कथा संवेद

कथा संवेद – 15

इस कहानी को आप कथाकार की आवाज में नीचे दिये गये वीडियो से सुन भी सकते हैं:

 

भूमंडलोत्तर समय के युवतम कथाकारों में से एक विनीता परमार का जन्म 16 जुलाई 1977 को पूर्वी चंपारण जिले के छौड़ादानो ग्राम में हुआ। जून 2018 के मधुमती में प्रकाशित ‘पोस्टमार्टम’ शीर्षक कहानी से अपनी कथा यात्रा शुरू करने वाली विनीता परमार का एक कविता-संग्रह ‘दूब से मरहम’ तथा स्कूली जीवन के संस्मरणों की एक किताब ‘धप्पा’ प्रकाशित हैं।

पिछले बीस-पच्चीस वर्षों में संचार क्रान्ति ने हमारे जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है। नये संचार माध्यमों के कारण जहां सम्प्रेषण की गति में गुणात्मक तीव्रता आई है, वहीं भावनाओं के आदान-प्रदान के लिए कई तरह की नई भाषाओं के भी आविष्कार हुये हैं। ध्वनि सूचकों, चित्रलिपियों और जीव-संचारित संकेतों से निर्मित ये भाषाएँ नई जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा होकर सामने आई हैं। विनीता परमार की कहानी ‘इमोजी’ नई भाषा संस्कृति के विस्तार के बीच विखंडित और विनिर्मित हो रहे जीवन मूल्यों का मानीखेज पड़ताल करती है। द्वापर की मिथकीय  संकल्पना को आधार बनाकर समकालीन जीवन की दुरभिसंधियों का पुनरान्वेषण करने वाले शोधार्थी किस तरह खुद शोध-संदर्भ में परिवर्तित हो जाते हैं, वही यहाँ एक दिलचस्प कहानी की तरह सामने आता है। यह कहानी जाहिर और आभासी की द्वन्द्वात्मक विडम्बनाओं के बीच आकार लेते जीवन की चिंताओं को तो मूर्त करती ही है, परिवार और विवाह जैसी संस्थाओं पर चलने वाले विमर्शों को नये जीवन-संदर्भों के आलोक में परखने का एक सार्थक और रचनात्मक जतन भी करती है।

राकेश बिहारी

इमोजी

विनीता परमार

मीडिया में आई खबरों के बाद दिल्ली के एक अस्पताल के बाहर कुछ शोधार्थियों की चहल-पहल है। पिछले एक महीने से इस अस्पताल में जन्मे शिशुओं ने लोगों का ध्यान खींचा है। इन नवजातों के हाव-भाव पिछले वर्षों में जन्मे शिशुओं से अलग है। एक शिशु की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। उसकी आँखों से आँसू लुढ़क रहे हैं और होठों पर जोरदार हँसी है। दूसरे की होंठों पर हँसी है और आँखों से लगातार आँसू निकल रहे हैं।

शोध करनेवालों की उम्र चौबीस से पच्चीस के बीच है। यह केस स्टडी उनके प्रोजेक्ट का हिस्सा है। गाइड ने बताया है कि संकल्पना (हाइपोथिसिस) में सबसे पहले यह परखा जाये कि क्या द्वापर के अभिमन्यु की भांति बच्चे आज भी गर्भ में सीखते हैं और फिर यह कि क्या माता – पिता की मनोदशा का असर शिशु पर पड़ता है?  

यशी और अंबर के बीच कार्य का बंटवारा हो चुका है। यशी इन बच्चों के पिताओं का अध्ययन करेगी तो अंबर इनकी माताओं का। काफी मानमनौव्वल और शोध का महत्व समझाने के बाद दो अलग–अलग नवजातों के आउटहाउस में उन्हें पीजी की तरह रहने की सुविधा मिल गई है। इन बच्चों के साथ रहकर इनकी हरकतों को पढ़ना बेलौस जीवन जीने वाले यशी और अंबर के लिए बहुत ही अनूठा और खास अनुभव है। एक ही संकाय में पढ़ने के बावजूद दोनों के बीच कोई खास अंतरंगता नहीं थी या यूँ कहें कि उनके आपसी संबंध बहुत औपचारिक से ही थे। लेकिन इस शोध ने दोनों के बीच नजदीकियाँ बढ़ा दी है।

कुरुक्षेत्र के मैदान का पंद्रहवाँ दिन… दुर्योधन को चिंतित देख, गुरु द्रोण ने नई चाल चल दी थी। अर्जुन कुरुक्षेत्र से दूर संशप्तकों के साथ लड़ाई करने चले गये थे और इधर द्रोण ने चक्रव्यूह की रचना कर दी थी। युधिष्ठिर सहित पांडव खेमे में सभी चिंतित थे। युधिष्ठिर हार स्वीकार करने ही वाले थे कि सोलह वर्षीय उस बालक ने बड़े ही उत्साह से कहा – “आप बिल्कुल चिंता न करें। पिताश्री नहीं हैं तो क्या हुआ? उनका पुत्र आपके सामने खड़ा है। आप दुर्योधन की चुनौती स्वीकार कीजिए।”

“तुम्हारे पिता के सिवा कोई भी चक्रव्यूह भेदना नहीं जानता, ऐसे में हम भला तुम्हें कैसे भेज सकते हैं…?”

“आप शंख बजाकर युद्ध का उद्घोष कीजिए… मुझपर भरोसा कीजिए… मैं कौरवों की सारी चाल निष्फल कर दूँगा।”

परिस्थिति के आगे युधिष्ठिर ने घुटने टेक दिए और अभिमन्यु को दुश्मन खेमे में जाने की आज्ञा दे दी।

अर्जुन के इस पुत्र ने कर्ण, दु:शासन को पराजित कर राक्षस अलम्बुस को भी युद्ध भूमि से खदेड़ दिया।  जिस फूर्ति से चक्रव्यूह को पूर्ण करने के लिए सेनायें आ रही थीं, उसी तेजी से अभिमन्यु ने आग की लपटों की भांति चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश ले लिया। जब कौरवों की चाल नाकाम होने लगी तब कृपाचार्य, कर्ण, कृतवर्मा, दुर्योधन आदि बड़े – बड़े योद्धाओं ने उसे घेर लिया और देखते ही देखते जयद्रथ के हाथों अभिमन्यु  की जीवन लीला समाप्त हो गई।

“अरे! ये तो अभिमन्यु की नृशंस हत्या हुई। एक निहत्थे को सबने मिलकर मार डाला।” यशी और अंबर लगभग एक ही साथ बोल उठते हैं।

शोध की हाइपोथीसिस समझाते गाइड की आँखों में सहमति के महीन धागे से उग आए हैं।

‘सुभद्रा ने खुद को कैसे सम्हाला होगा?’

‘सर, उत्तरा तो तब पेट से थी न? जरूर उसके बच्चे पर भी इसका प्रभाव पड़ा होगा…”

यशी और अंबर के भीतर जैसे जिज्ञासाओं का तूफान-सा उठ खड़ा हुआ था…पहली परिकल्पना में ही वे ऐसे ऐसे खो गये जैसे उनके शोध के परिणाम आ गये हों और उन्हें आगे कुछ करने की जरुरत ही नहीं।

“यह तो पहली ही परिकल्पना है। जाने अभी और कितनी परिकल्पनाओं के बारे में जानना बाकी है।   तुम लोग द्वापर में ही इस तरह उलझ गए तो वर्तमान का अध्ययन कैसे करोगे?”

गाइड के शब्दों ने जैसे उन्हें किसी सम्मोहन की नींद से जगाया और वे कल से काम शुरू करने की बात कर अपने–अपने ठिकाने पर चले गये। 

यशी जिनके घर में पेइंग गेस्ट है, वे लोग बहुत ही शांत लगते हैं। परिवार का आकार भी बहुत छोटा है- पति-पत्नी, एक हाउसहेल्पर और यह नवजात, जिसने जन्म के साथ ही अंगुलियाँ ऊपर – नीचे करनी शुरू कर दी थी। उसकी आँखों में अपने आसपास की आवाज को पकड़ने की एक अजीब-सी ललक और कोशिश दिखाई पड़ती है। यशी मिस्टर चटर्जी से बात कर यह जानने कि कोशिश कर रही है कि जन्म के समय इस बच्चे की उँगलियाँ क्यों थिरक रही थीं? सबकुछ बहुत रोमांचक है… जैसे एक खूबसूरत सी पहेली हो… वह बालक कभी-कभी हँसते-हँसते अचानक रोने लगता तो कभी बिल्कुल ही शून्य-सा हो जाता, ना चेहरे पर कोई भाव ना ही कोई सुगबुगाहट।

उधर अंबर ने भी उस बच्चे की माँ यानी मिसेज चटर्जी से ढेर सारे सवाल पूछ डाले और उन जवाबों के बोझ से दबा वह कमरे पर वापस आ गया। आउटहाउस की कुर्सी पर बैठा वह उन जवाबों में बच्चे के चेहरों के भावों को समझने की कोशिश करने लगा। मन में तरह–तरह के ख्याल आ रहे थे…

“क्या नवजात अभिमन्यु के चेहरे पर भी ऐसे ही भाव रहे होंगे? वो माँ के ज्यादा करीब रहा होगा कि पिता के?”

इन सवालों में उलझे अंबर को एक झपकी-सी आई है… उसके सामने अपने रुदन के साथ एकांत को टोहती सुभद्रा खड़ी है। वह जानती है कि अभिमन्यु को चक्रव्यूह से निकल आने की तरकीब नहीं मालूम इसलिए वह उसे उत्तरा और उसके गर्भ का वास्ता देते हुये युद्धभूमि में जाने से रोक लेना चाहती है। पर अभिमन्यु  उसकी एक नहीं सुनता। उसकी दृढ़ आवाज़ चारों तरफ गूंज रही है… “जब मैं आपके गर्भ में पल रहा था तब तो आपने पिताजी से सिर्फ युद्ध की कहानियाँ सुनी। मुझे तब इस बात की भनक तक नहीं लगने दी कि वे युद्धकला में ही नहीं नृत्य-संगीत में भी पारंगत थे। मैंने कई बार कोशिश की कि पिता के उस कोमल स्वरूप का भी स्पर्श पा सकूँ। लेकिन आपने मेरी उस पुकार को जैसे सुना ही नहीं या सुन कर भी अनसुना कर दिया… पता नहीं तब आपको सिर्फ युद्ध की कथायें ही भाती थीं या आप मुझे युद्धकला में पारंगत एक मजबूत पुरुष बनाना चाहती थीं। मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि मेरी वही माँ आज मुझे युद्ध भूमि में जाने से रोक रही हैं…”

जाने अभिमन्यु  की आवाज़ कहाँ गुम हो गई, सुभद्रा का चेहरा कब मिसेज चटर्जी के चेहरे में बदल गया और अपने सवालों के जवाब जानने की कोशिश करता अंबर मिसेज चटर्जी को दिलासा देने लगा- “नहीं मिसेज चटर्जी आपका बच्चा वैसा नहीं होगा, बिल्कुल नहीं होगा, आप निश्चिंत रहिए…”  इस गहरी झपकी में बड़बड़ाते अंबर की जब नींद खुली उसने खुद को आउटहाउस की कुर्सी पर पाया… सपने की याद पूरी तरह ताज़ा थी, उसके होठों पर एक हल्की सी मुस्कुराहट आई और उसने मन ही मन ख़ुद को शाबाशी दी – “येस आई एम फुल्ली इन्वलव्ड इन माय रिसर्च वर्क।”

दूसरी तरफ यशी मिस्टर चटर्जी के साथ–साथ दूसरे पुरुषों के मनोविज्ञान की पड़ताल में लगी हुई है। सर्वे के प्रश्नों के सिलसिले में सभी से बातें होती है लेकिन मिस्टर चटर्जी के आउटहाउस में रहने के कारण वह अपने रिसर्च के सवालों में बहुत ज्यादा तटस्थ या निरपेक्ष नहीं हो पा रही है, उसका झुकाव उस घर के लोगों की ओर थोड़ा ज्यादा है। कार्य–विभाजन के अनुसार उसका ज्यादा पाला मिस्टर चटर्जी से ही पड़ता है।  

आज यशी ने मिस्टर चटर्जी से उनके बच्चे के गर्भ में आने के समय की परिस्थितियों को जानने की कोशिश की। बनाये गये प्रश्नों से मन का टोह लेती रही। आज उसने चार–पाँच पिताओं से इस तरह के ही सवाल किए। मजे की बात सभी बच्चों का कोख में आना ख़ुद पर अनियंत्रण की स्थिति थी। गर्भ में गये शुक्राणु प्रेम की परिणति नहीं, शुद्ध वासना के परिणाम थे। मतलब बच्चों का गर्भ में आना महज एक दुर्घटना थी जिसे बढ़ते भ्रूण के साथ आत्मसात कर लिया गया था।

यशी को कभी-कभी अजीब-सा लगने लगता, पर वह अपने शोध को बीच में नहीं छोड़ सकती थी। बहुत सम

य और परिश्रम के बाद वह यहाँ तक पहुँची है। इसे बिना किसी मुकाम पर पहुँचाए उसे चैन कहाँ… तमाम ऊहापोहों के प्रति खुद को बरजते हुये वह दिए गये हाइपोथिसिस और शोध के दौरान प्राप्त उत्तरों के बीच नए सिरे से तुकतान बिठाने लग जाती।

ख़ुद को संभाल चुकी यशी कभी-कभार मिस्टर चटर्जी से एक-दो हल्की-फुल्की बातें भी कर लेती है। कुछ ही दिनों में उनकी यह बातचीत अब रियल से वर्चुअल तक का सफर तय करने लगी है।

उस दिन यशी के व्व्हाट्सएप्प पर एक मैसेज चमका था- “हेल्लो”,

“इज दिस मिस्टर चटर्जी?”

“येस”

“आर यू मिस यशी?”

यशी ने एक दबी हुई मुस्कराहट वाली इमोजी भेज दी।

मिस्टर चटर्जी ने हँसने वाली इमोजी…

इमोजी लेन-देन के साथ बातों का भी सिलसिला चल पड़ा। सर्वे के प्रश्नों के साथ यशी मिस्टर चटर्जी से उनके परिवार, पत्नी, बच्चे के जन्म के समय की स्थितियों, परिस्थितियों से रूबरू होने की हर सम्भव कोशिश करती। कुछ ही दिनो में उसे मिस्टर चटर्जी के संगीत प्रेम से लेकर उनकी पत्नी के गर्भधारण तक की बातें पता चल चुकी थी।

एक दिन बातें करते – करते मिस्टर चटर्जी चुप हो गये। 

“क्या हुआ आगे बताइये ?”

“सामने जो दिखता है सबकुछ वैसा होता नहीं।“

“अरे बताइये; क्या हुआ?”

“मैसेज करूँगा”

इस तरह यशी का मिस्टर चटर्जी से रिसर्च रिलेशनशिप, जाने कब गुड मॉर्निंग इमोजी से शुरू होकर गुड नाईट मैसेज में तब्दील हो गया वह समझ ही नहीं पाई।

जापानियों ने भी इमोजी नाम की क्या चीज बनाई, भावनाओं के संचार का सूक्ष्तम तरीका। मनुष्य के भावों को लगभग पैसठ चेहरों में समेट दिया। बिना बोले, बिना लिखे असमंजस को आसानी से प्रकट कर देना।  

आज सुबह-सुबह मिस्टर चटर्जी का मैसेज आया – “आर यू फ्री”

यशी ने जवाब दिया-  “अभी कुछ काम कर रही हूँ। थोड़ी देर बाद बात करती हूँ।” 

एक घंटे बाद फिर मिस्टर चटर्जी का मैसेज आया।

“मैं थोड़ा परेशान हूँ आपसे बात करना चाहता हूँ।”

यशी को गुस्सा आया, मन ही मन बुदबुदाई- ‘ये तो गले ही पड़ गये।’

खीझते हुए यशी ने मैसेज किया “कुछ अर्जेन्ट?”

“मैंने आपके शोध प्रश्नों के उत्तर में सारी बातें सही–सही नहीं बताई है।”

“सामने नहीं बोल पाता हूँ, यहाँ बताना चाहता हूँ।”

“अच्छा कहिए”

“मिसेज चटर्जी और मेरी लव मैरिज है लेकिन इस बच्चे के जन्म तक की कहानी बिल्कुल खोखली है, मेरे जीवन में बहुत ही खालीपन है। मैं बिल्कुल ही अकेला महसूस करता हूँ। आप मुझसे उम्र में बहुत छोटी हो बस ना मत कहना।  मुझे बस एक ठौर चाहिए जहाँ अपने मन की बात कर सकूँ”

मैसेज देख यशी ने कुछ लिखना उचित नहीं समझा बस एक सैड चेहरे वाली इमोजी भेज दी।

यशी को ख़ुद पर बहुत तेज गुस्सा आया, क्या इस रिसर्च की कीमत उसे यहाँ तक चुकानी पड़ेगी? वह परेशान थी, उसे समझ नहीं आ रह था कि क्या करे। कुछ देर की ऊहापोह के बाद उसने अंबर को फोन लगाया…

अंबर ठहठहाकर हँस पडा था –“कॉमन प्रॉब्लम।”

“मतलब?”

“मिसेज चटर्जी का भी कुछ ऐसा ही हाल है।” 

“तुम भी मेरा नुस्खा अपना लो, मैं उनकी किसी बात का जवाब नहीं देता, बस एक इमोजी चिपका देता हूँ। चैटिंग में थोड़ी बहुत इमोजी सिलेक्शन की दिक्कत होती है तो फेसबुक पर मैं उनके साथ बिल्कुल सहज हूँ। फेसबुक ख़ुद बता देता है इस पिक पर कौन सी इमोजी देनी हैl”

“जानती हो मिसेज चटर्जी ने मुझे सबसे पहले कौन सी इमोजी भेजीl”

“बताओगे तब तो जान पाऊँगीl” 

“वही हँसते – हँसते आँखों में आँसू वाली इमोजी जिसे शुरूआती दिनों में मैं दु:ख के आँसू वाले चेहरे के रूप में समझ दु:खी हो गया थाl”

उन्होंने टेक्स्ट किया – “तुम नहीं जानते यह ख़ुशी के आँसू हैंl”

“अब तो मुझे मिसेज चटर्जी ने इमोजी एक्सपर्ट बना दिया हैl”  

यशी ने चुटकी ली- “अच्छा ! तो यह बात हैl पिछले छ: महीने से तुम इमोजी के आदान-प्रदान में लगे हो और मुझे खबर ही नहीं… लगता है मिसेज चटर्जी मेरी लिस्ट में नहीं हैं और श्योर हूँ कि मिस्टर चटर्जी फेसबुक पर नहीं हैंl”

“जस्ट चिल्ल यार, हमें अपना रिसर्च पूरा करना है l यशी तुम कल से डाटा को एक जगह करो और मैं इन बच्चों की क्लिनिकल स्टडी करता हूँl”

 अंबर से यशी द्वारा अपनी असुरक्षा की बताई बातों ने जाने – अनजाने में दोनों को कुछ और करीब ला दिया हैl यशी को अंबर ने अनजाने में ही सही स्वतंत्रता की हरी झंडी सी दे दी हैl असुरक्षा की चिंता जतलाने वाली जगह ख़ुद-ब-ख़ुद सबसे सुरक्षित जगह बन गई हैl इमोजी के जरिए दूसरे के खालीपन को भरनेवाले दोनों रियल लाइफ में अब एक दूसरे के पूरक बन चुके हैंl  अब अक्सर दोनों रेस्तरां, पार्क, पुराना किला जैसी जगहों में एक–दूसरे के हाथों में हाथ डाले अपने वजूद को तलाशते फिरते  हैंl इन सबके बावजूद रिसर्च के प्रति उनकी प्रतिबद्धता में राई बराबर भी बदलाव नहीं हुआ है l 

दोनों के रिसर्च का काम आगे बढ़ रहा हैl बच्चों के चेहरों के अजीब- अजीब भावों के तह खुलने लगे हैंl मसलन मुस्कुराती हुई आँखों के और गुलाबी गालों के साथ मुस्कुराता हुआ चेहरा, तो गहरे विचारों में तल्लीन इमोजीl वो रोलिंग आँखों के साथ घूमता चेहरा तो हँसते – हँसते आँखों में आये आँसू की इमोजीl

मिस्टर चटर्जी और मिसेज चटर्जी के साथ-साथ दूसरे माता-पिता के साथ ने शोध के इस काम को आसान कर दिया हैl अंबर अपने प्रश्नों की पोटली के साथ वर्किंग ऑवर वाले समय में जाता है। अभी बच्चों के जन्म के कारण अधिकांश माएँ घर पर ही रहती हैंl दो वर्किंग मदर हैं जो अगले महीने से काम पर जायेंगीl यशी को बच्चों के पिताओं को पकड़ना होता है उसने सुबह छ: से आठ के बीच का समय मुनासिब समझा हैl पिताओं को पकड़ पाना बहुत ही टेढ़ी खीर है लेकिन लोगों ने काफी सहयोग दिया हैl कभी – कभी छुट्टी के दिनों में भी यशी घंटों उनके बच्चों को जानने में लगी रहती हैl   

      बच्चों के गर्भाधान से लेकर जन्म लेने तक के सफ़र में भावों के खेल के साथ कहीं संगीत की तरंगें तो कहीं रोज-रोज किये गये माँ-पिता के झगड़े तो कहीं छोटा अँधेरा कमराl इन सभी परिस्थितियों का अध्ययन बनाई गई परिकल्पनाओं को शत-प्रतिशत सही कर देगा ऐसा यशी और अंबर का अनुमान हैl

इधर मिस्टर चटर्जी के खालीपन को भरने के लिए यशी इमोजी कट-पेस्ट कर भेजती हैl अंबर भी मिसेज चटर्जी को इमोजी भेजता हैl कोरी भावनाओं पर भेजे जानेवाले कट और पेस्ट की इमोजी को टाइम पास माना जा सकता हैl समय बिताने के लिए कुछ वर्षों पूर्व खेली जाने वाली अन्त्याक्षरी कहीं न कहीं ह्रदय के तारों को जोड़ती थीl लोग मानते हैं  वर्चुअल रिएक्शन्स मस्तिष्क के किसी कोने को भी छू नहीं पाते, आँखों की रेटिना पर भी उसकी छवि ज्यादा देर नहीं ठहर पातीl   

एक बिस्तर पर पति-पत्नी और बीच में सोया नवजात और दूसरी तरफ दोनों पति-पत्नी अपने मोबाईल पर चमकते इमोजी देख ऐसे खुश हो रहे हैं जैसे वर्षों से खोई हुई ख़ुशी मिल गई होl लगता है क्षणिक प्रेम ने इन्हें विवाह बन्धन में बाँध दिया था जिसके बंधन पुरानी रस्सी की तरह गल गये हैंl ये गली रस्सी टूटेगी भी नहीं क्योंकि उसे एक नवजात ने कहीं-न-कहीं रोक दिया हैl

मिसेज चटर्जी को भी अपने अवसाद से मुक्ति मिली है और वो इस नई दिनचर्या को खुलकर जीना चाहती हैंl      

लाल लव रिएक्शन वाली इमोजी चमकते ही, मिस्टर चटर्जी के अंग-अंग रोमांचित हो रहे हैंl दूसरी तरफ करवट फेरकर अपने मोबाईल में उलझी मिसेज चटर्जी ने एक चेहरा जो चुंबन उड़ाता है वाली इमोजी भेज अपनी ख़ुशी जाहिर कर दी हैl इमोजी का जवाब इमोजीl भावों की इस साँप-सीढी में कौन सा साँप किसे काट रहा है और कौन सी सीढ़ी किसे ऊपर पहुँचा रही है इससे पूरी तरह बेपरवाह दोनों का इमोजी वार्तालाप लगातार जारी हैl दोनों अपने इस खेल में ऐसे भाग रहे जैसे जेठ की दुपहरी में हाइवे पर सनसनाती कार, जिसे हर अगले सौ मीटर पर पानी ही चमकता नज़र आता हैl 

यशी और अंबर को इस रिसर्च वर्क को करते-करते लगभग एक साल होने वाले हैंl केस स्टडी पूरी कर लेने के बाद दोनों अब एक साथ रहते हैंl शुरुआती असहमति के बाद अब इनके माता-पिता भी राजी हो गये हैं, बस इस प्रोजेक्ट की थीसिस जमा करते ही दोनों विवाह बंधन में बंध जायेंगेl

इस बीच मिस्टर चटर्जी को यशी की इमोजी में अपना वजूद मिल गया था वहीं मिसेज चटर्जी भी मोबाईल की सहायता से अपने नवजात को पाल रही थींl तीसरा महीना पार करते ही बोतल से दूध पीने के लिए माँ कोई भी कार्टून मोबाईल पर चालू कर उस बच्चे के पास रख देती है वह आराम से दूध पी लेता हैl जब मिसेज चटर्जी घर के किसी काम में व्यस्त होती हैं तो बस कोई पोएम चालू कर बच्चे के पास रख देती हैंl  

मोबाईल की इस व्यस्तता के बावजूद मिसेज चटर्जी समय-समय पर अंबर को अपने सन्देश भेजना नहीं भूलती हैंl

इमोजी के लेनदेन में अंबर और यशी को ऐसा व्यापारी बना दिया है जो भावनाओं के व्यापार में असली और नकली का फ़र्क आसानी से कर सकते हैं। अपने भविष्य की दशा और दिशा तय कर सकते हैंl उनके अध्ययन की इस गहराई ने दोनों को व्यक्तिगत तौर पर बहुत ही नजदीक ला दिया हैl 

अंबर और यशी अब मिस्टर एंड मिसेज अंबर और यशी हो गये हैं, पिछले महीने सामाजिक चोंचलों से दूर दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली हैl मिस्टर चटर्जी और मिसेज चटर्जी सारी सच्चाई से वाकिफ़ हैं लेकिन उनके बीच का वर्चुअल रिलेशन इतना तगड़ा है कि न मिस्टर चटर्जी को वास्तविक दुनिया की परवाह है न मिसेज चटर्जी को l ये दोनों जोड़ियाँ रियल वर्ल्ड में कितने भी दूर हों लेकिन सोशल मिडिया की दुनिया में क्यूट कपल जाने जाते हैंl मिसेज चटर्जी के व्हाटसप्प स्टेटस, फेसबुक और इन्स्टा की स्टोरी शानदार होती हैl सोसाइटी की अन्य सखियाँ उनके कपड़े, ज्वेलरी देख भीतर-भीतर जलती हैंl   

अंबर और यशी को भी इस खेल में खूब मजा आता हैl कट-पेस्ट के खेल में इनकी उँगलियों और मस्तिष्क का सामंजस्य ग़जब का हैl 

कभी- कभी मिसेज चटर्जी को इमोजी भेजते ही अंबर की आदिम जरूरतों का अदहन खौलने लगता है और अंदर के ताप में टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ जाता  हैl यशी को बाँहों में भींचता अंबर भावनाओं के खेल से बाहर निकल अपनी जरुरत को पूरा करना चाहता हैl उसके पूरे शरीर में एक सरसराहट होने लगती हैl यशी भी मिस्टर चटर्जी को लव रिएक्शन भेजने के बाद अपने एस्ट्रोजन लेवल पर नियंत्रण नहीं कर पाती और हव्वा बन जाती है। दिल की आँखों के साथ मुस्कुराते हुए चेहरे को देख, आदम के उस प्रेम की अभिव्यक्ति की सहमति के साथ बढ़ते हार्मोनों की धार में दोनों बह जाते हैंl दोनों यह समझ नहीं पाते कि ऐसे ही भेज दी गई इमोजी उनकी मन की झूठी अवस्था से निकलकर उनके शरीर की जरुरत बन जायेगीl

शरीर ने वर्तमान को स्वीकार और मन भूत बनकर रह गया जिसकी परिणति के रूप में यशी के अंदर एक बीज अंखुआ गया है l यह बीज बढे हुए हार्मोन का ही परिणाम हैl

दूसरी तरफ यशी और अंबर के दो वर्षों से चल रहे मेहनत के नतीजे के रूप में दो रिसर्च पेपर पब्लिश हुए हैंl उनके रिसर्च ने इस परिकल्पना पर मुहर लगा दी है कि इन्सान गर्भ में रहते हुए बहुत सारी बातें सीखता है l मसलन खान-पान, भाव, स्वाद, आवाज़, जबान आदि। मतलब पिता फिर सामाजिक संस्था बन उभरा और माँ एक प्राकृतिक।

यशी माँ बनने वाली है। उसे अब अंबर की तरफ से भी आराम मिलने लगा है।  अब मोबाईल पर उसका समय और ज्यादा बीतने लगा है । अपने कामों के भागदौड़ में समाज से अलग – थलग पड़ चुकी यशी ने सोशल मीडिया पर अपने एक नये समाज को ढूंढ लिया है। अब वो मिस्टर एंड मिसेज चटर्जी दोनों से बातें करती है। उनकी बातचीत में शब्द बहुत कम होने लगे हैं और इमोजी की संख्या बढती  जा रही है। मिसेज चटर्जी ने इस बीच उसे कई सलाह दिए हैं । वो कहती हैं- “इस समय ज्यादा से ज्यादा अंबर के साथ रहे। बच्चा माँ और बाप दोनों के साथ पलेगा तब तो संपूर्ण होगा।” 

इधर डॉक्टर ने भी एक्सपेक्टिंग मदर को ढेर सारे एहतियात बरतने को कहा है। कभी – कभी ख़ुद के पेट पर हाथ फेरती आईने में देखती यशी बच्चे को महसूस करने की कोशिश करने लगती है। फिर कभी मिसेज चटर्जी पर हँसी आती है, दूसरे को नसीहत देना कितना आसान है।

रिसर्च की पहली संकल्पना यानी अभिमन्यु की कथा उसे अक्सर याद आती है। कहानी के प्रभाव में खोई यशी को कई बार ऐसा लगता है जैसे सुभद्रा निरीह की तरह सामने खड़ी है और अभिमन्यु को मृत्यु के करीब जाते बेबस देख रही है…

“माँ अब मुझे जाने दो ! मेरे जाने का समय हो चुका है।

“सब जानते हुये तुम्हे मैं कैसे युद्ध भूमि में जाने दे सकती हूँ ? मैं इस कलंक के साथ कैसे जी पाऊँगी कि नींद से भरी होने के कारण मैं तुम्हे चक्रव्यूह से निकलने की तरकीब नहीं सुनवा पाई।”

सुभद्रा की कातर आवाज़ के बीच यशी को उत्तरा का उभरा हुआ पेट दिखाई पडता है और वह सोचती है सुभद्रा की सजा उत्तरा और उसके होने वाले बच्चे को क्यो मिलनी चाहिये?   

यशी के गर्भ में पलता बच्चा अब सताईस सप्ताह का हो चुका है। बच्चे ने गर्भ में अब सर नीचे करना शुरू कर दिया है वो अब बाहर आने की तैयारी कर रहा है। अभी-अभी मोबाईल वाईबरेट किया, उस पर एक लाल रंग का लव रिएक्शन आया है। उन तरंगों ने गर्भ को छुआ जिससे गर्भ जोर से हिलोरें लेने लगा। उसके तुरंत बाद किसी प्रश्न के जवाब में यशी ने अभी फिर एक काले चश्मे वाली इमोजी भेज दी है। यशी के गर्भाशय में जैसे कोइ तरंग उठी है, उसे लगता है जैसे सुभद्रा उसे बता रही है यही वह समय है जब अभिमन्यु ने चक्रव्यूह की कहानी सुनी थी… अगले ही पल उत्तरा का ख्याल उसे आपाद्मस्तक भय से भर देता है और सवालों से भींगा अभिमन्यु उसके चेहरे पर पसीने की बूंद बन चुहचुहा उठता है….

यशी ने अपने भीतर दर्द की एक चिलक महसूस की है… दर्द के साथ कुछ रिसने का अहसास भी… शोध की शुरुआत में उसने जो प्रश्न औरो के लिये बनाये थे सब के सब खुद उसी से अपना जवाब मांग रहे हैं… वह बहुत एहतियात से अपना पेट पकड़ती है और लगभग चिल्लाते हुये अम्बर को पुकारती है – 

“अंबर मुझे अपने बच्चे को जन्म देना है, पर इन प्रश्नों के उत्तर मैं नहीं दे सकती… ”

शोध प्रश्नावली के पन्ने कमरे में फड़फड़ा रहे हैं…. यशी के मोबाइल पर नये मैसेज का नोटिफिकेशन है… शायद मिस्टर चटर्जी ने कोई इमोजी भेजी हो… एक चुम्बनफेंक चेहरा या तीर से बिंधा दिल… हो सकता है यह मैसेज मिसेज चटर्जी का हो…  दिल वाली इमोजी तो वह भी भेजती हैं- कभी पीला तो कभी नीला… कभी-कभी काला भी। काले दिल वाली इमोजी में छिपे मिसेज चटर्जी के दुख को यशी अपने आँसुओ से धुल देना चाहती है…

अंबर ने यशी को जोर से पकड़ कर गले लगा लिया है। उसकी छाती से चिपकी यशी की साँसों की गति तेज हो गई है। अंबर यशी के पेट को हौले से चूमता है और आँखो में नमी लिये यशी जोर से उसके हाथ पकड़ लेती है…

 

सम्पर्क : vineetaprmr@gmail.com, मोबाइल –7633817152

 

samved

साहित्य, विचार और संस्कृति की पत्रिका संवेद (ISSN 2231 3885)
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विजयश्री तनवीर
विजयश्री तनवीर
2 years ago

बहुत अच्छी कहानी है। विनीता जी को दिल से बधाई ❤️

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