परिवर्तन का आगाज
अब तक आपने पढ़ा :मंडल जी पत्रकारों के सामने अपनी जिन्दगी के पन्ने पलट रहे हैं। इसी क्रम में अब आगे:-
परिवर्तन का आगाज
आज रामू के दोस्त ने फोन करके रामू को बताया कि उसके चाचा के लड़के प्रियांशु ने मेडिकल कॉलेज में एडमिशन की खुशी में शानदार पार्टी दी थी। सुनते ही रामू के जख्म हरे हो गये। गुस्से में रामू ने पास पड़ी कुर्सी को लात मारी कुर्सी वहीं पर लुढ़क पड़ा। मंडल जी ने चिंता से पूछा- “किसका फोन था, इतने गुस्से में क्यों हो?” रामू ने कहा- “चाचा का लड़का प्रियांशु नीट का परीक्षा क्लियर किया और इस खुशी में पार्टी दे रहा है। उ बन जायेगा डॉक्टर और हम रह जाएंगे बेचारा बेरोजगार किसान, अरे जितनी पढ़ाई की सुविधा उसको मिली है जो हमको मिल जाती तो हम भी कम्पीट करके दिखा देते हैं वह भी बगैर आरक्षण कोटा का मदद लिए। ये सम्पन्न लोग हम जैसे गरीबों की हकमारी करते हैं, बताइए क्या जरूरत है उसे आरक्षण की! शहर के सबसे अच्छे स्कूल से पढ़ाई करता है, ऊपर से कोचिंग भी और जो दो बिषय में कमजोर था उसके लिए अलग से शिक्षक उसे पढ़ाने आते थे। उसे क्या जरूरत है आरक्षण की। आरक्षण तो हम लोगों को मिलना चाहिए जो ऐसे सरकारी स्कूल में पढ़ता है जिसका शिक्षक जो दो लाइन अंग्रेजी तक शुद्ध शुद्ध नहीं लिख सकता। उसको पढ़ाने के लिए दो मास्टर आता है। और यहाँ पर हम दो दो जगह ट्यूशन पढ़ाते हैं ताकि किताब कॉपी का खर्चा निकल सके।”
मंडल जी ने शान्ति से कहा- “बात तो तुम सही कह रहे हो बेटा, उनका आरक्षण बंद हो तब तो आरक्षण की रोशनी हम तक पहुंचे। पर क्या करें, मजबूर हैं। हम तो इसे सरकारी स्कूल से पढ़े पर तब इतनी बुरी पढ़ाई नहीं थी पर अब तो सच में बुरे हालात हैं। दोष तुम्हारा नहीं,दोष तो मेरी गरीबी का है। अच्छा तुम फिक्र नहीं करो,तुम्हें इस बार बाई जू के कोचिंग सेंटर में डालेंगे और जी जान से खेती कर के पैसे का जुगाड़ करेंगे। ” रामू, “पर मेरा तो इस चक्कर में दो साल बर्बाद हो जाएगा।” फिर उसने खुशामद भरे लहजे से कहा, “पापा चाचा तो डॉक्टर हैं, उन्हें पैसे की कोई कमी भी नहीं है। क्या वे हमारी मदद नहीं कर सकते? एक बार चाचा जी से मुझे मिलवाइये ना, हो सकता है कि वे हमें पैसों से मदद करने के लिए मान जाये,फिर फसल बिकते ही हम उनका पैसा चुका देंगे।” मंडल जी ने अनुमान लगाते हुए कहा, “ वह मानेगा तो नहीं, पर हाँ तुम्हारी जिद पूरी हो जाएगी।” मंडल जी के चाचा सरकारी डॉक्टर थे। उनके सरकारी क्वार्टर के अंदर उनकी चमचमाती कार दिख रही थी। दरबान ने मंडल जी का नाम पता पूछा फिर वापस आकर कहा, “चलिए साहब बुला रहे हैं।” ड्राइंग रूम में हर चीज करीने से सजा हुआ था। लगभग 10 मिनट बाद डॉक्टर साहब आये। रामू ने पाँव छूकर प्रणाम किया। डॉक्टर साहब के चेहरे पर प्रसन्नता का कोई भाव नहीं दिखा। पूछा, “सब खैरियत तो है, अचानक से कैसे आना हुआ?”
मंडल जी डॉक्टर साहब से उम्र में बड़े थे। पर डॉक्टर साहब ने औपचारिकता वस भी प्रणाम नहीं किया था। मंडल जी फिर भी चेहरे पर न केवल मुस्कान बनाए रहे बल्कि डॉक्टर साहब को ही खुद से प्रणाम भी किया था। प्रत्युत्तर में डॉक्टर साहब ने भी हाथ जोड़ लिए थे। मंडल जी ने कहा, “बस रामू आपसे मिलने की जिद कर रहा था सो इसे लेकर आया।” रामू चाह तो रहा था कि उसके पापा ही इस विषय में बात करें, पर बात उसे ही करनी पड़ी, “गांव की स्कूल में पढ़ाई अच्छे से होती नहीं तो सोचा कोचिंग सेंटर में ट्यूशन पढ़ कर नीट की तैयारी कर लूँ। यदि आप इस साल मदद कर देते तो अगले साल फसल बिकने के बाद हम पैसे वापस कर देते।” डॉक्टर साहब इस मुसीबत से बच निकलना चाहते थे, “क्यों एजुकेशन लोन ले लो, जमीन के कागज गिरवी रखकर एजुकेशन लोन तो लिया ही जा सकता है।” तब तक डॉक्टर साहब के एक मित्र भी आ चुके थे। डॉक्टर साहब ने अभी तक इन लोगों को बैठने के लिए नहीं कहा था। पर मित्र के आते ही उसे बाहों में लेकर सोफा पर बैठाया, बगल में खुद भी बैठ गये।
बेइज्जती काफी हो चुकी थी। पिता पुत्र दोनों बाहर निकल आये। निकलते निकलते चाचा की बात सुनाई पड़ी जो शायद वे अपने मित्र को कह रहे होंगे या फिर यह उन का स्वगत कथन हो, जो भी हो पर बड़ी कड़वी बात कही उन्होंने, “हर कुत्ता काशी ही चला जाएगा तो गली का पत्तल कौन चाटेगा!” “यानी वह गली का कुत्ता।” आज उसकी इच्छा हो रही थी कि वह जमकर स्कूल को, सरकार की नीतियों को कोसे पर इससे क्या हो सकता था! उसने पापा को कहा, “मजदूर ना मिले ना सही, पापा पढ़ाई के साथ साथ मैं खेत पर भी मेहनत करूंगा पर ऐसा फसल उगाउँगा कि कोचिंग सेंटर का खर्च निकल आये।” मंडल जी उसके चेहरे पर आते जाते भावों को देख रहे थे। आरक्षण का मसला और क्रीमी लेयर दोनों बातें उनके दिमाग में चल रही थी। बेटे से बोले, “सरकार की नीतियों में बदलाव की जरूरत है। यदि क्रीमी लेयर दो लाख सालाना पर खत्म हो जाता तो केवल उन बच्चों के बीच कंपटीशन होता जो सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए बाध्य हैं,फिर डीपीएस के बच्चों के साथ,सरकारी स्कूल के बच्चों को कंपेटिसन ही नहीं करना पड़ता।” रामू के तमतमाये चेहरे पर अब थोड़ी नरमी दिखी, “सही कहा आपने पापा, भैया लोग जो शोध कर रहे हैं उस पत्र में इस प्रस्ताव को क्या शामिल नहीं किया जा सकता?” मंडल जी ने आश्वासन दिया, “हाँ हाँ, क्यों नहीं, उन लोगों से बात करके देखते हैं।”
अगले दिन दालान में चाय नमकीन के साथ साथ जो बातें हो रही थी उसमें आज रामू अपनी मर्जी से शरीक हुआ था। राजेश और सत्यार्थी के शोध ग्रंथ भी लगभग तैयार हो चुके थे और रामू की बातों को राजेश ने धैर्य पूर्वक सुना था और एक स्पायरल के अंदर करीने से रखे पेपर्स में उसने कई बातों को नोट भी किया था। रामू अपने सारे विचार रख चुका था और आगे वह जानना चाह रहा था कि शोध ग्रंथ के द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर सरकार कब विचार करेगी। पर सत्यार्थी की बातें निराशाजनक थी, “सरकार तक तो शायद यह शोध ग्रंथ पहुंचेगा भी नहीं। बस यूनिवर्सिटी के किसी अलमीरा में धुल फांकता रहेगा और हमें एक अदद डिग्री थमा दी जाएगी और फिर हम भी नॉकरी खोजने के चूहा दौर में शामिल हो जाएंगे।”
रामू का उत्साह से खिला फूल जैसा चेहरा यह सुन कुम्हला गया। मंडल जी ने बात संभाली, “परेशान मत हो, देखो ये तो विद्यार्थी हैं, शोध तैयार करने के बाद इनका काम समाप्त हो जाएगा। पर मैं भारती जी से बात करूँगा, जो शोध करवा रहे हैं। उनसे मिलकर ही पता चलेगा कि इस शोध ग्रंथ का क्या उपयोग उन्होंने सोच रखा है। इसे लेकर उनका जरूर कोई प्लानिंग होगा। राजेश की तरफ देखते हुए उन्होंने पूछा, “क्या राजेश, क्या कहते हो?” राजेश ने बात संभालते हुए कहा, “हाँ बिल्कुल, उनके मन में जरूर कुछ होगा।” रामू की चेहरे की मलिनता थोड़ी कम हो गई थी। मंडल जी ने कहा था, “आज यह दोनों यहाँ से चले जाएंगे। मैं इन्हें छोड़ कर आता हूं। फिर हम विचार करेंगे कि इस साल क्या फसल उगाई जाए।”
बाहर आकर मंडल जी ने पूछा, “इस शोध कार्य का क्या सचमुच कुछ नहीं होना है?” राजेश समझ गया कि इस शोध ग्रंथ से कहीं ना कहीं मंडल जी की भावनाएं और उम्मीद भी जुड़ चुकी थी। सत्यार्थी ने जो कुछ कहा शायद यही हकीकत थी पर राजेश ने कहा, “हमें तो बस शोध करने के लिए कहा गया था। इससे क्या फायदे होंगे, ईमानदारी से कहूं तो मुझे भी पता नहीं।” मंडल जी ने गंभीरता से कहा, “पर मैं सच में जानना चाहता हूं, जिन बातों का प्रस्ताव तुमने शोध ग्रंथ के माध्यम से रखा है उस पर अमल किया जाए तो देश और समाज सचमुच में तरक्की की राह पर चल निकलेगा।” राजेश ने मंडल जी की आंखों में झांकते हुए कहा, “यदि आप चाहे तो हम आपको भारती जी से जरूर मिलवायेंगे और खुद हम भी जानना चाहेंगे कि शोध ग्रंथ के इन प्रस्तावों का, इन विचारों का का होता क्या है?