कथा संवेद

कथा संवेद -3

 

इस कहानी को आप कथाकार की आवाज में नीचे दिये गये वीडियो से सुन भी सकते हैं:

 

भालचन्द्र जोशी की कहानी ‘सपने का टुकड़ा और चमड़े का बैग’ में सपना एक बहुलार्थी शब्द की तरह प्रयुक्त हुआ है। कहानी के अलग-अलग पात्रों की आँखों में पलने वाले ये सपने जितने निजी और स्वपनिल हैं उतने ही सार्वजनिक और यथार्थपरक भी। पाश ने कहा था- ‘सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना’। आज का समय उससे भी एक कदम ज्यादा खतरनाक हो चुका है, क्योंकि वह सपना जो कभी देखने और पूरा करने की चीज़ हुआ करता था, जिसका रास्ता संघर्ष की पगडंडियों से गुजरता था, अब खरीद-फरोख्त की वस्तु में बदल चुका है। इस कहानी में स्वप्न के इन दोनों स्वरूपों की टकराहटों से उपजी ध्वनियाँ बहुत साफ सुनी जा सकती हैं। सपने के टुकड़े के गुम हो जाने की प्रतीकात्मकता जिस आवृत्तिमूलक बालाघात के साथ इस कहानी के स्थापत्य को खड़ा करती है, उससे अमूर्त भी मूर्तिमान हो उठता है। कल्पनाशीलता का एक ऐसा लालित्य जो पल भर को भी वास्तविकता की जमीन नहीं छोड़ता इस कहानी को पठनीय और मानीखेज एक साथ बनाए रखता है। परिहास और विडम्बना के धागों से बुने संवादों तथा पात्रों की मनःस्थितियों से गुजरते हुये पाठक जिस तरह अपने हिस्से के गुम हो चुके सपनों की तलाश करने लगता है, वह इस कहानी की बड़ी सफलता है।

राकेश बिहारी

rakesh bihari

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सपने का टुकड़ा और चमड़े का बैग

 भालचन्द्र जोशी

वह पिछले दो दिन से परेशान था। किसी को कुछ बता भी नहीं रहा था। आखिरकार एक दिन उसके पिता ने उसे रोक लिया।

-‘‘क्या बात है बेटा, क्यों परेशान है। मुझे बताओ शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ।’’

-‘‘नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं है।’’

-‘‘बात तो है, तू पिछले दो दिन से परेशान दिख रहा है। क्या खोज रहा है तू? क्या गुम हो गया है?’’

कुछ देर चुप रहा फिर आहिस्ता से बोला, -‘‘मेरे सपने का एक टुकड़ा गुम हो गया है। बहुत कीमती है।’’ वह उदास हो गया।

पिता उसे अचरज से देखने लगे। –‘‘बेटे सपने टूटते हैं। भूला दिए जाते हैं लेकिन गुम नहीं होते और सपने का टुकड़ा भला कैसे गुम हो सकता है?’’

-‘‘मैं जानता था, आप भरोसा नहीं करेंगे। ये सपना नहीं था जो हम देखकर भूल जाते हैं। यह वह सपना था जिसे मैं सँभाल कर रखता था, उसी का एक टुकड़ा गुम हो गया है।’’

पिता के चेहरे पर अब दुख आ गया। बहुत दुखी होकर बोले, -‘‘ऐसा नहीं होता बेटा।’’

-‘‘होता है पापा!’’ लड़के के चेहरे पर भी लाचारी आ गयी कि कैसे समझाए?

-‘‘अच्छा बताओ क्या था उस टुकड़े में?’’ पिता ने भी उसी लाचारी से कहा।

-‘‘मालूम नहीं, अब याद नहीं लेकिन……।’’

-‘‘फिर तुम कैसे कहते हो कि सपने का टुकड़ा गुम हो गया?’’

-‘‘पापा! सपने का वजन कम हो गया है। सपना अधूरा हो गया है। सबसे बड़ी बात तो यह कि उसकी चमक कम हो गयी है, सपने के उस टुकड़े से ही सपने की चमक कायम थी।’’ कहकर लड़का फिर उदास हो गया। पिता के चेहरे पर भी उदासी आ गयी। हवा में उदासी घुल गयी, हवा भारी हो गयी। लड़का सभी दूर खोज चुका था। इतना मूल्यवान टुकड़़ा भला वह कैसे लापरवाही से कहीं रखकर भूल गया। उसे खुद पर गुस्सा आने लगा। हालाँकि टुकड़ा इतना चमकदार है कि कहीं, किसी कोने में होगा तो आसानी से नजर आ जाएगा। वह हर देखी-भाली जगह को भी दुबारा देखता रहता था। उसका मन विचलित था। वह अलमारी भी रोज टटोलता था कि शायद आज वहाँ रखा दिख जाए। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। टुकड़ा नहीं दिखा। कहीं ऐसा तो नहीं कि सपने का टुकड़ा अपनी चमक खो रहा हो और उसे दिखाई नहीं दे रहा हो? यह सोचकर वह अलमारी फिर टटोलने लगा। सारे कपड़े बाहर निकालता और फिर से जमाता। ऐसा वह रोज करता। कभी थकता भी नहीं। यहाँ तक कि चोरी छिपे वह पिता की अलमारी भी टटोल चुका था। कीचन के डिब्बे भी खँगाल चुका था। सपने का टुकड़ा नहीं मिला।

कॉलेज से लौटते हुए उसने लड़की से पूछा, -‘‘एक बात पूछना चाहता था, गलत मत समझना।’’ लड़की चलते हुए ठिठक गयी और बोली, -‘‘पूछो, ऐसी क्या बात है?’’

-‘‘मुझे अपने सपने का टुकड़ा नहीं मिल रहा है।’’ लड़का उदास होकर बोला।

-‘‘क्या? कहाँ रख दिया, कोई विशेष था?’’

-‘‘हाँ, बहुत विशेष। बहुत खूबसूरत बहुत चमकीला।’’

-‘‘तुम इतनी मूल्यावान चीज भी सँभालकर रख सकते हो?’’ लड़की ने उलाहना दिया। लड़का अपराधी-सा चुपचाप खड़ा रहा। उसके चेरे पर एक फीकी उदासी अभी भी थी।

-‘‘मैं अपने सारे सपने सँभाल कर रखती हूँ। तुम एक टुकड़ा नहीं सँभाल पाए?’’ लड़की ने फिर उलाहना दिया। लेकिन इस बार उसके स्वर में सहानुभूति भी थी।

-‘‘मैं तुमसे वही पूछना चाहता था। मैं तुम्हारे पास तो नहीं भूल गया अपने सपने का टुकड़ा?’’ लड़के का सपना गुम हुआ था लेकिन उदासी सँभाल कर रख ली थी।

-‘‘मेरे पास होता तो मैं तुम्हें अभी तक बता देती या लौटा देती।’’ वह दुलार के साथ बोली, -‘‘तुम चिन्ता मत करो, मिल जाएगा। तुम्हारे सपने के टुकड़े को कोई क्या करेगा। हर कोई अपने ही सपने सँभालने के श्रम में लगा है।

दोनों चुपचाप सड़क से हटकर बगीचे में आकर बैठ गये। काफी देर बैठे रहे। लड़की उसे दिलासा देती रही। शाम किसी चोर सपने की भाँति बगीचे में दाखिल हो रही थी। लड़के ने देखा, सामने बगीचे की चहारदीवारी पर एक मकान की खिड़की पर एक लड़की खड़ी थी। वह उसे ही देख रही थी। उसके चेरे पर एक चोर मुस्कान थी। एकाएक लड़के को खयाल आया कि कहीं इस लड़की ने तो उसके सपने का टुकड़ा नहीं चुराया? वह अक्सर इस बगीचे में आकर बैठता था। हो सकता है, कभी किसी दिन जल्दी में वह अपना सपना यहाँ भूल गया हो और इस लड़की ने उसका एक टुकड़ा चुरा लिया हो। लड़कियाँ सपने चुराने में दक्ष होती हैं। दूसरों के सपनों पर ही उनकी नजर होती है। दूसरों के सपना में ही वे अपने सपने पूरे करती हैं। फिर लड़के को अपने इस दुष्ट विचार पर दुख हुआ। उसे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। लड़कियाँ तो लड़कों की अपेक्षा बड़े सपने देखती हैं। विशाल और असम्भव से सपने भी देख लेती हैं। लड़कियाँ सपनों के ढेर इकट्ठे हो जाने से दुखी होती है। वह विशाल सपनों की छाया में बैठकर पुलकित होती हैं फिर बाद में ढेर में वह सपना टूट जाता हैं, खंडित हो जाता है तो दुखी होती हैं। लड़कियाँ सपनों को लेकर दुखी होती हैं लेकिन वे सपने भी दूसरे होते हैं और दुख भी दूसरे होते हैं। लड़कियों के सपने कभी गुम नहीं होते हैं। लड़के लापरवाह होते हैं लड़कियाँ नहीं। लड़कियाँ अपने सपनों में तो रहती हैं लेकिन दिलचस्प बात यह है कि वे दूसरों के सपनों में भी मौजूद होती हैं। इसलिए उनके सपने बड़े वजनदार और ज्यादा चमकीले होते हैं। बस इतना होता है कि लड़कियों के सपनों की चमक अक्सर खत्म हो जाती है। फिर सिर्फ उसे नजर आते हैं, दूसरों को नहीं।

लड़के ने लड़की की ओर देखा, वह उसे ही चिंतित भाव से देख रही थी। लड़के ने सोचा, यह लड़की सपनों में सोती है, सपनों में जागती है और सपनों में जीती है। कितनी खतरनाक स्थिति में रहती है? यह तो तनी हुई रस्सी पर चलने जैसा है। ऐसे लोग जब सपनों से बाहर आते हैं तो दुनिया ही बदली हुई नजर आती है। सपनों से भिन्न। फिर भी इस लड़की का हौंसला कितना बड़ा है कि वह सपनों में निरन्तर आवाजाही करती रहती है। लड़कियाँ निश्चित रूप से लड़कों से ज्यादा साहसी होती हैं।

-‘‘ज्यादा मत सोचो!’’ लड़की ने कहा, -‘‘न मिले सपने का टुकड़ा तो कोई दूसरा टुकड़ा जोड़ लेना। कोई दूसरा सपना रोंपकर उसे नींद से सींचना शुरू कर दो।’’ लड़की की आवाज में तरल दिलासा था। लड़कियाँ दिलासा देने में माहिर होती हैं। चाहे फिर दिलासा खुद को ही क्यों न दिया जाए। इसीलिए ये हर परिस्थिति से जल्दी बाहर आ जती हैं। लड़कियाँ अपने सपनों का भार उठा सकती हैं लड़के नहीं। लड़कियाँ दुनिया से अपने सपने छिपाकर रख सकती हैं।

लड़का दुखी था इसलिए परेशान नजर आ रहा था। लेकिन लड़की की संगत में वह अपनी परेशानी से बाहर आ जाता है। लड़की की आवाज में जितनी तरलता है उतना ही चेहरे पर नमक है। वह भाषा में मुखर है लेकिन भाव में चोर है। वह किसी बात पर एक बड़ी, चैड़ी मुस्कान मुस्काती है तो लगता है कि खिलखिलाएगी भी, लेकिन वह ऐसा नहीं करती, खासकर तब जब वह ऐसा सोचता है। वह हँसी चोर भी है। अपनी ही हँसी चुरा लेती है। उसने कई बार लड़की को समझाया कि हँसी चुराना अच्छी बात नहीं। क्या करती हो हँसी चुराकर? ऐसी बात पर वह हँस देती है। जिन बातों पर उससे गंभीर जवाब की अपेक्षा रहती है वह हँस देती है। अलबत्ता लड़की उसके सपनों में खूब हँसती है। लड़की सपनों में निद्र्वन्द्व हो जाती है। अचरज यह है कि सपनों में इस लड़की को पंख लग जाते हैं। उसकी उड़ान ऊँची हो जाती है और खुली-खुली। लड़की उसके सपनों में चिड़िया-सी चहकती है। उसकी हँसी में एक तरह का कलरव शामिल हो जाता है। वह बोलते हुए चहकती है और चहकते हुए बोलती है। सपनों में भी लड़की की आँखों में सपनों की छाया होती है। लड़की सपनों से अलग नहीं होना चाहती थी।

लड़के ने देखा, दूर खिड़की पर खड़ी लड़की अब भी खड़ी है और इधर देख भी रही है। अब उसे लगा कि वह उसे नहीं बगीचे के फूलों को देख रही है। यह भी हो सकता है कि खिड़की में खड़ी लड़की बगीचे में बैठी लड़की को देख रही हो। लड़कियाँ भी अक्सर लड़कियों को घूरती हैं। लेकिन वह उसे नहीं देख रही है। लड़कियाँ इस तरह लड़कों को नहीं घूरती हैं। सपनों में भी नहीं।

लड़की चुप बैठी थी। मैंने कहा, -‘‘कुछ बोलो।’’

वह कुछ बोली, -‘‘तुम्हारे सपने का टुकड़ा मिल जाएगा, चिन्ता मत करो।’’

लड़की भूल गयी थी कि यह बात वह मुझे कह चुकी है। बातों को दोहराना लड़की की आदत है। बहुत सम्भव है कि यह बात वह कल भी कहे। लड़की के चेहरे पर कही गयी बासी बात का पुरानापन था।

-‘‘चाय पियोगे?’’ लड़की ने सहसा उत्साह से कहा। हालाँकि इसमें इतना उत्साहित होने वाली बात नहीं थी।

-‘‘मैं चाय नहीं पीता हूँ।’’ लड़के ने कहा।

-‘‘तुमने परसों भी मना कर दिया था।’’ लड़की ने उलाहना दिया।

-‘‘मैं परसों भी चाय नही पीता था।’’ लड़के ने उसे याद दिलाया।

-‘‘ओह!’’ लड़की के चेहरे पर एक पतली, निर्मल मुस्कान आ गयी फिर बोली, -‘‘नहीं!’’

-‘‘तुम शराब पिया करो।’’ लड़के ने कहा।

-‘‘क्यों? लड़की को अचरज हुआ।

-‘‘मुझे शराब पीती लड़कियाँ अच्छी लगती हैं।’’

-‘‘तुम शराब पीते हो?’’

-‘‘क्यों?’’

-‘‘मुझे शराब पीते लड़के अच्छे नहीं लगते हैं।’’

-‘‘मैं शराब नहीं पीता हूँ।’’

-‘‘ओह!’’ लड़की की आवाज में अफसोस था जबकि उसे खुश होना चाहिए। लेकिन लड़की को शायद अपने अनुमान टूटने का अफसोस था।

-‘‘घर चलें!’’ लड़के ने कहा।

-‘‘हाँ।’’

-‘‘यहाँ से घर दूर है।’’

-‘‘हाँ।’’

-‘‘अँधेरा भी हो रहा है।’’

-’’हाँ।’’

-‘‘तुम तीन बार हाँ बोली।’’ लड़के ने कहा।

-‘‘अच्छा!’’

-‘‘हाँ।’’

वे दोनों उठे तो लड़का घास पर रखी टोकनी से टकरा गया। ठोकर लगते ही टोकनी में रखी घास बिखर गयी। वह थोड़ी दूर आगे बढ़ा तो उसके हर कदम के साथ रोशनी खत्म होने लगी। तब उसे मालूम हुआ कि टोकनी में घास नहीं अँधेरा था जो ठोकर लगते ही खाली घास पर बिखर गया था। वह पैर आगे बढ़ाता तो उसका पैर अँधेरे में धँस जाता था।

बगीचे से बाहर आकर वे दोनों खाली सड़क पर चल दिए। लड़की ने कहा पहले तुम अपने घर में दाखिल होना, मैं तुम्हें जाते हुए देखना चाहती हूँ।

-‘‘लेकिन घर तो पहले तुम्हारा आता है।’’ लड़के ने कहा।

-‘‘ओह!’’ लड़की ने कहा तो उसे भला लगा। लड़की अफसोस जताते हुए अच्छी लगती है।

-‘‘अच्छा, मैं अपने घर में जाऊँगी तो तुम मुझे जाते हुए देखना।’’ लड़की उत्साह में बोली।

-‘‘हाँ।’’ मैं तुम्हें जाते हुए देख सकता हूँ।’’ लड़के ने यह भी कहा कि, -‘‘चाहो तो तुम मुझे पहले मेरे घर तक छोड़कर आ सकती हो, जिससे तुम मुझे जाते हुए देख सका।’’

लड़की ने इंकार कर दिया कि मुझे वापस अकेले आना पड़ेगा। लड़का मान गया।

-‘‘लेकिन तुम जल्दी से घर में मत दाखिल हो जाना। मैं तुम्हें जाते हुए इत्मीनान से देखना चाहता हूँ। जल्दबाजी में मुझसे चूक हो जाती है।’’ फिर लड़के ने सोचा, यदि वह उसे जाते हुए नहीं देखता है तो उसकी ओर पीठ करके जाती लड़की को कैसे पता चलेगा?’’

-‘‘मुझे पता चल जाएगा।’’ लड़की उसके मन की बात समझ गयी, -‘‘मेरी पीठ पर तुम्हारी नजरों का दबाव रहेगा। उस दबाव से मैं समझ जाऊँगी कि तुम मुझे देख रहे हो।’’ लड़के ने अफसोस के साथ सोचा, लड़कियाँ बड़े छल में, बड़े छलावे में जल्दी आ जाती है लेकिन छोटे-छोटे झूठ जल्दी पकड़ लेती है। कहते है कि झूठ चेहरे की खूबसूरती बिगाड़ देता है। लड़कियाँ छोटे-छोटे झूठ पकड़कर दुखी होती रहती है और बड़े छलावे में खुश होकर जीवन गुजार देती है।

लड़की का घर आ गया था। उसने कहा, -‘‘तुम खड़े होकर मुझे जाते हुए देखना। मैं जा रही हूँ।’’ लड़का खड़ा होकर लड़की को जाते हुए देखने लगा। लड़की का ब्लाउज बहुत खुले गले का था। गरदन से काफी नीचे तक उसकी पीठ नजर आ रही थी। वह समझ नहीं पाया कि इस उघड़ी पीठ पर उसकी नजरें लड़की को कहाँ चुभ रही होगी। लड़की का रंग एकदम साफ था वह अपनी देह का बहुत ध्यान रखती थी। जाने कितने प्रकार के साबुन, क्रीम, पाउडर इस्तेमाल करती थी। लड़के के बाल छोटे थे, जिसका लड़के को अफसोस था। लेकिन उसने अपना अफसोस कभी जताया नहीं था। लड़की घर के भीतर चली गयी उसके बहुत देर बाद लड़के को खयाल आया कि लड़की घर के भीतर जा चुकी है। हालाँकि वह उसे निरन्तर देख रहा था, लेकिन सोच कुछ और रहा था। वह लड़के छोटे बालों के बारे में सोच रहा था। वह भी घर की ओर चल दिया।

लड़का घर आया और हमेशा की भाँति सबसे पहले उसने अपनी अलमारी खोलकर पूरा सामान-कपड़े सब कुछ बाहर निकाला। अलमारी पूरी खाली करके उसे साफ किया और देर तक खाली अलमारी को देखता रहा। सपने का टुकड़ा वहाँ नहीं था। फिर उसने एक-एक करके सारे कपड़े और सामान वापस अलमारी में रख दिया। सारे कपड़े, लड़की के खत, पेन, पेंसिल, कुछ पुराने फीके, रंगहीन सपने। कुछ तस्वीरें इन सबके अलावा वहाँ कुछ भी नहीं था। लड़का सपने का जो टुकड़ा चाहता था, वह वहाँ नहीं था। लड़का उदास होकर कपड़े बदलने लगा।

खाना खाकर जब वह अपने कमरे में आया तो मोबाइल पर देखा, लड़की का मेल था। वह गुस्सा थी कि वह जब घर के भीतर जा रही थी तो वह देख उसे रहा था लेकिन सोच उसके बालों के बारे में रहा था। लड़का मुस्करा दिया। लड़की छोटे-छोटे झूठ कितनी जल्दी पकड़ लेती है। उसने सोचा यदि आज सपने में लड़की से मुलाकात हुई तो माफी माँग लेगा। वैसे उसे उम्मीद नहीं थी कि लड़की आज सपने में मिलेगी। लड़की गुस्सा थी। गुस्से में लड़की मिलने से मना कर देती थी। फिर इस बात पर भी गुस्सा होती थी कि उसने उसे मनाया क्यों नहीं? वह लड़की को हमेशा एक ही तरीके से मनाता था जो लड़की को नागवार गुजरता था। उसका कहना था कि लड़की को मनाने के सौ तरीके हैं, तुम्हें कुछ भी नहीं आता है। वह अपनी यह गलती भी मान लेता था। लड़की सच कहती है। उसने कभी लड़की को मनाने के तरीके सीखने की कोशिश ही नहीं की। लड़का मेल का जवाब दे रहा था तभी मैसेज आ गया कि कल कॉलेज जल्दी चलना है। उसने मेल नहीं किया। अब कल जाकर ही बात करेगा। फिर भी उसने यह संदेश भेज दिया कि सपने का टुकड़ा आज भी नहीं मिला। लड़की ने अफसोस का इमोजी भेजा। लड़के ने सोचा लड़की को अफसोस के कुछ शब्द भी लिखना चाहिए था। लेकिन उसे दुख नहीं हुआ। लड़की को घर बहुत काम रहता है। नये-पुराने सपनों को वह अपनी अलमारी में तरतीब से बार-बार जमाया करती है। उसे सपनों के साथ बने रहना अच्छा लगता है। लड़की को उसने कई बार समझाया था कि यूँ हर समय सपनों के साथ रहना कोई बहुत अच्छी बात नहीं है। लेकिन लड़की उसकी बात नहीं मानती है। उसने तो लड़की को यह भी कहा था कि कम से कम पुराने सपनों से छुटकारा पा लो। कहीं नदी में बहा दो। तालाब में सिरा दो। नये सपनों के साथ समय बिताओ लेकिन वह नहीं मानी। उसे नये-पुराने सभी सपनों से प्यार था। उसे दो ही चीजों से प्यार था एक लड़के से और दूसरा सपनों से। वह अक्सर कहती है कि, -‘‘मैं तुम्हें इतना प्रेम करती हूँ कि तुम्हें पाने के लिए तुम्हारी हत्या भी कर सकती हूँ।’’ इस बात को सुनकर लड़के को खुश होना चाहिए था लेकिन वह डर गया। लड़की झूठ नहीं बोलती है। लड़का जानता है कि हत्या हो जाने से आदमी मर जाता है और मरे हुए आदमी से कोई प्रेम नहीं करता है। तो क्या मरने के बाद आदमी प्रेम का जवाब नहीं दे सकता है? वह तो कई ऐसे जीवित व्यक्तियों को जानता है जो प्रेम का जवाब नहीं देते हैं। हालाँकि लड़की का कहना है, वे व्यक्ति जीवित नहीं है। यह सम्भव भी हो सकता है। लड़की झूठ नहीं बोलती है। उसे अचरज होता है कि लड़की प्रेम में है लेकिन झूठ नहीं बोलती है।

दूसरे दिन दोनों कॉलेज के लिए निकले तो लड़की ने कहा कि उसके सपनों में कोई सेंध लगा रहा है। लड़का कुछ नहीं बोला। लड़की को अजीब और डर पैदा करने वाली बातें करने की आदत है। लड़के ने सिर्फ इतना कहा कि, -‘‘क्या कर सकते हैं।’’ तुम फेंसिंग करा लो।’’ लड़की उसे अचरज से देखने लगी, उसके अचरज का जब कोई असर नहीं हुआ तो लड़की गुस्सा हो गयी, -‘‘फेंसिंग हल है?’’ लड़के ने कहा, -‘‘नहीं।’’

वे दोनों एक चैराहे पर आ गये थे। लड़का ठिठक गया था हालाँकि लाल सिग्नल था। गाड़ियाँ रुकी हुई थीं। वे पैदल पार कर सकते थे। लेकिन लड़के को लगा कि कोई गाड़ी एकदम से उसके उपर आ गयी तो? लड़की उसे ठेलते हुए सड़क के पार ले आई। लड़का खुश हो गया। कोई गाड़ी उसके उपर नहीं आई। वह सही सलामत सड़क के पार था। लड़की ने कहा, -‘‘देखा ! तुम नाहक चिन्ता कर रहे थे।’’ लड़की ने यह बात दुबारा कही थी। बात को दोहराना लड़की का प्रिय शगल था। वह उसकी ओर पलटकर बोली, -‘‘तुम चिन्ता मत करो, तुम्हारे सपने का टुकड़ा मिल जाएगा।’’ उसने फिर दुहराया। लड़का मुस्करा दिया। उसे भी यह बार-बार सुनना अच्छा लगता था।

-‘‘कॉलेज आ गया।’’ लड़की ने उसे टोका फिर कहा, -‘‘मेरे पीरियड्स चल रहे हैं।’’

-‘‘हाँ, लेकिन मैं अभी और चलना चाहता हूँ।’’ -‘‘आगे ! या फिर वापस पीछे।’’

-‘‘आगे कहाँ?’’

-‘‘पता नहीं।’’

-‘पीछे कहाँ?’’

-‘‘पता नहीं।’’

-‘‘तुम चलकर आओ, मैं क्लास में जाती हूँ।’’

-‘‘ठीक है।’’ कहकर वह आगे बढ़ा तो ठोकर लगी। उसने झुककर देखा, लड़की का सपना गिर पड़ा था। उसने उठाकर किताब में दबा लिया। वह आगे चलना चाहता था। लेकिन वह लड़की के पीछे तेजी से गया कि उसका सपना लौटा दे। लेकिन वह जा चुकी थी। एकबारगी उसका मन हुआ कि वह उसका सपना देखे, क्या है इसके सपने में? लेकिन फिर उसे लगा एक कुँवारी, रजस्वला लड़की का सपना नहीं देखना चाहिए। ऐसा सपना बहुत जटिल होता है। ऐसे सपनों में जाने कितनी कुँवारी इच्छाएँ छटपटाती मिलेंगी। सम्भव है कि ऐसा कुछ भी न हो और फकत कुँवारी इच्छाओं के बीज मिले।

वह भी आकर क्लास में बैठ गया। लड़की का सपना अभी भी उसकी किताब में दबा पसीज रहा था। उसने सोचा क्लास के बाद वापस कर दूँगा। क्लास खत्म होने के बाद दूसरी क्लास शुरू हो गयी। शाम तक फुरसत नहीं मिली, दोनों के मिलने के लिए। शाम को सारी क्लास खत्म हुई और वे घर जाने के लिए निकले तो उसने लड़की का सपना लौटा दिया। सपना थोड़ा मटमैला हो गया था। लड़की ने रूमाल से सपने को साफ करने की कोशिश की फिर उसे पर्स में सँभालकर रख लिया। उसका पर्स एक हैण्ड बैग में रखा था।

-‘‘तुमने सपना देखा क्या?’’

-‘‘नहीं, तुम्हारा हैण्डबैग चमड़े का है।’’

-‘‘हाँ मुझे मालूम है। मुझे पूर्वाभास हो जाता है।’’

-‘‘कि मैं कहूँगा कि तुम्हारा हैण्डबैग चमड़े का है?’’

-‘‘हाँ, और यह भी कि एक लड़का मुझे देखेन आने वाला है।’’

-‘‘उसका बैग भी चमड़े का है?’’

-‘‘हाँ। मुझे पूर्वाभास हो जाता है। कभी-कभी तो मैं भविष्य में कूदकर देख भी लेती हूँ।’’

-‘‘इस तरह कूदने में तुम्हारी टाँग टूट गयी तो?’’ मैं हँसा, मुझे लगा मैंने मजाक किया है।

-‘‘दिल नहीं टूटना चाहिए। टाँग तो फिर भी जुड़ जाएगी।’’

-‘‘इस बात पर कोई शेर कहा जा सकता है लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा है।’’

-‘‘तुम्हारे सपने का टुकड़ा गुम गया है।’’

-‘‘हाँ यह मुझे याद है, तुम्हारा बैग चमड़े का है।’’

हम दोनों सड़क पर आ गये थे। आज वह धीरे चल रही थी। मैं उसे कहना चाहता था कि गर्भवती स्त्रियाँ धीमे चलती है। फिर मुझे लगा कि यह बात उसे मालूम होगी। उसे कैसे मालूम? लड़की तो गर्भवती नहीं है। फिर उसने सोचा, जब उसे लड़का होकर यह मालूम है तो उसे लड़की होकर तो यह बात मालूम होगी ही।

-‘‘लड़का एम.बी.ए. है। किसी बड़ी कम्पनी में है। भारी सैलरी है।’’

-‘‘लड़के को भारी सैलरी से क्या डर, उसका बैग तो चमड़े का है।’’

-‘‘हाँ। कार भी है।’’

-‘‘बच्चे भी है?’’

-‘‘नहीं, पहली बार शादी कर रहा है।’’

-‘‘मैं भी जब शादी करूँगा, पहली बार ही करूँगा।’’

-‘‘तुम्हारे बच्चे हैं? लड़की ने पूछा। लड़के ने अफसोस में अस्वीकृति में सिर हिलाया।

-‘‘तुम कैसी नौकरी करोगे?’’

-‘‘मैं पहले चमड़े का बैग खरीदूँगा।’’

-‘‘आज तुम मुझे घर पर छोड़ोगे तो मुझे देखते रहना और मेरे बारे में ही सोचना।’’ लड़की ने कहा।

-‘‘रजस्वला लड़की कैसे सपने देखती है?’’

-‘‘तुम्हें क्यों बताऊँ?’’

लड़के ने सिर हिला दिया। लड़की घर जाने लगी और वह उसे जाते हुए देखता रहा। आज लड़की का घर सड़क से काफी दूर लग रहा था, इतनी दूर कि वह वापस आना चाहती तो आ नहीं सकती थी। उसके लौटने में रास्ते की लम्बाई और ज्यादा बढ़ जाने वाली थी। वह खड़ा रहा और लड़की के बारे में ही सोचता रहा।

लड़की को तो बाद में मालूम हुआ। पहले लड़के के माँ-बाप को मालूम हुआ। लड़का कहीं चला गया था। दो पंक्ति की चिट्ठी छोड़ गया था कि सपने का टुकड़ा तलाशने जा रहा हूँ। फिर लड़की को पता चला। लड़की उस दिन कॉलेज अकेली गयी। वह चमड़े का हैण्डबैग भी लेकर नहीं गयी। वह दुखी थी।

लड़के को बहुत तलाशा गया। दोस्तों के घर, रिश्तेदारों के यहाँ, गुमशुदा की तलाश वाला विज्ञापन दिया। पुलिस में रिपोर्ट लिखाई। दिन बीतने लगे और उसके पिता रोज की तरह अकेले फिर से ताश खेलने लगे। माँ सिलाई मशीन चलाने लगी। उसकी माँ सिलाई मशीन पैर से चलाती थी। पिता चश्मा लगाकर ताश खेलते थे। लड़की बदस्तूर कॉलेज जाती रही। एम.बी.ए. किया लड़का उसे देखने आता रहा। दिन महीने, बरस गुजर गये। लड़का नहीं लौटा। लड़की ने अपने तमाम नये-पुराने सपनों को अपने चमड़े के हैण्डबैग में डालकर घर की अलमारी में बंद किए और पिता के सपनों के एम.बी.ए. वाले लड़के के साथ एक दिन एक नया चमड़े का भारी हैण्डबैग लेकर चली गयी। उसने कहा वह तो लड़के का इंतजार कर सकती थी, लेकिन सपने किसी का इंतजार नहीं करते हैं। वे अपने होने में घटित होते हैं। एक दिन लड़की के पिता के घर की अलमारी में रखे सपने सड़ने लगे। बदबू उठने लगी तो पिता ने लड़की को फोन किया, लड़की ने कहा, फैंक दो। वह उस समय ज्वैलरी शॉप से हीरे की अँगूठी खरीद रही थी। उसके नये चमड़े के बैग में बहुत सारे पैसे थे। लड़की के पिता ने पुराने बैग सहित सपनों को डस्टबिन में डाल दिया।

बरसों गुजर गये। एक दिन लड़के के पिता को घर में लड़के की अलमारी में लड़के के सपने का टुकड़ा मिल गया। हीरे की तरह चमकता हुआ। वह टुकड़ा लड़के के सपने का अन्तिम टुकड़ा था। उसकी चमक से घर भर में रोशनी फैल गयी। पिता को अचरज हुआ कि इतना चमकदार सपना देखता था। हीरे का सपना देखता था। उसका सपना हीरों जैसा चमकदार था। अब लड़के के पिता के पास सपने का टुकड़ा था कि लड़का रोज अलमारी खोलकर सारा सामान निकालकर सपने का टुकड़ा तलाशता था फिर भी उसे यह हीरे जैसा टुकड़ा नहीं मिला और उन्हें सहसा मिल गया। पिता नहीं जानते थे कि सपने ऐसे ही मिलते हैं और ऐसे ही गुम होते हैं, ऐसे ही टूटते भी हैं।

और एक दिन सपने की भाँति लड़का लौट आया। वह पहले से स्वस्थ और खुश लग रहा था। उसने बताया कि बरसों वह बाहर रहा यानी विदेश में। बाकी पढ़ाई वहीं की। कैसे? नहीं बताया। वह दूसरी बातें बताने के उत्साह में था। उसके साथ एक बेहद सुन्दर लड़की थी। उसने बताया यह उसका सपना थी। सपना है। लड़की के हाथ में चमड़े का हैण्डबैग था। लड़का माँ-बाप के लिए ढेर सारे उपहार लाया था। और वापस जाने के पहले उन्हें ढेर सारे सपने भी देना चाहता था। माँ-बाप सपनों की उम्र से बाहर आ गये थे, लेकिन लड़का माना नहीं, जोर देकर बहुत सारे सपने दिए। बेटे को रोके रखने का सपना माँ के पास सुरक्षित था लेकिन वह इतनी खुशी से भरे बेटे को ऐसा सपना कैसे दिखाती। वे लोग सपने में भी बेटे को दुखी नहीं देखना चाहते थे। लड़के के साथ आई लड़की बहुत शालीन विनम्र और गुणवती थी। माँ-बाप को बेटे के लिए ऐसी ही लड़की चाहिए थी।

तभी पिता को याद आया। वे भीतर गये और सपने का टुकड़ा लाए और बताया कि तुम्हारे जाने के बाद यह मिल गया था। लड़के ने उस हीरे जैसे टुकड़े को उलट-पलट कर देखा फिर कहा कि यह उसके सपने का टुकड़ा नहीं है। पिता ने उसे समझाया, लेकिन बेटा नहीं माना। उसने लड़की के हाथों से चमड़े का हैण्डबैग लिया और हाथ डालकर एक हीरे का टुकड़ा निकालकर पिता के हाथ पर धर दिया। –‘‘यह मुझे मिल गया था। यहाँ से जाते ही मुझे मिल गया था। पिता को अचरज हुआ। बेटे के पास का सपने का टुकड़ा हू-ब-हू उसी टुकड़े जैसा था, जो उन्हें मिला था।

-‘‘फिर इसका क्या करूँ बेटा?’’ माँ ने पूछा।

फैंक दो, आपके पास चमड़े का हैण्डबैग नहीं है।’’ लड़के ने सामान्य स्वर में कहा।

माँ-बाप ने देखा, बेटे ने लड़की के चमड़े के हैण्डबैग में अपने सपने का टुकड़ा वापस रख दिया।

भालचन्द्र जोशी

अनुभव और कलात्मकता की संयुक्त जमीन पर प्रेम, प्रकृति और पुनर्वास की कहानियाँ लिखनेवाले भालचन्द्र जोशी का जन्म 17 अप्रैल 1956 को हुआ। 9 सितम्बर 1976 को दैनिक नयी दुनिया के रविवारीय अंक में प्रकाशित कहानी ‘मोक्ष’से अपनी कथायात्रा शुरू करने वाले भालचन्द्र जोशी के छह कहानी-संग्रह ‘नींद से बाहर’,‘पहाड़ों पर रात’,‘चरसा’,‘पालवा’,‘जल में धूप’ और ‘हत्या की पावन इच्छाएं’ दो उपन्यास ‘पहाड़ में प्रार्थना’ और ‘जस का फूल’तथा एक आलोचना पुस्तक ‘यथार्थ की यात्रा’प्रकाशित हो चुके हैं।

13 एच.आय.जी. ओल्ड हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, जेतापुर, खरगोन, 451001 (म.प्र.)

सम्पर्क +918839547548

पेंटिंग्स – भालचन्द्र जोशी

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साहित्य, विचार और संस्कृति की पत्रिका संवेद (ISSN 2231 3885)
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