले ही जेल क्यों नहीं गया। शायद तब मेरा लेखक और जीवन्त होता।”[7]
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‘रेणु’ जी की जन्मशताब्दी वर्ष में उनकी प्रेरक स्मृति को सादर नमन!
[1] देखें: ‘डेट लाइन पाटना – चार थेके आठारो नभेम्बर ‘ (बिहार आन्दोलन -१९७४ (खंड १) सम्पादक – महेंद्र नारायण कर्ण (२०१६) (पटना, बिहार अभिलेखागार निदेशालय) पृष्ठ ३६८-३६९
[2] देखें: ‘समाज को बदलना है’ (१८ नवम्बर, १९७४ को गांधी मैदान में जेपी का भाषण.), बिहार आन्दोलन – १९७४ (खंड १ – जनता आती है) (२०१६) (सम्पादक: महेंद्र नारायण कर्ण ) (पटना, बिहार राज्य अभिलेखागार निदेशालय) पृष्ठ २७४
[3] भारत यायावर (सं.)(२००७) रेणु रचनावली (दिल्ली: राजकमल प्रकाशन)
[4] देखें: बिहार आन्दोलन – १९७४ (२०१६) (पूर्वोक्त) पृष्ठ १८२-१८६
[5] औराही हिंगना ग्राम (फारबिसगंज, बिहार)
[6] समाजवादी युवजन नेता श्री जुगनू शारदेय.
[7] वही; २३१-२३२
लेखक प्रख्यात समाजशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं|
सम्पर्क- +919650944604, anandkumar1@hotmail.com.
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बहुत सुंदर